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    परिवार व स्कूल दोनों ही बच्चों को दें सुरक्षित और आत्मीय वातावरण, तभी स्‍कूलों में रुकेगी ह‍िंसा

    इस लेख में बच्चों में बढ़ती नकारात्मकता और हिंसा पर चिंता व्यक्त की गई है। मनोविज्ञानी और अभिभावकों का मानना है कि परिवार विद्यालय और समाज बच्चों को सही मार्गदर्शन देने में असफल हो रहे हैं। बच्चों के साथ संवाद की कमी मोबाइल का अत्यधिक उपयोग और नैतिक मूल्यों से दूरी उन्हें हिंसक बना रही है।

    By Mukesh Chandra Srivastava Edited By: Abhishek sharma Updated: Mon, 25 Aug 2025 06:29 PM (IST)
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    बच्‍चों के मान‍स‍िक स्‍वास्‍थ्‍य पर और भी ध्यान देने की जरूरत है।

    जागरण संवाददाता, वाराणसी। कुछ बच्चे अक्सर ‘नहीं’ वाली बातें सुनते हैं। अक्सर माता-पिता जानते हैं कि वे क्या नहीं चाहते, इसलिए वे ‘नहीं’ वाली बातें कहकर शुरुआत करते हैं। ‘नहीं’ वाली बातों का नुकसान यह है कि ये उस सकारात्मक व्यवहार को बढ़ावा नहीं देतीं जो आप देखना चाहते हैं। बल्कि, ये उस व्यवहार को और मजबूत करती हैं जो आप नहीं चाहते।

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    ऐसे में केवल निर्देश देने के बजाय, अपने बच्चे के साथ दो-तरफा बातचीत करते रहना चाहिए। इसका मतलब है कि आप दोनों बातें करें और बच्चे की बात सुनें। अगर आपके बच्चे की शब्दावली या रुचियां सीमित हैं, तो यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन अगर आप अभी और भविष्य में एक स्वस्थ रिश्ता चाहते हैं, तो अभ्यास करना ज़रूरी है। अन्यथा बच्चों में नकारात्मकता बढ़ेगी। ऐसे बच्चे हिंसक भी हो सकते हैं। ऐसे में हम सभी की जिम्मेदारी बनती है कि बच्चों के साथ संवाद बढ़ाए।

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    यह सिर्फ परिजन की ही जिम्मेदारी नहीं है बल्कि शिक्षक, स्कूल प्रबंधन की अधिक हो जाती है। स्कूल में निरंतर ही काउंसलिंग की व्यवस्था होनी चाहिए। ताकि किसी हादसे को रोका जा सके। जैसे की पिछले दिनों गाजीपुर में छात्रों ने एक छात्र की चाकू मारकर हत्या करने की घटना ने सभी को झकझोर कर दिया था। इस गंभीर मामले पर दैनिक जागरण ने समाचारीय अभियान शुरू किया है। इसी के तहत मनो विज्ञानी एवं अभिभावक अपने विचार रखे रहे हैं। उनका कहना है कि जब परिवार और स्कूल दोनों ही बच्चों को सुरक्षित और आत्मीय वातावरण देंगे, तभी वे अच्छे नागरिक बन पाएंगे और समाज में हिंसा जैसी घटनाएं रुक सकेंगी।

    महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के मनोविज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. शेफाली वर्मा ठकराल बताती हैं कि माता-पिता अक्सर अपने बच्चों से ‘तुम’ वाले वाक्यों में बात करते हैं: ‘तुम बहुत गंदे हो,’ ‘तुम बहुत परेशान करने वाले हो’, या ‘तुम मूर्ख हो’,। ‘मैं’ वाले वाक्यों का इस्तेमाल करने से हमें यह स्पष्ट रूप से बताने में मदद मिल सकती है कि हमारे बच्चे का व्यवहार हम पर कैसा प्रभाव डाल रहा है।

