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    विमानन व संचार क्षेत्र ने बंधाई नई उम्मीद

    By Kamal VermaEdited By:
    Updated: Tue, 27 Dec 2016 12:48 AM (IST)

    केंद्र में नई सरकार आने के बाद से ही विमानन समेत संचार के क्षेत्र में काफी काम हुआ है। इसके अलावा नई रेल परियोजनाओं पर भी काम तेज हुआ है।

    नई दिल्ली (संजय सिंह)। मोदी सरकार ने देश के बुनियादी ढांचे में सुधार को लेकर बड़ी उम्मीदें बंधाई हैं। ढाई साल में इस दिशा में काफी काम हुआ है। लेकिन जहां पिछले साल ज्यादातर गतिविधियां सड़क व रेलवे में दिखाई दीं। वहीं यह साल विमानन व संचार क्षेत्र के नाम रहा।

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    विमानन :

    लंबे अरसे बाद देश को नई एविएशन नीति प्राप्त हुई जिसने छोटी एयरलाइनों के विकास का रास्ता खोल दिया। यही नहीं, इसके बाद लाई गई रीजनल कनेक्टिविटी स्कीम (आरसीएस-उड़ान) ने इसके तौर तरीके भी स्पष्ट कर दिए। इन दो कदमों से आगे चल कर एविएशन क्षेत्र में देश का हुलिया पूरी तरह बदलने वाला है। जिसमें हर भौगोलिक क्षेत्र के साथ-साथ हर वर्ग तक एविएशन की पहुंच होगी। ऐसा पहली पहली बार हुआ है जब छोटी एयरलाइनों और छोटे शहरों के लिए विमानन क्षेत्र के दरवाजे खुले हैं।

    आरसीएस-उड़ान की घोषणा के बाद से अब तक लगभग दो दर्जन एयरलाइने इसके लिए आवेदन कर चुकी हैं। इन्हें छोटे शहरों के लिए उड़ाने भरने पर सरकार से सब्सिडी मिलेगी। स्कीम के जरिए सरकार का इरादा प्रदेशों की राजधानियों को रीजनल हब के तौर पर विकसित करने का है। जो महानगरों और छोटे नगरों के बीच की 'कनेक्टिंग प्वाइंट' का काम करेंगे।

    इसमें प्रति घंटे 2500 रुपये के किराये का प्रावधान रखा गया है जिससे हवाई यात्रा आम आदमी की पहुंच में हो सकेगी। हालांकि इससे महानगरों के बीच की उड़ाने कुछ महंगी हो सकती हैं। क्योंकि छोटी एयरलाइनों को सब्सिडी देने के लिए सरकार बड़ी एयरलाइनों के यात्रियों पर सेस लगाएगी। चंडीगढ़ जैसे कुछ नव विकसित एयरपोर्ट भी इस साल चालू हुए हैं।

    संचार :

    इस साल सबसे बड़ी स्पेक्ट्रम नीलामी हुई, जिससे सरकार को 63 हजार करोड़ रुपये की आमदनी हुई। हालांकि 4जी का कोई आवेदक नहीं आने से साढ़े चार लाख करोड़ की कमाई की सरकार की उम्मीद पर पानी फिर गया। लेकिन एक लाख मोबाइल टावरों की स्थापना से काल ड्राप की समस्या पर अंकुश लगने तथा रिलायंस जियो के पदार्पण व फ्री वाइस व डेटा प्लान से उपभोक्ताओं की चांदी हो गई। जियो के दबाव में दूसरे मोबाइल आपरेटरों को भी सस्ते प्लान लांच करने पड़े हैं।

    सड़क :

    पिछले साल के सड़क ठेकों पर इस साल काम तेज हुआ है। लंबित निर्माणाधीन परियोजनाओं के पूरा होने के मामले भी बढ़े हैं। लेकिन इस साल जितने ठेके दिए जाने थे, वे नहीं दिए जा सके हैं। नतीजतन, अगले साल सड़क निर्माण की रफ्तार कमजोर पड़ सकती है। दरअसल, इस साल चुनावी राज्यों पर मंत्रालय का ज्यादा फोकस रहा है। हालांकि इस कारण एचएच-24 के चौड़ीकरण का डेढ़ साल से अटका काम शुरू हो गया है। यह अलग बात है कि इसके लिए खुद प्रधानमंत्री को आगे आना पड़ा।

    इसमें एनएचएआइ के चेयरमैन की बलि भी हो गई। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब जैसे चुनावी राज्यों में सड़क परियोजनाओं के शिलान्यास और उद्घाटन धड़ाधड़ हो रहे हैं। यह अलग बात है कि तमाम कोशिशों के बावजूद निर्माणाधीन सड़क परियोजनाएं पूरी नहीं हो सकी हैं। इनमें दिल्ली-आगरा हाईवे, पानीपत-जालंधर हाईवे, मेरठ-देहरादून हाईवे, रामबन-ऊधमपुर हाईवे का चौड़ीकरण शामिल है। पूर्वोत्तर में सड़कों के ठेकों में तेजी आई है। लेकिन निर्माण कार्यो का रफ्तार पकड़ना अभी शेष है।

    रोजाना 30 किमी के लक्ष्य से पिछड़ने के कारण ही सरकार को स्टेट हाईवे को नेशनल हाईवे का दर्जा देने को विवश होना पड़ा है। इसकी भरपाई सागरमाला प्रोजेक्ट तथा चारधाम महामार्ग प्रोजेक्ट से होने की उम्मीद है। हरित हाईवे के जरिए स्वच्छ पर्यावरण व स्थानीय स्तर पर रोजगार का नया मॉडल पेश कर सरकार ने एक अच्छी पहल की है।

    रेलवे :

    नई रेल परियोजनाओं पर काम तेज हुआ है। चुनावी राज्यों में पुरानी निर्माणाधीन परियोजनाओं का काम आगे बढ़ा है। उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में नई व पुरानी दोनो तरह की परियोजनाएं आगे बढ़ रही हैं। दोहरीकरण और तिहरीकरण का काम भी तेज हुआ है। स्वच्छ ऊर्जा पर जोर के कारण विद्युतीकरण के लक्ष्य भी बढ़ा दिए गए हैं। पुखरायां हादसे के बाद सभी 50 हजार आइसीएफ बोगियों को एलएचबी में तब्दील करने का रोडमैप तैयार किया गया है। चेन्नई की इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में भी अब केवल एलएचबी कोच ही बनेंगे।

    हबीबगंज स्टेशन का ठेका दिए जाने के साथ स्टेशन विकास की दिशा में भी प्रगति हुई है। आनंद विहार और सूरत के ठेके भी जल्द दिए जाएंगे। कुछ और स्टेशन भी हैं। लेकिन इस मुहिम को कामयाब तभी माना जाएगा जब हबीबगंज में काम भी शुरू हो जाए। अभी तो जमीन पर कहीं कुछ दिखाई नहीं देता। जमीन पर तो केवल फे्रट कारीडोर दिखाई दे रहा है। हाईस्पीड में मुंबई-अहमदाबाद कारीडोर को छोड़ और कहीं गंभीरता नहीं दिखाई देती। मुंबई-अहमदाबाद प्रोजेक्ट भी पूरा एलीवेटेड बनाया जाएगा।

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