उत्तराखंड चुनाव 2017: शिक्षक न संसाधन, राज्य में बदहाल शिक्षा
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा और कांग्रेस के घोषणा पत्रों में शिक्षा का मुद्दा सर्वोच्च प्राथमिकता पर दिख रहा है, लेकिन हकीकत क्या है, आप खुद ही जान लीजिए।
देहरादून, [अनिल उपाध्याय]: उत्तराखंड के तमाम शहर शिक्षा हब के रूप में जाने जाते हैं। सरकारें भी कई मौकों पर राज्य को शिक्षा हब के रूप में विकसित करने के दावे कर चुकी हैं। ये तमाम दावे धरातल पर हवा नजर आते हैं। भाजपा और कांग्रेस के घोषणा पत्रों में शिक्षा का मुद्दा सर्वोच्च प्राथमिकता पर दिख रहा है, लेकिन ये सिर्फ मुद्दा बनकर ही रह जाता है।
राज्य में स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च, तकनीकी और चिकित्सा शिक्षा तक बदहाल हैं। स्कूली शिक्षा जहां गुणवत्ता के मोर्चे पर जूझ रही है, वहीं उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा और चिकित्सा शिक्षा जुगाड़ तंत्र के सहारे रेंग रही है। राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी ही है कि आर्थिक रूप से कमजोर राज्य के किशोर-युवा निजी संस्थानों से महंगी शिक्षा प्राप्त करने को मजबूर हैं।
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राज्य की शिक्षा व्यवस्था की स्थिति पर गौर करें तो सैकड़ों रिक्त पद, संविदा और अतिथि शिक्षकों के भरोसे और कर्मचारी आंदोलनों के कारण राज्य शिक्षा गुणवत्ता के मोर्च पर सफल नहीं हो पा रही है। तमाम सर्वे रिपोर्ट बताती हैं कि राज्य में सरकारी शिक्षा बदहाल है। प्राथमिक विद्यालयों में 40 फीसद से ज्यादा बच्चे गुणवत्ता के मामले में औसत से कम हैं।
वहीं, उच्च शिक्षा की बात करें तो सरकार राज्य में बेहतर शिक्षा संस्थानों की स्थापना से लेकर मौजूदा संस्थानों में गुणवत्तापरक शिक्षा संसाधन विकसित करने में नाकाम नजर आती है। राज्य के सौ से अधिक महाविद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी हैं। पुराने मानकों पर भी शिक्षकों की तैनाती नहीं हो सकी। नए मानकों की बात करें तो 50 फीसद पद रिक्त दिखते हैं।
वहीं च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम(सीबीसीएस) को लागू तो कर दिया गया, लेकिन इसके मुताबिक संसाधन विकसित नहीं किए जा सके। इसका परिणाम यह हुआ कि छात्रों को न शिक्षक मिल पा रहे हैं, न कक्षाएं लग पा रही हैं और न ही यूजीसी मानकों के अनुसार 180 दिन के न्यूनतम कार्यदिवस ही संचालित हो पा रहे हैं। मेडिकल, तकनीकी और व्यवसायिक शिक्षा की स्थिति भी कमोबेश यही है। हर साल तकनीकी शिक्षण संस्थानों में प्रवेश का ग्र्राफ गिरता जा रहा है। तमाम संस्थान बंदी की कगार पर हैं। सरकारी संस्थानों से भी छात्रों का मोह भंग हो रहा है। स्थापना के 11 साल बाद भी तकनीकी विश्वविद्यालय की परिनियमावली तक अस्तित्व में नहीं आ पाई। स्थाई तैनातियों के लिए अभी तक ठोस नीति नहीं बन पाई है।
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चिकित्सा शिक्षा में भी शिक्षकों और संसाधनों की भारी कमी नजर आती है। राज्य के तीन सरकारी मेडिकल कॉलेजों में आए दिन इस मुद्दे को लेकर बवाल होता रहता है। आयुर्वेद विश्वविद्यालय और परिसरों पर मान्यता जाने का खतरा मंडरा रहा है। इसके बावजूद सरकार केवल वादों और दावों तक सीमित है।
