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दाखिले में सीमित होगा सांसदों का विशेषाधिकार, गरीब बच्चों को देनी होगी वरीयता

केंद्रीय विद्यालयों में दाखिले के नए प्रावधानों में सांसद कोटा के तहत होने वाले दाखिले के लिए भी गरीब बच्चों को वरीयता देनी होगी।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 26 Dec 2016 10:17 PM (IST)Updated: Tue, 27 Dec 2016 12:49 AM (IST)

नई दिल्ली (मुकेश केजरीवाल)। केंद्रीय विद्यालयों में दाखिले के सांसद कोटा में जल्दी ही अहम बदलाव हो सकता है। नए प्रावधानों में सांसद कोटा के तहत होने वाले दाखिले के लिए भी गरीब बच्चों को वरीयता देनी होगी। पिछली सरकार के दौरान इस कोटे को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया था, मगर सांसदों के भारी विरोध के बाद इस फैसले को वापस लेना पड़ा था।

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देश भर में एक हजार से ज्यादा केंद्रीय विद्यालयों में 12 लाख से ज्यादा छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। अभी सांसदों को अपने क्षेत्र के किसी भी दस बच्चों के दाखिले की सिफारिश करने का विशेषाधिकार हासिल है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के एक वरिष्ठ सूत्र के मुताबिक देश भर के केंद्रीय विद्यालयों में दाखिले के लिए सांसद कोटा (सांसद संस्तुति पर प्रवेश) में बदले हुए नियम जल्दी ही घोषित हो सकते हैं। केंद्रीय विद्यालय संगठन (केवीएस) की हाल में हुई शीर्ष स्तरीय बैठक में यह तय किया गया है कि विशेष छूट प्रवेश योजना में गरीब छात्रों के दाखिले को प्राथमिकता दिया जाना सुनिश्चित किया जाएगा।

ऐसे में इसे पूरी तरह सांसदों के विशेषाधिकार पर छोड़ देने की बजाय इसके लिए कुछ प्रावधान तय किए जाएंगे। हालांकि अभी यह तय नहीं हुआ है कि इस कोटे के तहत सभी सीटें गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) के परिवारों के लिए ही तय की जाएं या फिर पांच लाख तक की सालाना पारिवारिक आय के लिए भी इसमें कोई संख्या तय की जाए। इस दौरान जातिगत आधार पर भी सब-कोटा तय करने का सुझाव आया था। मगर इस पर सहमति नहीं बनी।

इस समय देश भर के विभिन्न केंद्रीय विद्यालयों में 12.32 लाख छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। मौजूदा प्रावधान के मुताबिक लोकसभा और राज्य सभा के प्रत्येक सांसद को अपने निर्वाचन क्षेत्र से दस छात्रों की केंद्रीय विद्यालय में दाखिले की सिफारिश करने का अधिकार है। इस तरह इन स्कूलों में सालाना लगभग आठ हजार छात्र इस कोटे के तहत दाखिला पाते हैं। पहले सांसदों का कोटा छह छात्रों का था, जिसे पिछले साल अक्तूबर में बढ़ा कर दस कर दिया गया था। मगर अब तक इस सिफारिश के लिए छात्रों को चुनने की सांसदों को पूरी छूट होती थी। इसके लिए सिर्फ यही शर्त थी कि सांसद जिस बच्चे की सिफारिश करे वह उसके निर्वाचन क्षेत्र का होना चाहिए।

पिछली सरकार के दौरान तब के मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने केंद्रीय विद्यालयों के दाखिले में पारदर्शिता लाने के इरादे से सांसद कोटा को पूरी तरह समाप्त कर दिया था। मगर तब संसद में इसका भारी विरोध होने के बाद उन्हें यह कोटा दुबारा शुरू करना पड़ा था। सांसद कोटा को ले कर पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका पर भी सुनवाई चल रही है, जिसमें दावा किया गया है कि यह कोटा समानता के अधिकार के खिलाफ है।

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