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तीन तलाक पर हाईकोर्ट के फैसले से मुस्लिम धर्मगुरु नाराज, सुप्रीम कोर्ट जाएंगे

इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा तीन तलाक पर फैसले से इस्लामिक विद्वान नाखुश हैं और उन्होंने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाने का ऐलान किया है।

By Nawal MishraEdited By: Published: Thu, 08 Dec 2016 05:57 PM (IST)Updated: Fri, 09 Dec 2016 10:10 PM (IST)
तीन तलाक पर हाईकोर्ट के फैसले से मुस्लिम धर्मगुरु नाराज, सुप्रीम कोर्ट जाएंगे

लखनऊ (जेएनएन)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा तीन तलाक को मुस्लम महिलाओं के साथ क्रूरता बताने पर उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों के इस्लामिक विद्वान नाखुश हैं और उन्होंने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाने का ऐलान किया है। उल्लेखनीय कि कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक से महिला अधिकारों का हनन होता है पर्सनल ला बोर्ड देश के संविधान से ऊपर नहीं हो सकता।

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निचली अदालतों की टिप्पणी बेजा : दारुल उलूम

इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा तीन तलाक को असंवैधानिक बताए जाने पर दारुल उलूम ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। दारुल उलूम के मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी ने दो टूक कहा कि तीन तलाक का मसला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। ऐसे में निचली अदालतों का इस मसले पर टिप्पणी करने का कोई औचित्य नहीं है। नोमानी ने कहा कि तमाम मजहबों की तुलना में इस्लाम में औरतों को सबसे ज्यादा हक-हुकूक हासिल हैं। बताया कि तीन तलाक अल्लाह के नापसंदीदा अमल में शामिल है। इसीलिए समाज सुधार जलसों में उलेमा इकराम औरतों के हुकूक के साथ ही तीन तलाक को सरासर गलत बताते हैं। नोमानी ने साफ किया कि शौहर और बीवी के बीच निभाव की कोई सूरत न बचे तो भी एक तलाक देनी चाहिए। अगर कोई चारा ही न रहे तो सबसे आखिरी रास्ता तीन तलाक है। यह भी कहा कि भारतीय संविधान को ध्यान में रखकर ही मुस्लिम पर्सनल लॉ अपना कार्य करता है। कहा कि एक लॉबी तीन तलाक के बहाने कॉमन सिविल कोड लागू करना चाहती है। इसके चलते इस्लामिक कानून की गलत व्याख्या की जा रही है।

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फैसले को चुनौती देंगे बरेलवी

बरेलवी उलमा ने कहा कि कानून-ए-शरीयत मुसलमानों को तीन तलाक का इख्तेयार देती है। भारत का संविधान भी मजहबी आजादी का पक्षधर है। फिर भी अगर अदालत ने फैसला दिया है तो इसे चुनौती दी जाएगी। अपील करेंगे। इस मामले में आखिर तक लड़ा जाएगा। शरीयत के खिलाफ जाने की बात कहने वाला कोई भी फैसला कुबूल नहीं किया जा सकता। नबीरे आला हजरत मौलाना तसलीम रजा खां ने कहा कि हाईकोर्ट ने फैसला दिया है तो अभी हमारे पास डबल बेंच और फिर सुप्रीम कोर्ट का रास्ता खुला है। मुसलमान शरीयत में दखल को कुबूल नहीं कर सकते। मजहबी मसले कानून-ए-शरीयत के आधार पर ही तय करेंगे। इसे लेकर हम पहले से ही विरोध कर रहे हैं।

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निकाह और तलाक शरई मामलात

बरेली के प्रबंधक खानकाह नियाजिया शब्बू मियां नियाजी ने कहा कि निकाह और तलाक शरई मामलात हैं। इसमें कोर्ट नहीं जाना चाहिए। मुसलमान ही नहीं दूसरे सम्प्रदाय भी धार्मिक क्रियाकलाप अपनी तरह से करते रहे हैं। ऐसे में मुसलमानों से यह कहना है कि वे धार्मिक कार्य शरीयत के एतबार से नहीं करें, अच्छी बात नहीं है। जमात रजा-ए-मुस्तफा के राष्ट्रीय महासचिव मौलाना शहाबुद्दीन रजवी का कहना है कि तीन तलाक पर तमाम उलमा का संयुक्त फैसला है। इसमें बदलाव की गुंजाइश नहीं है। कोर्ट के फैसले को चुनौती देंगे।

