सिर्फ परंपरा नहीं, एक सुरक्षा कवच है 'गृहप्रवेश'! जानें क्यों शास्त्रों में इसे जरूरी माना गया है
गृहप्रवेश वह संस्कार है जो एक निर्जीव मकान में चेतना जगाता है। अगर आप बिना पूजा के घर में रहने लगते हैं, तो वहां दरिद्रता और कलह की संभावना बढ़ जाती है ...और पढ़ें

गृहप्रवेश क्यों जरूरी (Image Source: AI-Generated)

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धर्म डेस्क, नई दिल्ली। अपना नया घर बनाना सिर्फ एक निवेश नहीं, बल्कि जीवनभर की यादों और सपनों की नींव रखना है। हिंदू धर्म में 'गृहप्रवेश' को केवल एक रस्म नहीं, बल्कि एक पवित्र संस्कार माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, जिस तरह शरीर बिना आत्मा के निर्जीव है, उसी तरह बिना विधि-विधान और पूजा के नया मकान केवल एक ढांचा मात्र है। गृहप्रवेश वह माध्यम है जिससे हम ब्रह्मांड की सकारात्मक ऊर्जा और देवताओं को अपने घर में आमंत्रित करते हैं, ताकि उस घर की दीवारों के भीतर रहने वाला हर सदस्य सुख, शांति और समृद्धि का अनुभव कर सकें।
हिंदू धर्म में अपना नया घर बनाना जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जाता है। लेकिन शास्त्रों के अनुसार, केवल ईंट-पत्थर का ढांचा खड़ा कर लेना ही पर्याप्त नहीं है; उस ढांचे को 'घर' बनाने के लिए गृहप्रवेश का संस्कार अनिवार्य है।
गृहप्रवेश क्यों किया जाता है?
गृहप्रवेश का मुख्य उद्देश्य नए घर को शुद्ध करना और उसमें सकारात्मक ऊर्जा (Positive Energy) का संचार करना है। मान्यता है कि निर्माण के समय भूमि की खुदाई और काम के दौरान कई सूक्ष्म जीव-जंतुओं की मृत्यु होती है और कई प्रकार के वास्तु दोष उत्पन्न होते हैं। इन दोषों और नकारात्मकता को दूर करने के लिए देवताओं का आह्वान किया जाता है ताकि परिवार वहां सुख-शांति से रह सके।
शास्त्रों के नियम: क्या है विधान?
शास्त्रों में गृहप्रवेश के तीन मुख्य प्रकार बताए गए हैं:
जब पहली बार नए घर में प्रवेश किया जाए।
जब किसी मजबूरी में घर खाली छोड़कर दोबारा रहने जाएं।
पुरानी इमारत का जीर्णोद्धार (Remodel) कराकर प्रवेश करना।
मुख्य नियम:
वास्तु शांति: घर के ईशान कोण (North-East) में कलश स्थापना और वास्तु देव की पूजा जरूरी है।
शुभ मुहूर्त: गृहप्रवेश हमेशा शुभ तिथि, नक्षत्र और लग्न को देखकर करना चाहिए। माघ, फाल्गुन, वैशाख और ज्येष्ठ के महीने इसके लिए सर्वश्रेष्ठ माने गए हैं।
पूर्णता: शास्त्र कहते हैं कि जब तक घर के मुख्य द्वार पर किवाड़ (दरवाजे) न लग जाएं और छत पूरी न हो जाए, तब तक गृहप्रवेश नहीं करना चाहिए।
करना क्यों जरूरी है? (धार्मिक और वैज्ञानिक कारण)
गृहप्रवेश केवल एक रस्म नहीं, बल्कि सुरक्षा कवच है।
नकारात्मकता का नाश: मंत्रों के उच्चारण और हवन के धुएं से घर के वातावरण में मौजूद कीटाणु और नकारात्मक तरंगें नष्ट होती हैं।
देवताओं का वास: पूजा के जरिए हम गणेश जी (विघ्नहर्ता), लक्ष्मी जी (धन की देवी) और वास्तु पुरुष का आशीर्वाद मांगते हैं।
मानसिक शांति: जब हम शुद्ध मन और विधि-विधान से प्रवेश करते हैं, तो परिवार के सदस्यों के बीच तालमेल और मानसिक सुख बढ़ता है।
प्रवेश के समय मुख्य द्वार पर तोरण (आम के पत्ते) लगाना और स्वास्तिक बनाना अनिवार्य है। सबसे पहले मंगल कलश के साथ घर की लक्ष्मी (स्त्री) को दाएं पैर से भीतर प्रवेश करना चाहिए। घर में प्रवेश करते ही 'शंख' बजाना शुभ माना जाता है, जो बुरी शक्तियों को घर से दूर रखता है।
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