कौन थे Shibu Soren? ये किताबें बताएंगी उनके सच और आदिवासी संघर्ष की कहानी

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन अब नहीं रहे। दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने 4 अगस्त 2025 को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में अपनी अंतिम सांस ली है। आइए आपको बताते दें कि शिबू सोरेन कौन थे और इसी के साथ उनके आदिवासी संघर्ष पर लिखी किताबों के बारे में भी आपको जानकारी देंगे।
भारत में शिबू सोरेन और आदिवासी राजनीति पर लिखी टॉप किताबें

शिबू सोरेन एक जाना-माना नाम हैं और उनके निधन से भारत में शोक का माहौल है। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के निधन के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उन्हें श्रद्धांजलि देने आज गंगाराम अस्पताल पहुंचे हैं। बता दें कि शिबू सोरेन जून 2025 से दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती थे और इसका कारण उनकी कुछ पुरानी बीमारियां थी। वह काफी समय से किडनी के रोग से पीड़ित थे और उन्हें डायबिटीज की शिकायत भी थी। लेकिन आखिरकार वह अपनी इन बीमारियों से हार गए और उन्होंने 4 अगस्त 2025 को सर गंगाराम अस्पताल में अपनी अंतिम सांस ली। उनके निधन के बाद गूगल पर लोग लगातार उन्हें सर्च कर रहे हैं और उनके बारे में जानकारी प्राप्त करना चाह रहे हैं। इसलिए यहां हम आपको शिबू सोरेन कौन थे? इसके बारे में बताने जा रहे हैं और इसी के साथ उन पर और उनके आदिवासी संघर्ष पर लिखी कुछ किताबों के बारे में भी हम आपको बताएंगे, ताकि इन किताबों को पढ़कर आप शिबू सोरेन के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त कर सकें। 

कौन थे शिबू सोरेन?

आपको बता दें कि शिबू सोरेन का पूरा जीन आदिवासियों के अधिकारों और झारखंड राज्य की स्थापना के लिए संघर्ष में बिता था। 11 जनवरी 1994 को बिहार में जन्में शिबू सोरेन ने केवल 18 साल की उम्र में 'संताल नवयुवक संघ' की स्थापना की थी। झारखंड के सीएम रह चुके शिबू सोरेन ने 1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की थी और इसके महासचिन बने थे। शिबू सोरेन का लक्ष्य आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा करना, जमींदारों के शोषण के खिलाफ लड़ाई करना और झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाना था। उनके इस संघर्ष का ही परिणाम था कि साल 2000 में बिहार से अलग होकर झारखंड के स्वतंत्र राज्य बना था।

शिबू सोरेन और भारत की आदिवासी रातनीति पर आधारित टॉप किताबें

पुस्तक का नाम  

लेखक 

भाषा 

विषय 

क्यों पढ़ें?

Dishom Guru: Shibu Soren

अनुज कुमार सिन्हा

हिंदी

शिबू सोरेन की जीवनगाथा, आंदोलन, संघर्ष और झारखंड की राजनीति की पूरी कहानी।

इस पुस्तक में रेयर तस्वीरें और आईविटनेस अकाउंट शामिल हैं।

आदिवासी नहीं नाचेंगे

हांसदा सोवेंद्र

हिंदी

संथाल समाज की कहानियाँ, सामाजिक अस्मिता, उपेक्षा और आदिवासी जीवन की सच्ची झलक

The Hindu Literary Prize के लिए यह पुस्तक नॉमिनेटेड हुई थी। 

Suno Bachcho, Adivasi Sangharsh ke Nayak Shibu Soren (Guruji) ki Gatha

अज्ञात

हिंदी 

झारखंड आंदोलन के महानायक शिबू सोरेन (गुरुजी) के जीवन, संघर्ष और आदिवासी अधिकारों की लड़ाई को सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है।

यह किताब खासतौर पर स्कूली बच्चों को प्रेरित करने के लिए बनाई गई है, जिससे वे भारत के मूलवासी समाज और उनके संघर्षों को समझ सकें।

Shibu Soren: Jharkhand Andolan ka ek Sipahi

संजय कृष्ण

हिंदी

झारखंड आंदोलन में शिबू सोरेन की भूमिका और उनके संघर्ष का विवरण

यह किताब झारखंड के पृथक राज्य निर्माण की लड़ाई और आदिवासी राजनीति में शिबू सोरेन के योगदान को गहराई से समझने में मदद करती है।

