यहां मौत की इमारत में रह रही हैं हजारों जिंदगियां
देहरादून के ओल्ड कनाट प्लेस में तिमंजिला भवन की इमारत इस कदर खोखली हो चुकी है कि यह कभी भी धराशायी हो सकती है। इससे हजारों लोगों की जिंदगी को खतरा बना हुआ है।
देहरादून, [अंकुर अग्रवाल]: देहरादून के ओल्ड कनाट प्लेस स्थित तिमंजिला भवन खतरे की घंटी बजा रहा है। यह इमारत इस कदर खोखली हो चुकी है कि यह कभी भी धराशायी हो सकती है। इससे हजारों लोग मौत के मुहाने पर बैठे हुए हैं और रोज डर-डर कर जिंदगी बिता रहे हैं।
भारत की आजादी से पहले अंग्रेजी शासन के वर्ष 1934 में देहरादून के सेठ मंसाराम ने ओल्ड कनाट प्लेस पर अपनी 18 बीघा जमीन में एक विशाल रिहायशी तिमंजिली इमारत का निर्माण कराया था। हालांकि, इमारत के निर्माण के बाद जब इसके मकान नहीं बिके तो सेठ मंसाराम दिवालिया हो गए और इमारत भारत बीमा कंपनी (वर्तमान में भारतीय जीवन बीमा निगम) को गिरवी रख दी गई।
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उसके बाद उधार ली रकम वापस न करने के कारण इमारत पर भारत बीमा कंपनी का कब्जा हो गया। कंपनी ने इसमें बने मकान किराये पर देने शुरू कर दिए।
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आजादी के बाद जमीन की बढ़ती कीमतों को देखकर इमारत के निचले भाग में रहने वाले लोगों ने घर तोड़कर दुकानें बना लीं। समय बदला व भारत बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआइसी) में बदल गई।
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आज एलआइसी की यही शानदार इमारत लोगों के लिए मौत का मुहाना बन गई है। यहां रहने वालों की मानें तो बीते 81 साल में एलआइसी ने इमारत में न तो मरम्मत का कोई कार्य नहीं कराया, न उन्हें कराने देती।
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एलआइसी की तीन भागों में बनी इस विशाल तिमंजिली इमारत के हर भाग के निचले हिस्से में सामने की तरफ लगभग सौ-सौ दुकानें हैं। इसके अलावा बीच की मंजिल पर कुछ प्राइवेट आफिस, क्लीनिक और अन्य दुकानें हैं। ऊपरी मंजिल पर घर बने हुए हैं।
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अनुमानित तौर पर देखा जाए तो 18 बीघा के विशाल क्षेत्र में पीछे तक फैली इस इमारत में सैकड़ों लोगों की रोजी और हजारों लोगों की जिंदगी पल रही है। पुरानी हो चली इस इमारत में जगह-जगह दीवारों व लेंटरों में दरारें पड़ चुकी हैं।
पूरी इमारत इस कदर खोखली हो चुकी है कि यह कभी भी धराशायी हो सकती है। इससे हजारों लोग मौत के मुहाने पर बैठे हुए हैं और रोज डर-डर कर जिंदगी बिता रहे हैं।
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मरम्मत पर लगी हुई है रोक
सवाल यह उठता है कि ये लोग मकानों या दुकानों की मरम्मत क्यों नहीं कराते या फिर ये किराए पर रह रहे हैं तो फिर कहीं और क्यों नहीं रहने लगते। जवाब इमारत में रहने वाले लोगों से पूछा गया तो उनका पहला जवाब तो यह था कि परिवार को लेकर इतने बड़े शहर में रहने कहां जाएं।
इसी इमारत में रहने वाले एक शख्स समर कुमार ने बताया कि वे किराए पर रहने के बावजूद अपने मकान की मरम्मत कराना चाहते हैं, लेकिन एलआइसी जानबूझकर मरम्मत कराने की इजाजत नहीं दे रही है। आरोप लगाया कि एलआइसी मकान और दुकान खाली कराना चाहती है।
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इमारत को गिराकर कोई कांप्लेक्स का निर्माण कराना चाहती है। उन्होंने बताया कि दीवारें इस कदर खोखली हो चुकी हैं कि अब इसमें कलेंडर के लिए कील ठोकने से भी खौफ लगता है। कहीं ऐसा न हो कि हथौड़े की चोट से दीवार ही न गिर जाए।
वहां दुकान चला रहे जर्नादन सेमवाल ने बताया कि एलआइसी ने इमारत खाली कराने के लिए सभी पर मुकदमा किया हुआ है। ऐसे ही न जाने कितने ऐसे शख्स हैं, जो अपने मन का गुबार निकालना चाहते थे। मन ही मन यह सोच कर डर रहे कि कहीं भूकंप की वजह से उनके घर धराशायी न हो जाएं।
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नौ साल पहले गिरा था हिस्सा
नौ साल पहले तीन जनवरी 2008 को इमारत का एक हिस्सा ढह गया था। शुक्र है कि उस दौरान कोई हताहत नहीं हुआ था लेकिन नुकसान लाखों के माल का हो गया था। यह हिस्सा अब तक ऐसा ही है।

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