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    इलाहाबाद हाई कोर्ट: कोई भी पर्सनल लॉ संविधान से ऊपर नहीं

    By Dharmendra PandeyEdited By:
    Updated: Tue, 09 May 2017 05:54 PM (IST)

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ट्रिपल तलाक के मामले की सुनवाई के दौरान बड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि पर्सनल लॉ के नाम पर किसी भी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है।

    इलाहाबाद हाई कोर्ट: कोई भी पर्सनल लॉ संविधान से ऊपर नहीं

    इलाहाबाद (जेएनएन)। देश में इन दिनों ट्रिपल तलाक कानून को लेकर काफी बहस चल रही है। इसी के बीच आज इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आज फतवा तथा पर्सनल लॉ बोर्ड को लेकर बड़ा निर्देश दिया है। हाई कोर्ट ने साफ कहा कि कोई भी पर्सनल लॉ देश के संविधान से ऊपर नहीं है। यह आदेश जस्टिस एसपी केसरवानी की एकल पीठ ने अकील जमील की याचिका को खारिज करते हुए दिया। 

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    हाई कोर्ट ने आगे कहा कि, तीन तलाक कानून संविधान का उल्लंघन है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आज ट्रिपल तलाक के एक मामले की सुनवाई के दौरान बहुत बड़ी टिप्पणी की है। ट्रिपल तलाक कानून के एक मामले की सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। हाई कोर्ट ने कहा कि, कोई भी पर्सनल लॉ संविधान से ऊपर नहीं है।

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    कोर्ट ने कहा कि पर्सनल लॉ के नाम पर मुस्लिम महिलाओं समेत किसी भी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि जिस समाज में महिलाओं का सम्मान नहीं होता है, उसे सिविलाइज्ड नहीं कहा जा सकता। कोई भी मुस्लिम पति ऐसे तरीके से तलाक नहीं दे सकता है, जिससे समानता और जीवन के मूल अधिकारों का हनन होता हो। कोई भी पर्सनल लॉ संविधान के दायरे में ही लागू हो सकता है। वहीं फतवे पर कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई फतवा मान्य नहीं है, जो न्याय व्यवस्था के विपरीत हो।

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    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पत्नी को तलाक दिए जाने के बाद दर्ज दहेज उत्पीडऩ के मुकदमे की सुनवाई करते हुए तीन तलाक और फतवे पर यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि कोई पर्सनल लॉ बोर्ड संविधान से उपर नहीं है। ट्रिपल तलाक असंवैधानिक है। यह मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करता है।

    दहेज उत्पीडऩ केस को रद करने से किया इंकार 

    हाई कोर्ट ने तीन तलाक पीडि़त वाराणसी की सुमालिया के पति अकील जमील के खिलाफ दर्ज दहेज उत्पीडऩ केस को रद करने से भी इनकार कर दिया। यह आदेश जस्टिस एसपी केसरवानी की एकल पीठ ने अकील जमील की याचिका को खारिज करते हुए दिया।

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    याची अकील जमील का कहना था कि उसने पत्नी सुमालिया को तलाक दे दिया है और दारुल इफ्ता जामा मस्जिद आगरा से फतवा भी ले लिया है। इस आधार पर उस पर दहेज उत्पीडऩ का दर्ज मुकदना रद होना चाहिए। कोर्ट ने एसीजेएम वाराणसी के समन आदेश को सही करार देते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया आपराधिक केस बनता है। फतवे को कानूनी बल प्राप्त नहीं है, इसलिए इसे जबरन थोपा नहीं जा सकता है। यदि इसे कोई लागू करता है तो अवैध है और फतवे का कोई वैधानिक आधार भी नहीं है।

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    फतवे पर अपनी टिप्पणी दी

    इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा  न्याय व्यवस्था के विपरीत कोई फतवा मान्य नहीं है। कोर्ट ने इसी में आगे जोड़ा कि, कोई भी फतवा किसी के अधिकारों के विपरीत नही हो सकता है।