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    डेंगू मच्छर के आगे बौनी हुई उत्तराखंड सरकार

    By BhanuEdited By:
    Updated: Wed, 07 Sep 2016 10:51 AM (IST)

    डेंगू के प्रकोप का दायरा लगातार बढ़ रहा है, मगर स्वास्थ्य विभाग रोकथाम करना तो दूर, उसके कहर का भी ठीक से अंदाजा नहीं लगा पा रहा है।

    देहरादून, [सुभाष भट्ट]: उत्तराखंड में मौत का पर्याय बन चुके पिद्दी भर के डेंगू मच्छर के सामने सूबे की सरकार बौनी हो गई है। डेंगू के प्रकोप का दायरा लगातार बढ़ रहा है, मगर स्वास्थ्य विभाग रोकथाम करना तो दूर, उसके कहर का भी ठीक से अंदाजा नहीं लगा पा रहा है। जनवरी से लेकर अब तक डेंगू से महज एक युवक की मौत का हास्यास्पद सरकारी दावा खुद ही इसका जीता-जागता उदाहरण है। इसके बावजूद तुर्रा यह कि प्रदेश में लगातार डेंगू के बढ़ते प्रकोप का ठीकरा भी अब केंद्र सरकार के सिर फोड़ने का सिलसिला शुरू हो गया है।
    उत्तराखंड में जन स्वास्थ्य के प्रति सरकार की संवेदनशीलता और स्वास्थ्य विभाग की सक्रियता दोनों सवालों के घेरे में है। वजह है सिर्फ एक अदना सा मच्छर, जिसने राज्य में डेंगू का आतंक फैला दिया है। सरकारी अस्पतालों में डेंगू के मरीजों की फेहरिस्त दिन प्रतिदिन लंबी होती जा रही है, लेकिन अफसोस यह कि निजी अस्पतालों में डेंगू पीड़ितों की स्थिति से सूबे का सरकारी तंत्र पूरी तरह अनजान बना बैठा है।

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    शासन स्तर पर स्वास्थ्य विभाग के अफसर स्थानांतरण के मामले निपटाने में व्यस्त हैं, तो स्वास्थ्य मंत्री को बैठकों से फुर्सत नहीं मिल रही।
    निजी अस्पतालों की रिपोर्टिंग नहीं...
    स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक गत जनवरी से छह सितंबर तक प्रदेश में डेंगू पीडि़तों का आंकड़ा 756 तक पहुंच गया है। इनमें देहरादून के 709, हरिद्वार के 16, नैनीताल के 29 व बाहरी राज्यों के चार मरीज भी शामिल हैं। महकमे का दावा है कि पिछले आठ महीने में राज्य में डेंगू से सिर्फ एक युवक की मौत हुई है। यानी, यह तो साफ है कि निजी अस्पतालों में डेंगू पीड़ितों की स्थिति से सरकारी तंत्र पूरी तरह अनभिज्ञ है। साथ ही, यह भी साबित हो गया कि निजी अस्पताल भी सरकार की काहिली का फायदा उठाकर डेंगू के मरीजों की नियमित रिपोर्टिंग मुख्य चिकित्साधिकारी कार्यालय में नहीं कर रहे, जबकि पब्लिक हेल्थ एक्ट व क्लीनिकल इस्टेबलिशमेंट एक्ट के तहत यह अनिवार्य है।
    डेंगू का ठीकरा भी केंद्र के सिर
    प्रदेश में डेंगू के बढ़ते प्रकोप का ठीकरा भी अब केंद्र सरकार के सिर फोड़ने का सिलसिला शुरू होता दिख रहा है। सचिव स्वास्थ्य डॉ. भूपिंदर कौर औलख का कहना है कि डेंगू फैलाने वाले मच्छर के लार्वा को नष्ट करने के लिए जिन दवाओं का छिड़काव किया जा रहा है, उनके लिए केंद्र सरकार से राज्य को डिमांड के सापेक्ष काफी कम बजट मिला है। अतिरिक्त बजट की मांग केंद्र सरकार से की जा चुकी है।

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    इसके अलावा, केंद्र की गाइडलाइन में यह व्यवस्था है कि जिस जगह डेंगू के मरीज की पहचान होती है, वहां से 100 मीटर के दायरे में इन दवाओं का छिड़काव किया जाना है। इसके अनुसार छिड़काव तो हो रहा है, मगर यह पर्याप्त प्रतीत नहीं हो रहा। ऐसे में केंद्र से 100 के दायरे को बढ़ाकर 200 मीटर करने का अनुरोध भी किया जा रहा है।
    ब्लड प्लेटलेट्स पर विरोधाभास
    डेंगू पीड़ितों के समुचित उपचार के लिए ब्लड प्लेटलेट्स की उपलब्धता को लेकर स्वास्थ्य महकमे में ही विरोधाभास साफ नजर आ रहा है। स्वास्थ्य महानिदेशालय का दावा है कि सरकारी अस्पतालों में किसी भी ब्लड ग्रुप की प्लेटलेट्स की कमी नहीं है।

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    अलबत्ता, सचिव स्वास्थ्य डॉ. भूपिंदर कौर औलख ने माना कि कुछ नेगेटिव ब्लड ग्रुप की प्लेटलेट्स की कमी दूर करने के लिए जल्द ठोस प्रयास किए जाएंगे। इसके लिए ब्लड डोनेशन कैंप आदि की व्यवस्था की जाएगी। हालांकि, उन्होंने सरकारी अस्पतालों में मरीजों के लिए बेड की उपलब्ध को पर्याप्त बताया।
    खामोश! मंत्री जी मीटिंग में हैं..।
    बेशक, डेंगू के लगातार बढ़ते प्रकोप से लोगों की जान पर बन आई है, मगर प्रदेश में स्वास्थ्य मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल रहे स्वास्थ्य मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी बैठकों व क्षेत्र के दौरों में व्यस्त हैं। ऐसा भी नहीं कि उन्हें जनता की सेहत की चिंता नहीं।

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    इस संबंध में स्वास्थ्य मंत्री दो-तीन बाद कई विभागों की बैठकें कर जरूरी दिशा निर्देश भी दे चुके हैं। अलबत्ता, जब उनसे डेंगू की रोकथाम के बारे में जानने की कोशिश की गई, तो फोन पर उन्होंने जवाब दिया कि 'भाई साहब, मैं अभी किसी मीटिंग में व्यस्त हूं...।
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