  • Dishom Guru Shibu Soren

    यह शिबू सोरेन की प्रेरणादायक जीवनी है, जो भारत क प्रमुख आदिवासी नेता और झारखंड पूर्व सीएम थे। यह पुस्तक उनके संघर्ष और विचारधारा को प्रस्तुत करती है। इस पुस्तक में शिबू सोरेन के बचपन, सामाजिक अन्याय के खिलाफ उनके विद्रोह, राजनीतिक जीवन की शुरुआत और झारखंड राज्य के निर्माण में उनके ऐतिहासिक योगदान के बाद में बताया गया है। शिबू सोरोन को Dishom Guru इसलिए बोला जाता था, क्योंकि वे अपने समुदाय के लिए विचारक और मार्गदर्शक नेता थे। यह किताब केवल व्यक्ति की जीवनी नहीं बताती, बल्कि भारत के आदिवासी समुदाय के सामाजिक और रातनीतिक इतिहास को भी उजागर करती है। जिन लोगों को राजनीतिक इतिहास में रुचि है उन लोगों के लिए यह पुस्तक एक अच्छा विकल्प हो सकती है।

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  • Adiwasi Nahin Nachenge

    यह एक बेहद सशक्त पुस्तक है, जो आदिवासी समुदायों के सांस्कृतिक प्रतिरोध, पहचान और संघर्ष की कहानी बताती है। इस पुस्तक को हांसदा सोवेंद्र ने लिखा है। इस पुस्तक में उस विद्रोह के बारे में बताया गया है, जिसमें आदिवासी समुदायों ने सरकार, शोषक तंत्र और बाहरी पर्यटकों द्वारा केवल नाचने-गाने वाले के रूप में पेश किए जाने का विरोध किया था। इस किताब में लेखक ने साफ बताया है कि कैसे आदिवासी समाज की परंपराएं और रिवाज तमाशा बनाकर पेश किया जाता था। इसके अलावा इस पुस्तक में झारखंड और आसपास के राज्यों में आदिवासी आंदोलन, जल-जंगल और जमीन के संघर्ष व विकास के बारे में भी बताया है। जो लोग आदिवासी मुद्दों को गहराई से समझाना चाहते हैं, उनके के लिए यह पुस्तक एक बहुत बढ़िया विकल्प हो सकती है।

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  • Suno Bachcho, Adivasi Sangharsh ke Nayak Shibu Soren (Guruji) ki Gatha

    यह एक प्रेरणादायक पुस्तक है, जिसे खासतौर पर बच्चों और युवाओं के लिए लिखा गया है, ताकि वह भारत के आदिवासी नायक शिबू सोरेन के जीवन संघर्ष और विचारधारा के बारे में अच्छे से समझ सकें। यह पुस्तक शिबू सोरेन के जीवन की उन कहानियों को सरल भाषा में बताती है, जो उन्हें एक जननायक और झारखंड आंदोलन के मजबूत स्तंभ के रूप में सामने लाती है। इस पुस्तक में हर एक पहलू को रोचक किस्सों और संवादों के माध्यम से पेश किया गया है। अगर आप भी अपने बच्चों को आदिवासी के हर की लड़ाई और उनके संघर्ष के बारे में बताना चाहते हैं, तो यह पुस्तक आपके लिए बेहतरीन विकल्प हो सकती है।

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  • Shibu Soren Jharkhand Andolan ka ek Sipahi

    यह एक बेहद गंभीर और सशक्त पुस्तक है, जो झारखंड आंदोलन के संघर्षपूर्ण इतिहास और इसमें शिबू सोरेन की भूमिका को सामने लाती है। इस पुस्तक में शिबू सोरोन को केवल एक राजनेता के रूप में नहीं, बल्कि झारखंड आंदोलन के एक सच्चे सिपाही के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह किताब झारखंड के अलग-अलग राज्य बनने की कहानी, आदिवासी समाज के शोषण के खिलाफ आवाज और सामाजिक न्याय की लड़ाई को विस्तार से बताता है। यह किताब उन लोगों के लिए बेहद उपयोगी हो सकती है, जिन्हें भारत में क्षेत्रीय आंदोलनों, आदिवासी राजनीति को समझना है। यह किताब आपको केवल इतिहास की झलक नहीं दिखाता, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक भी बन सकता है।

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Faq's

  • शिबू सोरेन का जन्म कब हुआ था?
    +
    शिबू सोरेन का जन्म 1 जनवरी 1944 को बिहार के रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में हुआ था।
  • शिबू सोरेन का निधन कैसे हुआ?
    +
    शिबू सोरेन काफी समय से किडनी के रोग से पीड़ित थे और उन्हें डायबिटीज की शिकायत भी थी। इन पुरानी बीमारियों के कारण 4 अगस्त 2025 को सर गंगाराम अस्पताल में अपनी अंतिम सांस ली।
  • शिबू सोरेन कितनी बार मुख्यमंत्री बने थे?
    +
    शिबू सोरेन तीन पर मुख्यमंत्री बने थे। पहली बार 2005 में 10 दिनों के लिए (2 मार्च से 12 मार्च तक), फिर 2008 से 2009 तक और फिर 2009 से 2010 तक।