गुणवत्ता पर खरी नहीं स्कूली शिक्षा
प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक राज्य के संस्थान कहीं नहीं ठहरते हैं। राज्य को अगर शिक्षा के क्षेत्र में कुछ पहचान मिली है तो वह निजी क्षेत्र के खाते में जाती है। राज्य के सरकारी स्कूलों में शिक्षा और संसाधनों की स्थिति पर हाल ही में जारी प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन की एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर) के आंकड़े इसकी तस्दीक करते हैं।
इस रिपोर्ट को आधार माना जाए तो उत्तराखंड में गुणवत्तापरक शिक्षा अभी भी दूर की कौड़ी दिखाई पड़ रही है। इस रिपोर्ट में राज्यवार बच्चों के लर्निंग लेवल, आरटीई के मानक, उपलब्ध संसाधन आदि पर सर्वे किया गया है। वर्ष 2016 में उत्तराखंड में 388 गांवों का सर्वे किया गया। इनमें 7528 घरों व तीन से 16 आयु वर्ग के 11255 बच्चों को शामिल किया गया। इस रिपोर्ट को गुणवत्ता के आईने में देखें तो करीब 40 फीसद छात्रों की शैक्षिक गुणवत्ता औसत से कम है।
अभी भी छात्रों की एक बड़ी संख्या हिंदी व अंग्रेजी पढऩे-लिखने और गणित के सवाल हल करने में पिछड़ी है। राहत की बात यह है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद नामांकन बढ़ा है। यह अलग बात है कि आरटीई के अनुरूप अभी भी सुविधाओं का अभाव दिखता है।
स्कूली शिक्षा की तस्वीर
कुल स्कूल-प्रारंभिक शिक्षा
कक्षा 1 से 5-15691
कक्षा 1 से 8-1377
कक्षा 6 से 8-3522
कुल-20590
कुल स्कूल-माध्यमिक शिक्षा
कक्षा 1 से 10-151
कक्षा 1 से 12-460
कक्षा 6 से 10-896
कक्षा 6 से 12-1568
कभा 8 से 10-237
कक्षा 8 से 12-114
कक्षा 11 से 12-13
कुल-3439
स्कूलों में नामांकन
कभा 1 से 5-4,72,873
कक्षा 6 से 8-2,78,044
कक्षा 9 से 12-7,11,258
कुल-14,62,175
रिक्तियों की स्थिति(सभी पद शामिल)
माध्यमिक शिक्षा
कुल पद-46,221
पदों पर तैनाती-31,330
रिक्त पद-14,891
प्रारंभिक शिक्षा
कुल पद-46,545
पदों पर तैनाती-33,928
रिक्त पद-12,617
(उपरोक्त सभी आंकड़े शिक्षा विभाग की वेबसाइट से प्राप्त)
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पढ़ने का स्तर
कक्षा-अक्षर भी नहीं-अक्षर-शब्द
एक-31.8-38.1-15.4
दो-11-29.7-20.2
तीन-6.2-17.5-16
चार -5.2-11.6-12.2
पांच-4.7-6.2-9.8
छह-2.2-5.3-7.5
सात-3.8-5.9-5.4
आठ -1.0-2.6-4
गणित का ज्ञान
कक्षा-9 तक के अंक की पहचान नहीं-घटाव-भाग
एक-26.6-5.2-1.4
दो- 9.2-17.7-3.1
तीन- 5.7-25.6-11
चार-4.8-26.9-22.5
पांच-2.2-23.6-37
छह- 2.5-28.9-33.1
सात-2.8-23.7-39.3
आठ-0.9-23.5-46
अंग्रेजी ज्ञान
कक्षा-बड़े अक्षर-छोटे अक्षर-सरल शब्द-सरल वाक्य
एक-34.5-20.8-24-14.5-6.3
दो-15.9-19.6-31.2-18.6-14.7
तीन-10.5-16.1-27.4-24.2-21.9
चार-9.2-12.3-27.3-21.7-29.5
पांच-5.8-9.9-20.8-25.2-38.3
छह-3.9-5.9-22.5-28.4-39.3
सात-5-5.4-19.8-24.1-45.7
आठ-2.1-5.1-16.6-22.7-53.5
आंकड़ों पर एक नजर
क्लास तीन के बच्चों को गुणा भाग का ज्ञान
साल प्रतिशत
2007 38.6
2008 34.9
2009 37.7
2010 32.4
2011 23.7
2012 23.4
2013 16.8
2014 17.2
2016 23.3
निजी स्कूलों में नामांकन का ग्राफ
साल प्रतिशत
2006 21.6
2007 25.0
2008 27.9
2009 24.7
2010 29.0
2011 31.3
2012 36.6
2013 39.4
2014 37.5
2016 41.6