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    इससे आपके बच्चे को यह समझने में भी मदद मिलती है कि उससे क्या अपेक्षाएं की जाती हैं और उस पर बदलाव लाने की ज़िम्मेदारी भी बढ़ जाती है। ऐसे में हमें बच्चों के साथ संवाद करने के कुछ सामान्य लेकिन बेकार तरीके हैं, उनका मजाक उड़ाना, उन्हें शर्मिंदा करना और गालियां देना। इस तरह के संवाद से माता-पिता और बच्चे के रिश्ते में समस्याएं पैदा हो सकती हैं। तुम दो साल के बच्चे की तरह व्यवहार कर रहे हो, तुम मुझे शर्मिंदा कर रहे हो, या तुम बुरे हो रहे हो जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने से बचें। हमें बच्चाें के प्रति सकारात्मक रूख रखना होगा।

    अपने बच्चे को दिखाएं कि आप उन्हें स्वीकार करते हैं

    - प्रो. शेफाली बाती हैं कि जब आपका बच्चा यह जान जाता है कि आप उसे जैसी है वैसी ही स्वीकार करते हैं, न कि जैसा आप उसे देखना चाहते हैं, तो सब कुछ बदल जाता है। इससे आपके बच्चे को बदलने और अपने बारे में अच्छा महसूस करने का मौका मिलता है। जब आपका बच्चा अपने बारे में अच्छा महसूस करता है, तो उसके दूसरों के साथ घुलने-मिलने की संभावना बढ़ जाती है। वह अपने विचारों और भावनाओं को साझा करने में भी सुरक्षित महसूस करता है।

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    कुछ टिप्स :

    - बच्चों से हमेशा संवाद करते रहें।

    - बच्चों की भावनाओं को समझें।

    - अभिभावक व शिक्षक भी भावनात्मक लगाव रखें।

    - बच्चे के साथ दिल खोलकर बातें करनी चाहिए।

    - बच्चों के साथ अधिक से अधिक समझ गुजारें।

    - मोबाइल व इंटरनेट वाले गैजेट से बच्चों को दूर रखे।

    बोले अभिभावक :

    भारत में स्कूली बच्चों में बढ़ती आक्रामकता और आवेश अब गंभीर चिंता का विषय बन गया है। पहले ऐसी घटनाएं अधिकतर पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका में ही देखने को मिलती थीं। भारत की परंपरा में परिवार केवल माता-पिता तक सीमित नहीं रहा, बल्कि दादा-दादी, चाचा-चाची जैसे सभी सदस्य मिलकर बच्चे की परवरिश में योगदान देते रहे हैं। इसी कारण कहा गया है “पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं।” यानी बच्चे के बचपन से ही उसके भविष्य का संकेत मिल जाता था। लेकिन आज की स्थिति बदल गई है। बच्चों के व्यवहार का सही आकलन करना कठिन होता जा रहा है। इसका प्रमुख कारण परिवार और बच्चों के बीच संवाद की कमी है। आज आवश्यकता है कि माता-पिता बच्चों से खुलकर संवाद करें, सही-गलत का स्पष्ट भेद सिखाएं और उन्हें अनुशासन के साथ स्वतंत्रता दें। तभी भविष्य की पीढ़ी संतुलित और संवेदनशील बन पाएगी। - प्रज्ञा शुक्ला, एयरपोर्ट कालोनी

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    बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण में परिवार समाज और विद्यालय तीनों ही असफल हो रहे हैं। छोटे परिवार बच्चों को समय नहीं दे पा रहे हैं। विद्यालयों के अत्यधिक प्रोफेशनल होने से पश्चिमीकरण और बाजारीकरण के प्रभाव में बच्चे सामाजिकता, नैतिकता और संस्कार से दूर हो रहे हैं। अंग्रेजी भाषा की होड़ में अंग्रेजियत से प्रेम और स्वभाषा की हीनता बच्चों को संस्कार विहीन बना रहा है। अभिभावकों को इसे रोकना ही होगा। माता-पिता और गुरु के प्रति आदर भाव जगाने से यह आसान हो सकता है। साथ ही स्कूलों को भी इस पर ध्यान देना चाहिए। अभिभावक व्यस्त जीवनशैली के बची भी बच्चों के साथ समय बिताएं। कई माता-पिता अति-संरक्षण की प्रवृत्ति अपनाते हैं। -श्वेता श्रीवास्तव, कंचनपुर चितईपुर

