SYL पर फिर टकराव के आसार, पंजाब का रुख कड़ा
एसवाइएल नहर पर सुप्रीम कोर्ट आज फैसला सुना सकता है। ऐसे में दोनों राज्यों के बीच टकराव बढ़ सकता है। पंजाब किसी हालत में हरियाणा को पानी देने को तैयार नहीं है।
जेएनएन, चंडीगढ़। पंजाब और हरियाणा के बीच बरसों से सियासी विवाद का कारण रही एसवाइएल नहर का मामला फिर गर्माने वाला है और दोनों राज्य एक बार फिर टकराने को तैयार हैं। हरियाणा को पूरी उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ एसवाइएल पर उसके हक में फैसला सुनाएगी। दूसरी ओर, पंजाब अपन खिलाफ फैसले को मानने को तैयार नहीं है। उसका कहना है कि एसवाइएल के लिए मजबूर करना कहीं से भी उचित नहीं है। पंजाब एवं हरियाणा सरकारें एसवाइएल नहर पर फैसला आने के बाद की विपरीत स्थितियों से निपटने की भी तैयारी की जा चुकी है।
हरियाणा को अपने हक में फैसला आने की उम्मीद
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ बृहस्पतिवार को एसवाइएल पर आज अपना फैसला सुना सकती है। न्यायमूर्ति अनिल कुमार दवे की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने सुनवाई पूरी होने के बाद इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। पांच सदस्यीय संविधान पीठ में न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष, न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह, न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति अमिताभ रॉय भी शामिल हैं। यह मामला 2004 के राष्ट्रपति संदर्भ से जुड़ा है।
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कांग्रेस के प्रदेश प्रधान कैप्टन अमरिंदर सिंह पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि एसवाइएल पर यदि पंजाब के खिलाफ फैसला अाया तो कांग्रेस के विधायक विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे देंगे। दूसरी ओर कयास लगाए जा रहे हैं कि मुख्यमंत्री बादल ऐसी हालत में विधानसभा भंग करने की सिफारिश भी कर सकते हैं।
पंजाब सरकार फैसले के मद्देनजर हालात पर नजर रखे हुए है और फैसले के बाद के सभी विकल्पों विचार कर रही है। यदि पंजाब के खिलाफ फैसला अाया तो राज्य में बड़ा सियासी तूफान खड़ा हो सकता है। अकाली दल और कांग्रेस इसे बड़ा मुद्दा बना कर विधानसभा चुनाव में इस भुनाने की कोशिश करेंगे।
मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल सहित सभी नेता पहले ही यह खुला एलान कर चुके हैं कि पंजाब के खिलाफ किसी फैसले को स्वीकार नहीं किया जाएगा और पंजाब एक बूंद पानी भी हरियाणा को नहीं देगा। बताया जाता है कि मुख्यमंत्री बादल ने कानूनविदों और वरिष्ठ मंत्रियों व अधिकारियों से बात कर पूर हालात का आकलन किया है। सरकार और प्रशासन ने फैसले के बाद पैदा होनेवाले हालात के लिए पूरी तैयारी कर ली है।
दूसरी ओर, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के निर्णय से ठीक पहले बुधवार को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से दिल्ली में मुलाकात की। माना जा रहा कि मुख्यमंत्री ने राष्ट्रपति को 6 दिसंबर को कुरुक्षेत्र में होने वाले अंतरराष्ट्रीय गीता जयंती महोत्सव का औपचारिक निमंत्रण दिया है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि एसवाइएल नहर पर राष्ट्रपति संदर्भ से जुड़े मामले में भी चर्चा हुई है।
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हरियाणा सरकार को एसवाइएल नहर पर आजकल में फैसला आने की पूरी उम्मीद थी। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने तीन दिन पहले ही अपने निवास पर उच्च पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों की बैठक बुलाकर किसी भी स्थिति से निपटने की रणनीति तैयार की है। मुख्यमंत्री ने सीएमओ और पुलिस के अधिकारियों के साथ विचार विमर्श किया है।
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हरियाणा के हक में केंद्र का नजरिया