सुविधाओं की स्थिति
पेयजल स्थिति
सुविधा-2010 -2012-2014-2016
पेयजल की सुविधा नहीं-22.1-21.7-17.7-14.0
सुविधा है लेकिन पेयजल उपलब्ध नहीं-9.7-7.3-13.0 13.7
देहरादून, [अनिल उपाध्याय]: उत्तराखंड के तमाम शहर शिक्षा हब के रूप में जाने जाते हैं। सरकारें भी कई मौकों पर राज्य को शिक्षा हब के रूप में विकसित करने के दावे कर चुकी हैं। ये तमाम दावे धरातल पर हवा नजर आते हैं। भाजपा और कांग्रेस के घोषणा पत्रों में शिक्षा का मुद्दा सर्वोच्च प्राथमिकता पर दिख रहा है, लेकिन ये सिर्फ मुद्दा बनकर ही रह जाता है।
राज्य में स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च, तकनीकी और चिकित्सा शिक्षा तक बदहाल हैं। स्कूली शिक्षा जहां गुणवत्ता के मोर्चे पर जूझ रही है, वहीं उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा और चिकित्सा शिक्षा जुगाड़ तंत्र के सहारे रेंग रही है। राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी ही है कि आर्थिक रूप से कमजोर राज्य के किशोर-युवा निजी संस्थानों से महंगी शिक्षा प्राप्त करने को मजबूर हैं।
राज्य की शिक्षा व्यवस्था की स्थिति पर गौर करें तो सैकड़ों रिक्त पद, संविदा और अतिथि शिक्षकों के भरोसे और कर्मचारी आंदोलनों के कारण राज्य शिक्षा गुणवत्ता के मोर्च पर सफल नहीं हो पा रही है। तमाम सर्वे रिपोर्ट बताती हैं कि राज्य में सरकारी शिक्षा बदहाल है। प्राथमिक विद्यालयों में 40 फीसद से ज्यादा बच्चे गुणवत्ता के मामले में औसत से कम हैं।
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वहीं, उच्च शिक्षा की बात करें तो सरकार राज्य में बेहतर शिक्षा संस्थानों की स्थापना से लेकर मौजूदा संस्थानों में गुणवत्तापरक शिक्षा संसाधन विकसित करने में नाकाम नजर आती है। राज्य के सौ से अधिक महाविद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी हैं। पुराने मानकों पर भी शिक्षकों की तैनाती नहीं हो सकी। नए मानकों की बात करें तो 50 फीसद पद रिक्त दिखते हैं।
वहीं च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम(सीबीसीएस) को लागू तो कर दिया गया, लेकिन इसके मुताबिक संसाधन विकसित नहीं किए जा सके। इसका परिणाम यह हुआ कि छात्रों को न शिक्षक मिल पा रहे हैं, न कक्षाएं लग पा रही हैं और न ही यूजीसी मानकों के अनुसार 180 दिन के न्यूनतम कार्यदिवस ही संचालित हो पा रहे हैं। मेडिकल, तकनीकी और व्यवसायिक शिक्षा की स्थिति भी कमोबेश यही है। हर साल तकनीकी शिक्षण संस्थानों में प्रवेश का ग्र्राफ गिरता जा रहा है। तमाम संस्थान बंदी की कगार पर हैं। सरकारी संस्थानों से भी छात्रों का मोह भंग हो रहा है। स्थापना के 11 साल बाद भी तकनीकी विश्वविद्यालय की परिनियमावली तक अस्तित्व में नहीं आ पाई। स्थाई तैनातियों के लिए अभी तक ठोस नीति नहीं बन पाई है।
चिकित्सा शिक्षा में भी शिक्षकों और संसाधनों की भारी कमी नजर आती है। राज्य के तीन सरकारी मेडिकल कॉलेजों में आए दिन इस मुद्दे को लेकर बवाल होता रहता है। आयुर्वेद विश्वविद्यालय और परिसरों पर मान्यता जाने का खतरा मंडरा रहा है। इसके बावजूद सरकार केवल वादों और दावों तक सीमित है।
गुणवत्ता पर खरी नहीं स्कूली शिक्षा
