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    उत्तराखंड भाजपा में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को लेकर दंगल

    By BhanuEdited By:
    Updated: Mon, 12 Sep 2016 02:31 PM (IST)

    त्तराखंड भाजपा में मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा, इसके लिए शीतयुद्ध शुरू हो चुका है। एेसे में पार्टी हाईकमान को मुख्यमंत्री का चेहरा फाइनल करने में खासी मुश्किलें खड़ी होने वाली हैं।

    देहरादून, [भानु बंगवाल]: उत्तराखंड भाजपा में मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा, इसके लिए शीतयुद्ध शुरू हो चुका है। प्रदेश भाजपा के दिग्गज जिस रणनीति के आधार पर बयानों की बौछार कर रहे हैं, उससे यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि पार्टी हाईकमान को मुख्यमंत्री का चेहरा फाइनल करने में खासी मुश्किलें खड़ी होने वाली हैं।

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    यह हालात तब हैं जब उत्तराखंड में भाजपा की सत्ता की डगर कई पेचीदगियों से गुजरने वाली है। विशेषकर मुख्यमंत्री हरीश रावत की चालों का मुकाबला करना भाजपा नेताओं के लिए आसान नहीं होगा और ऐसा राष्ट्रपति शासन व कांग्रेस की टूट के दौरान हो चुका है, जबकि दस विधायक तोड़ने के बाद भी भाजपा सत्ता के दरवाजे तक पहुंचकर जमीन पर आ गिरी।

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    2017 के विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला कांग्रेस व भाजपा के बीच होना तय है। भाजपा यह मान रही है कि हरीश रावत की कार्यशैली से परेशान जनता आसानी से सबकुछ उनकी झोली में डाल देगी, लेकिन जिस तरह से हरीश रावत के नेतृत्व में कांग्रेस ने रणनीति बनाई है और भाजपा के अंदर संवादहीनता बढ़ रही है, उससे भाजपा की राह इतनी आसान नजर नहीं आ रही है।
    पिछले एक महीने में भाजपा के भीतर परोक्ष रूप से खुद को मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में स्थापित करने की होड़ लगी है। इसमें सबसे आगे पूर्व मुख्यमंत्री व नैनीताल के सांसद भगत सिंह कोश्यारी हैं। सियासी चतुराई दिखाते हुए दो दिन पहले कोश्यारी ने दो टूक शब्दों में कह दिया कि वह 2019 के बाद राजनीति से सन्यास ले लेंगे और अपनी इस मंशा को उन्होंने हाई कमान को भी बता दिया।

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    साफ है कि कोश्यारी हाई कमान से कुछ ऐसा चाहते हैं कि जो उन्हें 2019 के बाद भी राजनीति में बनाए रखे। जाहिर है कि उनका निशाना मुख्यमंत्री पद पर है। खंडूड़ी है जरूरी के नारे पर भी कोश्यारी की प्रतिक्रिया कटाक्ष करने वाली रही और उन्होंने यहां तक कह दिया कि खंडूड़ी ही नहीं बल्कि पूरे देश की जनता जरूरी है।
    इससे स्पष्ट संकेत है कि कोश्यारी मुख्यमंत्री की राह में पड़ने वाली किसी भी चुनौती से निपटने का मन बना चुके हैं और दांव पर लगा दिया है अपनी पूरी सियासत को। कोश्यारी को प्रदेश प्रभारी श्याम जाजू के इस बयान से भी बल मिला है कि खंडू़ड़ी के साथ ही कार्यकर्ता भी जरूरी हैं।

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    जाहिर है कि कोश्यारी को श्याम जाजू का कहीं न कहीं सहयोग मिल रहा है। यदि ऐसा न होता तो खंडूड़ी है जरूरी के सवाल पर पार्टी प्रभारी बयानबाजी को नजरअंदाज कर देते और इस मसले पर पार्टी फोरम में ही बात होती।
    यूं तो भाजपा में मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की कमी नहीं है। इस कड़ी में सबसे आगे पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी हैं। इनके साथ ही भगत सिंह कोश्यारी, रमेश पोखरियाल निशंक, सतपाल महाराज व विजय बहुगुणा भी कतार में मजबूती से खड़े हैं। इतना ही नहीं बल्कि प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट व हरक सिंह रावत भी मुख्यमंत्री की दावेदारी के रास्ते खोज रहे हैं।

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    पार्टी रीति नीति के हिसाब से देखा जाए तो बीसी खंडूड़ी व कोश्यारी तय उम्र सीमा 75 वर्ष की परिधि से बाहर हैं। ऐसे में जब गुजरात में आनंदी बैन व केंद्र में दो मंत्री व मध्यप्रदेश में तीन मंत्रियों को इस आधार पर हटाया जा सकता है तो उत्तराखंड में 75 से अधिक की उम्र के बड़े नेताओं को मुख्यमंत्री का दावेदार बनाने की बात गले नहीं उतरती है। यदि ऐसा हुआ तो भाजपा को पूरे देश में उन नेताओं को जवाब देना होगा, जिन्हें इस आधार पर हटाया गया।
    जहां तक विजय बहुगुणा व सतपाल महाराज की दावेदारी का सवाल है तो ये दोनों नेता कुछ समय पहले ही भगवाधारी हुए हैं। ऐसे में इन पर भाजपा विकल्पहीनता की स्थिति में ही दांव खेल सकती है, जो हालात उत्तराखंड में नहीं है।

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    हरक सिंह रावत भले ही किसी समय में भाजपा के बड़े नेता रहे हों, लेकिन इस समय उनकी कांग्रेस से वापसी फिर भाजपा में हुई है। ऐसे में हरक सिंह रावत की जोड़तोड़ भी मजबूत नजर नहीं आ रही है। जहां तक हरिद्वार सांसद रमेश पोखरियाल निशंक का मसला है तो केंद्रीय मंत्रीमंडल विस्तार में उन्हें नजरअंदाज किए जाने से स्पष्ट है कि पार्टी हाईकमान निशंक को लेकर फिलहाल किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा है।

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    यह जरूर है कि हाल ही में राज्य गठन के बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल का विवरण जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक भेजा गया तो उसमें 2010-11 की अवधि राज्य के विकास की दृष्टि से बेहतर मानी गई। हालांकि यह कार्यकाल निशंक के समय का है और इससे यह संकेत मिले हैं कि निशंक को भी मुख्यमंत्री की दौड़ में गंभीरता से लिया जा रहा है।
    कुल मिलाकर उत्तराखंड भाजपा में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को लेकर जो गतिरोध बना है यदि उसे जल्द खत्म नहीं किया गया तो यह स्थिति भाजपा के लिए सियासी तौर पर नुकसानदेह साबित हो सकती है।
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