वाराणसी में कजरी के सुर साज से घर-घर निखरी परंपरा, जलेबा के जायकों से बिखरी मिठास, देखें वीडियो...
ग्रामीण इलाकों में रतजगा (कजरी) पर्व धूमधाम से मनाया गया। महिलाओं ने पारंपरिक कजरी गाई और जलेबा का आनंद लिया। बाजारों में जलेबा की दुकानों पर खूब भीड़ रही। महंगाई के बावजूद लोगों ने जलेबा खरीदा। अब कजरी गाने का उत्साह कम हो रहा है लोग जलेबा खाने में अधिक रुचि दिखा रहे हैं।

जागरण संवाददाता, वाराणसी। ग्रामीण अंचलों में तीज त्योहारों का मनाने का एक अनोखा अंदाज होता है। सोमवार को रतजगा (कजरी) के अवसर पर महिलाओं ने परंपरागत तरीके से कजरी गाए और जलेबा खाने का आनंद लिया। इस दिन शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक में दोपहर से लेकर शाम तक जलेबा की दुकानों पर खरीददारों की भीड़ देखी गई। दुकानदार एक-दूसरे को जलेबी देने में व्यस्त रहे।
#Varanasi में जलेबा का जायका
— Abhishek sharma (@officeofabhi) August 11, 2025
बनारस में ही जलेबा का जायका कजरी तीज की पूर्व संध्या पर लिया जाता है। बाकी साल भर इसकी कोई खास डिमांड नहीं होती। वैसे आपने खाया है बनारसी जलेबा? #कजरीतीज #जलेबा #जलेबी #foodie pic.twitter.com/nmPZWKRsVp
मिठाई कारोबारी आशीष गुप्ता बताते हैं कि बनारस जायकों का शहर है और जलेबी तो सालभर मिलती और बनती है। मगर, जलेबा यानी जलेबी का बड़ा रूप की मांग इस दिन विशेष तौर पर काशी में ही होती है। जलेबा की डिमांड ग्राहक एक दिन पहले से ही अपने परिवार भर के लोगों के लिए थोक के भाव कर देते हैं। इसलिए डिमांड को पूरा करने के लिए मिठाई कारोबारियों को बाकी काम छोड़कर जलेबा की मांग पूरी करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने की नौबत आ जाती है।
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शहर के अलावा आंचलिक क्षेत्रों के बडागांव, बसनी, बाबतपुर, कविरामपुर, गांगकला, नटवा, साधोगंज, अनेई, साईपुर, विराव, भीटी, कनियर, चिलबिला, कूडी सहित अन्य बाजारों में दुकानदार सुबह से ही जलेबी छानकर बेचते रहे। देर शाम तक जलेबा की दुकानों पर ग्राहकों की चहल-कदमी बनी रही। महंगाई के बावजूद लोग जलेबा लेकर घर जाते हुए देखे गए।
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ग्रामीणों का कहना है कि रतजगा का पर्व धीरे-धीरे केवल जलेबी खाने-खिलाने की परंपरा तक सीमित होता जा रहा है। कजरी गाने और सुनने का उत्साह अब कम होता जा रहा है, और लोग अधिकतर जलेबी खाने में ही रुचि दिखा रहे हैं।

इस दिन बाजारों में जलेबा खरीदने वालों की संख्या में वृद्धि हुई। महिलाएं अपने पारंपरिक परिधान में सज-धजकर जलेबा खरीदने आईं। जलेबा की मिठास और उसकी खुशबू ने पूरे वातावरण को महका दिया। दुकानदारों ने भी इस अवसर का भरपूर लाभ उठाया और ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए विशेष प्रयास किए।
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#Varanasi की जलेबा की परंपरा
— Abhishek sharma (@officeofabhi) August 11, 2025
कजरी तीज की पूर्व संध्या पर सुहागिनें जलेबा मिठाई खाती हैं। इसके बाद रतजगा करती हैं, ढोलक-झाल की थाप पर कजरी गीत गाए जाते हैं। रातभर नृत्य-संगीत का दौर चलता है और महिलाएं एकजुट होकर उत्सव का आनंद लेती हैं। अगले दिन सूर्योदय संग व्रत शुरू होता है। pic.twitter.com/htDS6Agmdz
रतजगा का पर्व केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि यह ग्रामीण जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है। इस दिन का महत्व केवल जलेबा खाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक मिलन का भी प्रतीक है। महिलाएं एकत्र होकर कजरी गाती हैं, जो इस पर्व की विशेषता है। हालांकि, समय के साथ इस परंपरा में बदलाव आ रहा है। अब लोग जलेबी खाने में अधिक रुचि दिखा रहे हैं, जबकि कजरी गाने का उत्साह कम होता जा रहा है। यह एक चिंता का विषय है, क्योंकि परंपराओं का संरक्षण आवश्यक है।