प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक राज्य के संस्थान कहीं नहीं ठहरते हैं। राज्य को अगर शिक्षा के क्षेत्र में कुछ पहचान मिली है तो वह निजी क्षेत्र के खाते में जाती है। राज्य के सरकारी स्कूलों में शिक्षा और संसाधनों की स्थिति पर हाल ही में जारी प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन की एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर) के आंकड़े इसकी तस्दीक करते हैं।
इस रिपोर्ट को आधार माना जाए तो उत्तराखंड में गुणवत्तापरक शिक्षा अभी भी दूर की कौड़ी दिखाई पड़ रही है। इस रिपोर्ट में राज्यवार बच्चों के लर्निंग लेवल, आरटीई के मानक, उपलब्ध संसाधन आदि पर सर्वे किया गया है। वर्ष 2016 में उत्तराखंड में 388 गांवों का सर्वे किया गया। इनमें 7528 घरों व तीन से 16 आयु वर्ग के 11255 बच्चों को शामिल किया गया। इस रिपोर्ट को गुणवत्ता के आईने में देखें तो करीब 40 फीसद छात्रों की शैक्षिक गुणवत्ता औसत से कम है।
अभी भी छात्रों की एक बड़ी संख्या हिंदी व अंग्रेजी पढऩे-लिखने और गणित के सवाल हल करने में पिछड़ी है। राहत की बात यह है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद नामांकन बढ़ा है। यह अलग बात है कि आरटीई के अनुरूप अभी भी सुविधाओं का अभाव दिखता है।
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स्कूली शिक्षा की तस्वीर
कुल स्कूल-प्रारंभिक शिक्षा
कक्षा 1 से 5-15691
कक्षा 1 से 8-1377
कक्षा 6 से 8-3522
कुल-20590
कुल स्कूल-माध्यमिक शिक्षा
कक्षा 1 से 10-151
कक्षा 1 से 12-460
कक्षा 6 से 10-896
कक्षा 6 से 12-1568
कभा 8 से 10-237
कक्षा 8 से 12-114
कक्षा 11 से 12-13
कुल-3439
स्कूलों में नामांकन
कभा 1 से 5-4,72,873
कक्षा 6 से 8-2,78,044
कक्षा 9 से 12-7,11,258
कुल-14,62,175
रिक्तियों की स्थिति(सभी पद शामिल)
माध्यमिक शिक्षा
कुल पद-46,221
पदों पर तैनाती-31,330
रिक्त पद-14,891
प्रारंभिक शिक्षा
कुल पद-46,545
पदों पर तैनाती-33,928
रिक्त पद-12,617
(उपरोक्त सभी आंकड़े शिक्षा विभाग की वेबसाइट से प्राप्त)
पढ़ने का स्तर
कक्षा-अक्षर भी नहीं-अक्षर-शब्द
एक-31.8-38.1-15.4
दो-11-29.7-20.2
तीन-6.2-17.5-16
चार -5.2-11.6-12.2
पांच-4.7-6.2-9.8
छह-2.2-5.3-7.5
सात-3.8-5.9-5.4
आठ -1.0-2.6-4
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गणित का ज्ञान
कक्षा-9 तक के अंक की पहचान नहीं-घटाव-भाग
एक-26.6-5.2-1.4
दो- 9.2-17.7-3.1
तीन- 5.7-25.6-11
चार-4.8-26.9-22.5
पांच-2.2-23.6-37
छह- 2.5-28.9-33.1
सात-2.8-23.7-39.3
आठ-0.9-23.5-46
अंग्रेजी ज्ञान
कक्षा-बड़े अक्षर-छोटे अक्षर-सरल शब्द-सरल वाक्य
एक-34.5-20.8-24-14.5-6.3
दो-15.9-19.6-31.2-18.6-14.7
तीन-10.5-16.1-27.4-24.2-21.9
चार-9.2-12.3-27.3-21.7-29.5
पांच-5.8-9.9-20.8-25.2-38.3
छह-3.9-5.9-22.5-28.4-39.3
सात-5-5.4-19.8-24.1-45.7
आठ-2.1-5.1-16.6-22.7-53.5
आंकड़ों पर एक नजर
क्लास तीन के बच्चों को गुणा भाग का ज्ञान
साल प्रतिशत
2007 38.6
2008 34.9
2009 37.7
2010 32.4
2011 23.7
2012 23.4
2013 16.8
2014 17.2
2016 23.3
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निजी स्कूलों में नामांकन का ग्राफ
साल प्रतिशत
2006 21.6
2007 25.0
2008 27.9
2009 24.7
2010 29.0
2011 31.3
2012 36.6
2013 39.4
2014 37.5
2016 41.6
सुविधाओं की स्थिति
पेयजल स्थिति
