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    भर्तृहरि की नगरी की सांस्कृतिक विरासत का उत्सव है 189 वर्ष प्राचीन चुनार की रामलीला

    चुनार की रामलीला 189 वर्षों से चली आ रही आस्था और लोकभावना का उत्सव है। यह जनसहयोग से आयोजित होती है जिसमें हर वर्ग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता है। 22 दिनों तक चलने वाली इस रामलीला में धनुष यज्ञ लंका दहन और भरत मिलाप जैसे प्रसंगों का मंचन होता है जो दर्शकों को त्रेता युग का अनुभव कराते हैं।

    By Gurupreet Singh Edited By: Abhishek sharma Updated: Mon, 25 Aug 2025 04:58 PM (IST)
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    189 वर्ष प्राचीन है चुनार की रामलीला।

    जागरण संवाददाता, चुनार (मीरजापुर)। जहां मां गंगा उत्तरवाहिनी होकर चुनार दुर्ग की से टकराकर महादेव की काशी की ओर प्रस्थान करती हैं, जहां भर्तृहरि की तपोभूमि आज भी साधना और समाधि की गूंज से आलोकित है, उस धरती की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है चुनार की रामलीला।

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    यह केवल नाट्य मंचन नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और लोकभावना का ऐसा विराट उत्सव है, जो पूर्णतः जनसहयोग से संपन्न होता है। नगर का हर वर्ग इसमें बढ़-चढ़कर भागीदारी करता है और पूरे समर्पण से इसे नगर के सामूहिक त्योहार के रूप में आनंद के साथ मनाया जाता है।

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    अंग्रेजी राज के दिनों में कुछ रईसों और धर्मनिष्ठ श्रद्धालुओं के सहयोग से आरंभ हुई यह रामलीला अब 189 वर्षों का गौरवशाली इतिहास संजोए खड़ी है। आज यह केवल चुनार नगर की सांस्कृतिक व धार्मिक पहचान नहीं रही, बल्कि आसपास के जनपदों और गांवों तक इसकी गूंज पहुंच चुकी है। चुनार की रामलीला की सबसे बड़ी विशेषता है, जनभागीदारी और निःस्वार्थ भाव। नगर के युवा, बुजुर्ग, बच्चे मिलकर इस आयोजन को एक पर्व का रूप देते हैं। कलाकार बिना किसी पारिश्रमिक के अपनी साधना और श्रद्धा के साथ मंच पर उतरते हैं। यही भाव इस रामलीला को मात्र आयोजन नहीं, बल्कि संस्कृति का जीवंत अवतार बनाता है।

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    हर लीला का मंचन कराता है त्रेता युग की अनुभूति

    14 सितंबर को जीवित्पुत्रिका पर्व से प्रारंभ होकर लगातार 22 दिनों तक चलने वाली इस रामलीला का हर प्रसंग मानो एक दिव्य यात्रा होता है। धनुष यज्ञ की लीला में प्रभु श्रीराम द्वारा शिव धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने के दौान टंकार की गूंज, परशुराम-लक्ष्मण संवाद का तेज, लंका दहन की लपटें और भरत मिलाप की करुणा, सब कुछ दर्शकों को कालखंड पार कर त्रेता युग की अनुभूति कराता है। पिछले चार वर्षों से डायरेक्टर अविनाश अग्रवाल के निर्देशन में यहां मंच पर केवल अभिनय नहीं होता, बल्कि आत्मा का अवतरण होता है।

    कलाकार अपने पात्रों में ऐसे समाहित हो जाते हैं कि दर्शकों को अभिनय और वास्तविकता के बीच कोई भेद नहीं रह जाता। राम के धैर्य, लक्ष्मण के तेज, भरत के त्याग, हनुमान के पराक्रम में मानो देवत्व का अवतरण हो जाता है। दशानन का पात्र निभाने वाला कलाकार जब मंच पर आता है, तो उसकी आंखों की ज्वाला और स्वर की गर्जना दर्शकों के हृदय को कंपा देती है।