इस प्रकार, रतजगा का पर्व ग्रामीण अंचलों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। जलेबा की मिठास और कजरी का संगीत इस पर्व की पहचान है। ग्रामीणों की यह परंपरा आने वाली पीढ़ियों के लिए एक धरोहर के रूप में जानी जाएगी। इस पर्व के दौरान जलेबा की दुकानों पर लगी भीड़ और महिलाओं का उत्साह इस बात का प्रमाण है कि त्योहारों का महत्व आज भी जीवित है।
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यह है परंपरा
हरियाली तीज के बाद आने वाली कजरी तीज सुहागिनों के लिए विशेष महत्व रखती है। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया को यह पर्व मनाया जाता है, जिसे बड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है। इस वर्ष कजरी तीज का त्योहार 12 अगस्त को मनाया जाएगा। इस दिन विवाहित महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती और चंद्रमा की पूजा कर अपने पति की लंबी उम्र और सुखमय वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं।

परंपरा के अनुसार, कजरी तीज के दिन व्रत रखने से दांपत्य जीवन में प्रेम और सौभाग्य बढ़ता है। काशी में इस
पर्व से जुड़ी एक खास परंपरा है। कजरी तीज की पूर्व संध्या पर सुहागिनें जलेबा नामक विशेष मिठाई का सेवन करती हैं। इसके बाद महिलाएं रतजगा करती हैं, जिसमें ढोलक-झाल की थाप पर कजरी गीत गाए जाते हैं। रातभर नृत्य-संगीत का दौर चलता है और महिलाएं एकजुट होकर उत्सव का आनंद लेती हैं। अगले दिन सूर्योदय के साथ ही व्रत की शुरूआत होती है। दिनभर उपवास रखने के बाद शाम को पूजा-अर्चना के पश्चात व्रत का पारण किया जाता है। इस पर्व पर पति की दीर्घायु के साथ ही पुत्र के दीर्घायु की कामना के लिए महिलाएं यह व्रत रखतीं हैं।

निवेदिता शिक्षा सदन में कजरी तीज महोत्सव का आयोजन किया गया जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में डा. विनोद कुमार राय, अपर सचिव, माध्यमिक शिक्षा परिषद, क्षेत्रीय कार्यालय वाराणसी उपस्थित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता डा. हरेंद्र कुमार राय, सदस्य, शिक्षा सेवा चयन बोर्ड थे । कार्यक्रम में पूर्वांचल की एक महत्वपूर्ण विधा कजरी गायन की अनेकों मनमोहक प्रस्तुतियाँ विद्यालय की छात्राओं और अध्यापिकाओं के द्वारा की गई।
कार्यक्रम में वाराणसी के अन्यान्य प्रतिष्ठित विद्यालयों के प्रधानाचार्य गण उपस्थित थे और अंत में अतिथियों ने भी अपनी प्रस्तुति देकर कार्यक्रम को यादगार बना दिया। कार्यक्रम में विद्यालय प्रबंधतंत्र के अधिकारी मेजबान की भूमिका में रहे । संपूर्ण कार्यक्रम का निर्देशन डा. पूनम शर्मा और विभा पांडेय (गायन), सिद्धी भट्ट नृत्य और राकेश रोशन वाद्य यंत्र ने किया। संचालन मीनू यादव और धन्यवाद ज्ञापन प्रधानाचार्या के द्वारा किया गया ।

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