सुविधा-2010 -2012-2014-2016
पेयजल की सुविधा नहीं-22.1-21.7-17.7-14.0
सुविधा है लेकिन पेयजल उपलब्ध नहीं-9.7-7.3-13.0 13.7
शौचालय
स्थिति-2010-2012-2014-2016
शौचालय की सुविधा नहीं-5.8-2.9-5.0-2.8
सुविधा है, लेकिन प्रयोग करने योग्य नहीं-40.9-32.7-25.8-22.4
लड़कियों के लिए शौचालय
स्थिति-2010-2012-2014-2016
लड़कियों के कोई अलग शौचालय नहीं-47.7-16.0-26.2-17.4
सुविधा है लेकिन ताला लगा मिला-11.5-12.3-8.8-10.0
सुविधा है लेकिन प्रयोग योग्य नहीं-16.9-18.9-11.3-11.4
(उपरोक्त सभी आंकड़े प्रतिशत और असर-2016 की रिपोर्ट के आधार पर)
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उच्च शिक्षा को ऊंचाई का इंतजार
राज्य में उच्च शिक्षा में नामांकन की स्थिति भले ही राष्ट्रीय औसत से बेहतर हो, लेकिन गुणवत्ता के मामले में राज्य के संस्थान कहीं नहीं ठहरते। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता के सर्वे देखें तो राज्य से कोई संस्थान इस दौड़ में दूर तक नहीं दिखता। तकनीकी शिक्षा के मामले में आइआइटी रुड़की और जीबी पंत विश्वविद्यालय, पंतनगर ही राज्य की नाक बचाते रहे हैं।
इनके अलावा राज्य के पास कोई ऐसा संस्थान नहीं है, जो राज्य को शिक्षा के क्षेत्र में अहम स्थान पर खड़ा कर सके। राज्य के विश्वविद्यालयों की बात करें तो गढ़वाल और कुमाऊं में एक-एक संबद्धता विश्वविद्यालय हैं। इनके अलावा तकनीकी शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा, आयुर्वेद, औद्यानिकी, संस्कृत शिक्षा के लिए विश्वविद्यालय स्थापित किए गए हैं। साथ ही मुक्त विश्वविद्यालय और दून विश्वविद्यालय राज्य के ड्रीम प्रोजेक्ट्स का हिस्सा हैं।
इन सभी की स्थिति कमोबेश एक जैसी ही है। गढ़वाल क्षेत्र में उच्च शिक्षा का जिम्मा संभाल रहे श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय में तीन साल में तैनाती तक नहीं हो पाई हैं। यहां महज 19 लोग सात जिलों के संस्थानों का जिम्मा संभाल रहे हैं। यही स्थिति ढाई लाख छात्रों का जिम्मा संभालने वाले उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय की भी है।
चिकित्सा शिक्षा विश्वविद्यालय किराये के भवन और जुगाड़ के तंत्र पर संचालित है। दून विश्वविद्याल की स्थिति थोड़ा बेहतर है, लेकिन कमियां यहां भी तमाम हैं। तकनीकी शिक्षा का जिम्मा संभाल रहे उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय और विवादों का पुराना नाता रहा है। विश्वविद्यालय परिसर और संघटक संस्थानों में तमाम पदों पर संविदा से तैनाती हैं। स्थाई पदों के मामले में परिसर भी सूना ही है।
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उच्च शिक्षा की तस्वीर
विश्वविद्यालय
केंद्रीय विश्वविद्यालय-01
राज्य विश्वविद्यालय-10
निजी विश्वविद्यालय-14
डीम्ड विश्वविद्यालय-03
महाविद्यालय
राजकीय-99 (29 पीजी, एक विधि)
स्वायत्त-01
सहायता प्राप्त-15
अन्य- 300(लगभग)
नामांकन की स्थिति
महाविद्यालयों में- 1.50 लाख (लगभग)
अन्य संस्थानों में- 3.00 लाख(लगभग)
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रिक्तियों की स्थिति
राजकीय महाविद्यालयों में-38.3 फीसद
सहायता प्राप्त महाविद्यालयों में-27.5 फीसद
राज्य विश्वविद्यालयों में-50 फीसद से अधिक
