आखिर कब टूटेगा दयारा बुग्याल में पसरा सन्नाटा
बर्फ की चादर ओढ़े दयारा बुग्याल इस बार भी खामोश है। यहां पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन उपेक्षा के चलते इस ओर जीएमवीएन कोई सार्थक पहल नहीं कर रहा है।
उत्तरकाशी, [शैलेंद्र गोदियाल]: बर्फ की चादर ओढ़े दयारा बुग्याल इस बार भी खामोश है। पर्यटक टकटकी लगाए देख रहे हैं, मगर स्कीइंग का मजा नहीं ले पा रहे। काश! नेताजी ने कभी इस ओर ध्यान होता। जिला पर्यटन अधिकारी केएस नेगी भी क्या करें, सो तर्क दे रहे हैं कि हिम क्रीड़ा के लिए जरूरी सुविधाएं जुटाने की जिम्मेदारी जीएमवीएन (गढ़वाल मंडल विकास निगम) की है। इसके लिए अब निगम के अधिकारियों से वार्ता की जाएगी।
समुद्रतल से 3000 मीटर की ऊंचाई पर 28 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले दयारा बुग्याल में शीतकालीन खेलों के लिए आदर्श स्थितियां हैं। इसी के मद्देनजर पर्यटन विभाग ने दयारा के आधार शिविर गांवों को पर्यटन सर्किट योजना से जोडऩे की तैयारी की थी। ताकि इसे विंटर गेम्स डेस्टिनेशन के रूप में विकसित किया जा सके। लेकिन, इन तैयारियों को आज तक अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका।
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विदित हो कि दयारा बुग्याल में फरवरी के आखिर तक बर्फबारी जारी रहती है। इससे यहां बर्फ की मोटी चादर बिछ जाती है, जो अप्रैल के बाद ही पिघलती है।
ऐसे में यहां फरवरी आखिर से अप्रैल तक शीतकालीन खेलों के आयोजन की भरपूर संभावनाएं रहती हैं। लेकिन, दयारा को रोपवे से जोडऩे की योजना के धरातल पर न उतरने और यहां शीतकाल के दौरान ठहरने की व्यवस्था न होने से हिम खेलों के शौकीनों को निराश होना पड़ रहा है। हैरत देखिए कि जिस पर्यटन विभाग को यह तमाम सुविधाएं उपलब्ध करानी थीं, वह तमाशाई बना बैठा है।
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क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी केएस नेगी के मुताबिक दयारा बुग्याल को रोपवे से जोड़ने की योजना पर अभी कम शुरू नहीं हुआ है। रही हिम क्रीड़ा के लिए सुविधाएं जुटाने की बात तो वह जीएमवीएन की है। औली में भी जीएमवीएन ही सुविधाएं दे रहा है।
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