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    इंटरनेट के दौर में भी प्रासंगिक है चुनार की रामलीला

    आज जब इंटरनेट, टीवी सीरियल और आधुनिक मनोरंजन के साधन हर ओर हावी हैं, चुनार की रामलीला अब भी अपनी आत्मा और ओज के साथ अक्षुण्ण खड़ी है। इसका श्रेय उन बुजुर्गों को है जिन्होंने परंपरा को सींचा, उस अधेड़ पीढ़ी को है जिसने इसे संभाला और उस युवा पीढ़ी को है जो हर साल इसे एक नई ऊर्जा देती है। यही कारण है कि यह रामलीला केवल अतीत की धरोहर नहीं, बल्कि भविष्य की प्रेरणा भी बनी हुई है।

    आज अनेक परंपराएं केवल औपचारिकता की परिधि तक सीमित होकर दम तोड़ रही हैं, ऐसे में 189 वर्ष पुरानी चुनार की रामलीला संस्कृति के संरक्षण का एक जीवंत उदाहरण है। यह रामलीला हमें आपसी भाईचारे का संदेश देती है। मैंने स्वयं कई लीलाओं को देखा है जहां आस्था के साथ अभिनय का समावेश कर आराधना में परिणत होने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे हम त्रेता युग के दृश्यों के साक्षी बन रहे हैं।

    - अनुराग सिंह, विधायक चुनार।

    यह रामलीला केवल धार्मिक आयोजन नहीं, यह संस्कृति की जड़ से जुड़ा वह वृक्ष है जिसकी छांव में पीढ़ियां पली हैं। इसे देखने आने वाले वृद्धों की आंखों में पुरानी स्मृतियां होती हैं, युवाओं के हृदय में गौरव, और बच्चों के मन में उत्सुकता।

    - लक्ष्मीशंकर पांडेय, अध्यक्ष श्री राघवेंद्र रामलीला नाट्य समिति चुनार।

    आज जब तमाम सांस्कृतिक परंपराएं बाजारवाद की भेंट चढ़ रही हैं, चुनार की रामलीला न केवल जीवित है, बल्कि एक प्रेरणा है। यह बताती है कि अगर समाज ठान ले, तो आस्था की मशाल बुझने नहीं पाती।

    - गौतम जायसवाल, सभासद, नगर पालिका परिषद चुनार।

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    यहां की रामलीला न केवल रामकथा है, बल्कि चुनार की आत्मकथा है। जिसमें परंपरा, त्याग, श्रद्धा और संस्कृति के चारों अध्याय स्वर्णाक्षरों में लिखे गए हैं।

    - रामेश्वर दास अग्रवाल, प्रतिष्ठित व्यवसायी व रामलीला के अनन्य सहयोगी।

    आज की युवा पीढ़ी को यदि अपनी संस्कृति से गहराई से जुड़ना है, तो चुनार की रामलीला उसके लिए सबसे बड़ा अवसर है। यहां सेवा भी है, साधना भी और प्रेरणा भी।

    - बचाऊलाल सेठ, संरक्षक श्री राघवेंद्र रामलीला नाट्य समिति चुनार।

    रामलीला केवल अतीत की स्मृति नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य की चेतना है। जब नई पीढ़ी इसे देखने और निभाने आती है, तो विश्वास होता है कि यह परंपरा कभी खत्म नहीं होगी।

    - गोविंद जायसवाल, पूर्व अध्यक्ष श्री राघवेंद्र रामलीला नाट्य समिति चुनार।

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    चुनार रामलीला की प्रमुख लीलाएं

    मुकुट पूजन- 14 सितंबर

    धनुष यज्ञ- 21 सितंबर

    राम बरात- 22 सितंबर

    काली जी का जुलूस- 26 सितंबर

    सीता हरण- 27 सितंबर

    लंका दहन- 29 सितंबर

    अंगद विस्तार व चारों फाटक की लड़ाई- 1 अक्टूबर

    रावण वध व रावण पुतला दहन- 2 अक्टूबर

    भरत मिलाप- 3 अक्टूबर

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