(सभी आंकड़े उच्च शिक्षा निदेशालय और रूसा की वेबसाइट के आधार पर)
स्थिति-2010-2012-2014-2016
शौचालय की सुविधा नहीं-5.8-2.9-5.0-2.8
सुविधा है, लेकिन प्रयोग करने योग्य नहीं-40.9-32.7-25.8-22.4
लड़कियों के लिए शौचालय
स्थिति-2010-2012-2014-2016
लड़कियों के कोई अलग शौचालय नहीं-47.7-16.0-26.2-17.4
सुविधा है लेकिन ताला लगा मिला-11.5-12.3-8.8-10.0
सुविधा है लेकिन प्रयोग योग्य नहीं-16.9-18.9-11.3-11.4
(उपरोक्त सभी आंकड़े प्रतिशत और असर-2016 की रिपोर्ट के आधार पर)
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उच्च शिक्षा को ऊंचाई का इंतजार
राज्य में उच्च शिक्षा में नामांकन की स्थिति भले ही राष्ट्रीय औसत से बेहतर हो, लेकिन गुणवत्ता के मामले में राज्य के संस्थान कहीं नहीं ठहरते। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता के सर्वे देखें तो राज्य से कोई संस्थान इस दौड़ में दूर तक नहीं दिखता। तकनीकी शिक्षा के मामले में आइआइटी रुड़की और जीबी पंत विश्वविद्यालय, पंतनगर ही राज्य की नाक बचाते रहे हैं।
इनके अलावा राज्य के पास कोई ऐसा संस्थान नहीं है, जो राज्य को शिक्षा के क्षेत्र में अहम स्थान पर खड़ा कर सके। राज्य के विश्वविद्यालयों की बात करें तो गढ़वाल और कुमाऊं में एक-एक संबद्धता विश्वविद्यालय हैं। इनके अलावा तकनीकी शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा, आयुर्वेद, औद्यानिकी, संस्कृत शिक्षा के लिए विश्वविद्यालय स्थापित किए गए हैं। साथ ही मुक्त विश्वविद्यालय और दून विश्वविद्यालय राज्य के ड्रीम प्रोजेक्ट्स का हिस्सा हैं।
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इन सभी की स्थिति कमोबेश एक जैसी ही है। गढ़वाल क्षेत्र में उच्च शिक्षा का जिम्मा संभाल रहे श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय में तीन साल में तैनाती तक नहीं हो पाई हैं। यहां महज 19 लोग सात जिलों के संस्थानों का जिम्मा संभाल रहे हैं। यही स्थिति ढाई लाख छात्रों का जिम्मा संभालने वाले उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय की भी है।
चिकित्सा शिक्षा विश्वविद्यालय किराये के भवन और जुगाड़ के तंत्र पर संचालित है। दून विश्वविद्याल की स्थिति थोड़ा बेहतर है, लेकिन कमियां यहां भी तमाम हैं। तकनीकी शिक्षा का जिम्मा संभाल रहे उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय और विवादों का पुराना नाता रहा है। विश्वविद्यालय परिसर और संघटक संस्थानों में तमाम पदों पर संविदा से तैनाती हैं। स्थाई पदों के मामले में परिसर भी सूना ही है।
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उच्च शिक्षा की तस्वीर
विश्वविद्यालय
केंद्रीय विश्वविद्यालय-01
राज्य विश्वविद्यालय-10
निजी विश्वविद्यालय-14
डीम्ड विश्वविद्यालय-03
महाविद्यालय
राजकीय-99 (29 पीजी, एक विधि)
स्वायत्त-01
सहायता प्राप्त-15
अन्य- 300(लगभग)
नामांकन की स्थिति
महाविद्यालयों में- 1.50 लाख (लगभग)
अन्य संस्थानों में- 3.00 लाख(लगभग)
रिक्तियों की स्थिति
राजकीय महाविद्यालयों में-38.3 फीसद
सहायता प्राप्त महाविद्यालयों में-27.5 फीसद
राज्य विश्वविद्यालयों में-50 फीसद से अधिक
(सभी आंकड़े उच्च शिक्षा निदेशालय और रूसा की वेबसाइट के आधार पर)
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