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार का नजरिया हरियाणा के हक में नजर आया है। केंद्र ने कहा है कि एक तरफ पंजाब सरकार कह रही कि मामले को ट्रिब्यूनल में भेजा जाए तो दूसरी तरफ कानून बनाकर करार को खत्म कर रही है। केंद्र ने कहा कि अगर पंजाब जल करार को कानून बनाकर खत्म करना चाहता है तो इसका मतलब है कि पानी देना ही नहीं चाहते और नहर बने ही न। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व में दिए दो फैसलों का क्या होगा।
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पंजाब के अनुसार की जा रही जबरदस्ती
पंजाब का कहना है कि केंद्र ने 1985 का राजीव-लोंगोवाल समझौता अांशिक तौर पर ही लागू किया। पंजाब की पैरवी कर रहे एडवोकेट अारएस सूरी की राय है कि केंद्र को अभी तक चंडीगढ़ पंजाब को नहीं सौंपा अौर न ही अाल इंडिया गुरुद्वारा एक्ट बनाया गया, जैसा कि करार में कहा गया है। पंजाब को जबरन रावी अौर ब्यास नदियों से 3.5 मिलियन एकड़ फुट पानी हरियाणा को देने के लिये बाध्य किया जा रहा है।
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हरियाणा अधिग्रहीत जमीनें वापस करने के फैसले पर यथास्थिति के हक में
हरियाणा के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट से अाग्रह किया कि पंजाब ने जो एसवाइएल समझौते के तहत किसानों की अधिग्रहीत जमीन वापस करने का फैसला लिया था, उसकी यथास्थिति बरकरार रखी जाए। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि वह अपने पुराने 2004 के स्टैंड पर कायम है। केंद्र ने कहा कि हम इस मामले में न कोई दस्तावेज दाखिल करेंगे और न ही स्टेटमेंट देंगे। सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है।
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क्या कहते हैं हरियाणा के राजनेता
'हमने दो सालों में जोरदार पैरवी कराई'
'' 10-12 वर्षों से सर्वोच्च न्यायालय में राष्ट्रपति संदर्भ के लिए लंबित पड़े सतलुज यमुना लिंक नहर मुद्दे की वर्तमान सरकार ने पिछले दो वर्षों के दौरान जोरदार वकालत कर सर्वोच्च न्यायालय में नियमित सुनवाई करवाई है। अब एसवाइएल का निर्णय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने अधीन सुरक्षित रखा है। हमें अपेक्षा है कि फैसला हरियाणा के हक में ही आएगा तथा सतलुज यमना लिंक नहर के हिस्से का पानी हरियाणा को हर हालत में मिलेगा। हरियाणा के हितों के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा। किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री कुछ भी कहे, वह ब्रह्मवाक्य नहीं होता। लोकतंत्र में हर राज्य को संविधान के प्रावधानों तथा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की अनुपालना करनी होती है तथा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से कोई सरकार असहमति नहीं जता सकती।
- मनोहर लाल, मुख्यमंत्री हरियाणा।
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'इनेलो खत्म कर चुका बादलों से रिश्ते'
हरियाणा सरअपने राज्य के हितों को लेकर चिंतित नहीं है। पिछले विधानसभा सत्र में हम पंजाब के शिरोमणि अकाली दल से अपना राजनीतिक रिश्ता तक खत्म कर चुके हैं। एसवाइएल नहर पर एक भी बूंद पानी हरियाणा को नहीं देने के पंजाब के मुख्यमंत्री के बयानों पर हरियाणा की कोई प्रतिक्रिया नहीं होने से लग रहा कि हरियाणा गंभीर नहीं है, लेकिन हरियाणा अपने हिस्सा का पानी लेने की हर लड़ाई लड़ेगा।
- अभय सिंह चौटाला, नेता विपक्ष, हरियाणा विधानसभा।
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'कांग्रेस ने एसवाइएल के लिए किए जोरदार प्रयास
'' एसवाइएल नहर के मसले पर हम किसी तरह के समझौते हक में नहीं हैं। हरियाणा के हितों के विपरीत फैसला आता है तो उसका जोरदार विरोध करते हुए सरकार से कानूनी पैरवी करने का दबाव बनाया जाएगा। कांग्रेस ने पिछले सालों में एसवाईएल नहर का पानी हरियाणा में लाने के लिए गंभीर प्रयास किए। उसी का नतीजा है कि अब हरियाणा के हक में नतीजा आ सकता है।
- भूपेंद्र सिंह हुड्डा, पूर्व मुख्यमंत्री, हरियाणा
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