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एक बार में तीन तलाक क्रूरता

ऑल इंडिया मुस्लिम वीमेंस पर्सनल लॉ बोर्ड की प्रदेश अध्यक्ष शीरिन मसरूर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के तीन तलाक को गलत बताने संबंधी फैसले का स्वागत किया है। अलीगढ़ में शीरिन ने कहा कि एक बार में तीन तलाक क्रूरता है, अमानवीय भी है। यहां इस्लामिक कानून की गलत व्याख्या की जा रही है। उन्होंने कहा कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने 25वें अधिवेशन में इस अमानवीय प्रथा को रोकने की कोई कोशिश नहीं की। उल्टे, उसे बढ़ावा ही दिया। डॉ. शीरिन ने सवाल किया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड यदि मुस्लिम महिलाओं की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाता तो मुस्लिम महिलाएं कोर्ट ही क्यों जातीं? जाहिर है, मुस्लिम महिलाओं का हक दिलाने में बोर्ड पूरी तरह से विफल रहा है। उन्होंने कहा कि कोर्ट का फैसला पवित्र कुरान पाक को देखकर ही दिया गया है।

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जागरण ने इस मुद्दे पर मुस्लिम धर्मगुरुओं से बात की तो अधिकतर न्यायालय के फैसले से खुश नजर नहीं आए। फैजाबाद में अजमेर शरीफ कमेटी के उपाध्यक्ष व दरगाह शरीफ के सज्जादानशीन नैय्यर मियां ने कहा कि इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की जाएगी। बताया कि तीन तलाक को पवित्र कुरान में अच्छा नहीं बताया गया फिर भी स्वीकार किया गया है। कुरान के नियमों को बदलने का अधिकार मुसलमानों के पास नहीं है। उन्होंने बताया कि हजरत उमर ने एक वक्त में तीन तलाक पर पचास कोड़े की सजा देते थे पर तलाक को स्वीकार करते थे। मौलाना अरशद कासमी बताते हैं कि तीन तलाक पर न्यायालय के इस फैसले से वह संतुष्ट नहीं है। दारुल उलूम मख्दूमिया रुदौली के संस्थापक मौलाना अब्दुल मुस्तफा सिद्दीकी ने न्यायालय के फैसले को अनुचित ठहराया। उन्होंने कहा कि तीन तलाक देने की बात पवित्र कुरान में कही गई। साथ ही कुरान में तलाक देना गलत भी बताया गया है। लेकिन विषम हालातों में तलाक का प्रयोग किया जा सकता है।

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तलाक का विकल्प

फैजाबाद की जामा मस्जिद टाटशाह के मुतवल्ली गुलाम अहमद सिद्दीकी ने कहा कि हम कोर्ट के आदेश का सम्मान करते हैं पर इस्लाम की अपनी मर्यादा है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता और इस्लाम के मानने वाले शरीयत से बंधे हुए हैं और इस अधिकार की बहाली के लिए वे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। लक्ष्मणपुरी कालोनी निवासी शिक्षाविद् कैसर अफजाल के अनुसार कोर्ट ने जो कहा, वह अपनी जगह सही होगा पर वह यह बता दे कि तलाक की क्या व्यवस्था की जाय। बकौल कैसर तलाक की जरूरत बहुत ही बुनियादी है। कुछ पति-पत्नी के बीच एक स्थिति ऐसी आती है, जब उनके साथ रहने के सारे उपाय बेअसर हो जाते हैं और तब तलाक ही एक चारा बचता है।

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इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला

  • कोई भी पर्सनल लॉ संविधान से बड़ा नहीं।
  • पवित्र कुरान में भी तीन तलाक को अच्छा नहीं माना ।
  • तीन तलाक महिलाओं के अधिकारों का हनन।
  • मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक देना क्रूरता।

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