    पिछले कुछ दिनों में आई घटनाओं को देखते हुए ऐसा लगता है कि आजकल परिवारों में बच्चे और माता-पिता आपस में खुलकर बात नहीं कर पाते। बच्चों को मोबाइल और अकेले रहना ज़्यादा अच्छा लगने लगा है। यही दूरी और संवादहीनता उन्हें हिंसक प्रवृत्तियों की ओर धकेल रही है। ऐसी घटनाओं के समाधान के लिए माता-पिता और शिक्षकों दोनों को आगे आना होगा। अभिभावकों को बच्चों के साथ समय बिताना चाहिए और उनकी समस्याओं को समझने की कोशिश करनी चाहिए। बच्चों से मित्रवत संवाद जरूरी है, ताकि वे अपनी उलझनें खुलकर बता सकें। स्कूलों को केवल पढ़ाई तक सीमित न रहकर बच्चों में आपसी सहयोग, साझा करने की आदत और नैतिक मूल्यों का पाठ पढ़ाना होगा। - नीलम राय, सारनाथ

    सबसे पहले हम अभिभावकों को बच्चों के हाथों से मोबाइल सहित हर वो गैजेट लेना होगा जो इंटरनेट से जुड़ा है। बच्चे मोबाइल पर हिंसक गेम खेलते हैं। उस गेम में जब वो हारने लगते हैं तो उसे रीसेट कर देते हैं। आज के बच्चे हारना पसंद नहीं करते। जहां हारने लगते हैं उसे नष्ट करने की प्रवृत्ति हो गई है। यह अत्यंत खतरनाक परिस्थिति है। अभिभावकों को कम से कम दो घंटे बच्चे के साथ दिल खोलकर बातें करनी चाहिए। साथ में खेलना चाहिए। रिश्तेदारों से मिलवाएं। रिश्तों के महत्व को बताएं। बच्चों के मन से समाप्त होती संवेदना घातक भविष्य की ओर इशारा कर रही है। - अभिलाषा भट्ट, नगवां, वाराणसी

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    बच्चों को हिंसक बनाने में सबसे बड़ा रोल इंटरनेट का है। कई बच्चे बिना कुछ सिखाए ही मोबाइल देखकर बहुत कुछ सीख जा रहे हैं। ऐसे में अभिभावकों को बहुत अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इनदिनों माता-पिता दोनों को ही हमेशा ध्यान देना होगा कि बच्चे मोबाइल पर क्या देख रहे हैं। बच्चों के साथ माता-पिता को अधिक से अधिक समय बिताना चाहिए। साथ ही बच्चों के साथ फ्रेंडली व्यवहार रखना चाहिए। यदि बच्चे केवल नैतिक सिद्धांत सीखेंगे और जीवन के व्यवहारिक कौशलों से वंचित रहेंगे तो वे भविष्य की कठिनाइयों को हल करने में कमजोर पड़ सकते हैं। जब बच्चा गलती करता है, तो भी वे उसे बचाने की कोशिश करते हैं और गलत को सही ठहराते हैं। इससे बच्चों में आत्मनियंत्रण की बजाय जिद और आक्रामकता पनपती है। - सोनाली गुप्ता, चेतगंज

    स्टूडेंट्स द्वारा ऐसी हरकतों को रोका जाना बहुत जरूरी है और इसके लिए अभिभावकों, टीचर्स व स्कूल प्रशासन सबको मिल कर ध्यान देना होगा। सबसे महत्वपूर्ण है कि स्कूल की ऐसे सार्वजनिक जगहों पर जैसे कारिडोर, बाथरूम आदि जगहों पर सीसीटीवी की व्यवस्था हो और एक एक स्टाफ रहे निगरानी के लिए। घर पे भी अभिभावकों को अपने बच्चों से दोस्ताना संवाद रखना चाहिए। बच्चों को मोबाइल देते वक्त ये ध्यान रखें कि वो उसपे देख क्या रहे हैं। आजकल मोबाइल पे ऐसे हिंसक गेमिंग ऐप्स हैं जो बच्चों को काफी गुमराह कर रहे। वो उनके द्वारा सिखाए जाने वाली चीजों को अपने जीवन में करने का प्रयास करते हैं। जो कि काफी घातक होता जा रहा है। हमें उसपे विशेष ध्यान देने की जरुरत है। -अपर्णा सिंह, मड़ौली

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