काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में धर्मः जीवन में सनातन राग पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में ‘‘धर्मः जीवन में सनातन राग’’ विषय पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ हुआ। विद्यानिवास मिश्र जन्मशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में यह आयोजन भारतीय सांस्कृतिक दार्शनिक और धार्मिक परंपराओं के अध्ययन को प्रोत्साहित करने के लिए है। विद्वानों ने धर्म को नैतिकता सत्य और करुणा का आधार बताया। कुलपति प्रो. अजीत कुमार चतुर्वेदी ने भारतीय ज्ञान परम्परा को आगे बढ़ाने पर जोर दिया।

जागरण संवाददाता, वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के भारत अध्ययन केंद्र के प्रांगण में आज एक विशिष्ट शैक्षणिक और सांस्कृतिक वातावरण के बीच ‘‘धर्मः जीवन में सनातन राग’’ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ हुआ।
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यह आयोजन विद्यानिवास मिश्र जन्मशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य भारतीय सांस्कृतिक, दार्शनिक और धार्मिक परंपराओं के गहन अध्ययन एवं विमर्श को प्रोत्साहित करना है। इस संगोष्ठी का संयुक्त आयोजन भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली; भारत अध्ययन केंद्र, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी; लाल बहादुर शास्त्री पी.जी. कालेज, पं. दीनदयाल उपाध्याय नगर, चंदौली; तथा विद्याश्री न्यास द्वारा किया गया है।
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देश के विभिन्न हिस्सों से आए विद्वानों, शोधार्थियों, प्राध्यापकों और विद्यार्थियों की उपस्थिति ने उद्घाटन दिवस को अत्यंत जीवंत और सार्थक बना दिया। उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण जी (अयोध्या) ने कहा कि ‘‘हम जो कहते हैं, उसे अपने आचरण में चरितार्थ करें: वही सच्चा धर्म है।’’ धर्म को जीवन में नैतिकता, सत्य और करुणा का आधार बताते हुए आचार्य श्री ने कहा कि इसके पालन में आचरण की ईमानदारी सर्वाेपरि है। धर्म की व्याख्या करते हुए उन्होंने बताया कि संघात से विघात तक की अवधि को जीवन कहते है जिसे देश व काल में नापा जाता है, उस जीवन को अनुधातन व पुरातन के भेद से पहचानते हैं।
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कुलपति, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय प्रो. अजीत कुमार चतुर्वेदी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि महामना पण्डित मदनमोहन मालवीय सदैव भारत और राष्ट्र की बात करते थे। भारत अध्ययन केन्द्र द्वारा संचालित पाठ्यक्रम विभिन्न प्रान्तों, क्षेत्रों तथा जन-जन तक पहुंचे यह महत्त्वपूर्ण है। आचार्य विद्यानिवास मिश्र से जुड़े एक संस्मरण को याद करते हुए उन्होंने कहा कि कोई भी भाषा ज्ञान प्राप्ति के उद्देश्य में बाधक नही हो सकती है। प्रो. चतुर्वेदी ने कहा कि हमें अपने सनातन धर्म में आधुनिकता का उपयोग करते हुए कार्य करना चाहिए। उन्होने कहा कि भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय में भारतीय ज्ञान परम्परा (इण्डियन नालेज सिस्टम) से सम्बन्धित प्रकोष्ठ बना है। हम सभी को इस सुविधा का उपयोग कर भारतीय ज्ञान परम्परा को आगे बढ़ाने की दिशा में कार्य करना चाहिए। इसी तारतम्य में उन्होने कहा कि हर चीज़ सेक्रेड होती, उस पर वाद-विवाद और तर्क- वितर्क होते रहना चाहिए। इस अवसर पर उन्होंने ने भारत अध्ययन केन्द्र के भूतल पर स्थित ‘‘वैदिक यज्ञ-पात्र संग्रहालय’’ का फीता काटकर उद्घाटन किया।
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बीज वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए पूर्व कुलपति, महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा, प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने कहा कि इस धर्म का भौतिक जगत् से कोई विरोध नही है न ही परमार्थिक जगत् से। जो कहो वो करो, वही धर्म है।
प्रो. सच्चिदानन्द मिश्र, सदस्य सचिव, भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली ने कहा कि इस संगोष्ठी में देश के अनेक विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों से आए प्रतिभागी अपने शोधपत्र और विचार साझा करेंगे, जिनमें धर्म और आधुनिक जीवन के बीच के संबंध, सांप्रदायिक सौहार्द, सांस्कृतिक संरक्षण, और धार्मिक दर्शन के वैश्विक संदर्भ शामिल होंगे। इस संगोष्ठी से अपेक्षा की जा रही है कि यह न केवल विद्वानों के बीच एक संवाद का मंच उपलब्ध कराएगी, अपितु युवाओं में भारतीय सांस्कृतिक धरोहर के प्रति गर्व और समझ को भी बढ़ाएगी।
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इस अवसर पर मंचस्थ अतिथियों ने ‘जीवन में सनातन राग’ विषय पुस्तक का विमोचन भी किया। संगोष्ठी में सारस्वत अतिथि के रूप में प्रो. के.के. त्रिपाठी, प्रो. सच्चिदानन्द मिश्र, सदस्य सचिव, भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली उपस्थित रहे। कार्यक्रम का स्वागत वक्तव्य प्रो. सदाशिव कुमार द्विवेदी, समन्वयक, भारत अध्ययन केन्द्र ने प्रस्तुत किया, संचालन प्रो. राम सुधार सिंह तथा धन्यवाद ज्ञापन डा. दयानिधि मिश्र, सचिव विद्याश्री न्यास ने किया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के अनेक विभागों के आचार्य, छात्र-छात्रा व शोधार्थियों ने उत्साहपूर्वक सक्रिय रूप से भाग लिया।

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