इस खूबसूरत शहर के नाम से बीमारी, चौक जाएंगे आप
उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटक स्थलों में से एक है रानीखेते है। आप हैरान हो जाएंगे कि यह एक बीमारी का नाम भी है। इस बीमारी का नाम बदने की मांग प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंच गई है।
रानीखेत, [जेएनएन]: रानीखेत का नाम पढ़कर आपके जहन में एक पर्यटन स्थल की तस्वीर उभरती होगी। समुद्रतल से करीब 1829 मीटर ऊंचाई पर स्थित यह स्थल प्रकृति की नैसर्गिक सुंदरता से भरपूर है, लेकिन आपको हैरानी होगी कि रानीखेत मुर्गियों में होने वाली एक बीमारी का नाम भी है। जिसका रानीखेत से कोई लेना देना नहीं है। इस बीमारी का नाम बदलने को लेकर लोग आवाज उठ रही है। शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंच गई है। आइए जानते हैं पूरा मामला।
पर्यटन स्थल रानीखेत
रानीखेत उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित एक पर्यटक स्थल है। उत्तराखंड पर्यटक विकास निगम के अनुसार रानीखेत तत्कालीन राजा सुधरदेव का अपनी रानी पद्मावती को उपहार में दिए महल व आसपास के खेतों का इलाका था। रानीखेत तकरीबन 27 किलोमीटर में फैला हुआ क्षेत्र है। गौरवपूर्ण इतिहास वाली कुमाऊं रेजिमेंट का मुख्यालय भी यहां स्थित है। इतना ही नहीं देश के नौ छिद्रों वाले गोल्फ मैदानों में से एक यहां स्थित है। भारतीय रेल ने काठगोदाम से जैसलमेर (राजस्थान) तक चलने वाली ट्रेन का नाम भी 'रानीखेत एक्सप्रेस' रखा है।
मुर्गियों में होने वाली बीमारी का नाम भी रानीखेत
रानीखेत पक्षियों में पायी जाने वाली एक संक्रामक बीमारी है। यह रोग कुक्कुट की सबसे गंभीर विषाणु जानित बीमारियों में से एक है। इस रोग के विषाणु पैरामाइक्सों को पहले न्यू कैस्टल डिजीज के नाम से जाना जाता था। ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेज वैज्ञानिकों ने इस बीमारी नाम रानीखेत रख दिया।
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पीएमओ से बीमारी का नाम बदलने की मांग
संचार क्रांति के दौर में लोग विभिन्न माध्यमों से इनके खिलाफ अभियान भी चला रहे हैं। पिछले कुछ सालों से पहाड़ के मूल निवासी इसके खिलाफ अभियान चला रह हैं। इनमें से एक हैं दिल्ली निवासी सतीश जोशी। उन्होंने कुछ दिन पूर्व प्रधानमंत्री कार्यालाय (पीएमओ) में इस संबंध में शिकायत दर्ज कराई। शिकायत में उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री से कहा कि इस नाम से एक खूबसूरत शहर की छवि धूमिल हो रही है। जोशी का कहना है कि किसी भी बीमारी को क्षेत्र के नाम से नहीं जोड़ा जाना चाहिए और इस बीमारी का नाम बदला जाना चाहिए।
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सोशल साइट पर चला रखा अभियान
सतीश जोशी और उनसे जुड़े दर्जनों सामाजिक कार्यकर्ता अब सोशल साईट पर भी इस बीमारी (रानीखेत) का नाम बदलने को अभियान चला रहे हैं। असल में आजादी के तुरंत बाद भारत सरकार को अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए आपत्तिजनक नामों को बदलना चाहिए था, लेकिन 70 वर्ष बाद भी इस संबंध में कोई सकारात्क पहल नहीं की गई। उनका कहना है कि रानीखेत एक खूबसूरत पर्यटन स्थल है। यहां देश विदेश के सैलानी आते है, लेकिन इस नाम को किसी बीमारी से जोड़ने से विदेशों में क्षेत्र की छवि खराब हो रही है।
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बीमारी को स्थान के नाम से जोड़ने की थी परंपरा
ब्रिटिशकाल में किसी बीमारी को स्थान के नाम से जोड़ने की परंपरा थी। यह एक ही मामला नहीं। 2010 में 'न्यू डेल्ही मेटालो बेटा लैटमसे 1' नामक बीमारी के नाम का मुखर विरोध हुआ था। देश की राजधानी के नाम से जुड़ा होने के कारण इस बीमारी का नाम बदलाना पड़ा था। ऐसा ही मामला टाटा मोटर्स की जीका कार मॉडल को लेकर भी सामने आया था। जीका एक बीमारी का नाम भी है। बाद में कंपनी ने अपनी कार का नाम ही बदल दिया था।
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डब्ल्यूएचओ ने प्रस्तुत की थी वैकल्पिक नीति
विश्व स्थास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी मानवीय बीमारियों के नामकरण के संबंध में 2015 में वैकल्पिक नीति प्रस्तुत की थी। डब्ल्यूएचओ का कहना था कि यदि किसी मित्र राष्ट को किसी बीमारी के नाम पर नकारात्मक बोध होता है तो उसे बदल देना चाहिए। सतीश जोशी का कहना है कि विदेशी धरती पर पैदा हुई बीमारी का नाम जोड़ना गल है। उन्होंने सरकार व जनप्रतिनिधियों से भी इसके खिलाफ सक्रियता से कार्य करने की अपील की है।