मिट्टी की सेहत हुई खराब, उर्वरता घटने के साथ स्वास्थ्य पर पड़ेगा असर

तमाम स्टडी के अनुसार भारत की 30 प्रतिशत मिट्टी खराब हो चुकी है। विशेषज्ञ कहते हैं कि पचास साल पहले मिट्टी में जिंक सल्फर मैंगनीज आयरन और कॉपर जैसे सूक...और पढ़ें
जागरण न्यू मीडिया में एग्जीक्यूटिव एडिटर के पद पर कार्यरत। दो दशक के करियर में इन्होंने कई प्रतिष्ठित संस्थानों में कार ...और जानिए
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी। स्वतंत्रता के बाद कृषि के क्षेत्र में भारत ने काफी काम किया। उस दौरान भारत में खाद्यान्न की समस्या थी। देश को अन्य देशों से खाद्यान्न मंगवाना पड़ता था। हरित क्रांति के माध्यम से भारत ने खाद्यान्न की पूर्ति के लिए वृहद कार्य किया। इसमें पैदावार बढ़ाने वाले बीज, उर्वरक और रसायन का इस्तेमाल किया गया। इसका व्यापक असर भी देखने को मिला और अगले तीन साल में यानी 1971 तक भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हो गया। हरित क्रांति में बीजों की नई किस्मों से कृषि पैदावार बढ़ाने पर जोर दिया गया। शुरुआत की गई खरीफ फसल से। इसमें वैज्ञानिकों को उल्लेखनीय सफलता मिली। और इस प्रयोग को पूरे देश में फैलाया गया और इसने एक क्रांति का रूप ले लिया। इसके बाद रेनबो क्रांति ने भी बागवानी, डेयरी, जलीय कृषि, मुर्गी पालन आदि से कृषि को विविधता मिली जिससे बाद में कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रमुख स्तंभ बन गई। केमिकल फर्टिलाइज़र का बढ़ता उपयोग व बढ़ती निर्भरता, प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन और अस्थिर मौसम ने मिट्टी पर दबाव डाला है। तमाम स्टडी के अनुसार भारत की 30 प्रतिशत मिट्टी खराब हो चुकी है। विशेषज्ञ कहते हैं कि पचास साल पहले मिट्टी में जिंक, सल्फर, मैंगनीज, आयरन और कॉपर जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी नहीं थी। लेकिन अब यह स्पष्ट है, जो मिट्टी के क्षरण का संकेत है। अगर इन सूक्ष्म पोषक तत्वों को जोड़ा जाता है, तो खेती की लागत बढ़ जाती है। जब तक किसानों की मदद नहीं की जाती, मिट्टी को फिर से जीवंत करने का आंदोलन नहीं हो पाएगा।
भारत में ज़्यादातर किसानों के पास छोटी ज़मीन है। गरीबी से जूझते हुए, वे साल भर भूख से बचने का प्रबंध करते हैं। धीरे-धीरे, खेती एक अनाकर्षक पेशा बनती जा रही है। कई छोटे किसान शहरी भारत में दिहाड़ी मज़दूर के रूप में काम करने के लिए दूर जा रहे हैं। इसलिए, अगर उन्हें मृदा संरक्षण कार्यक्रमों में शामिल करना है, तो सरकारी सहायता एक महत्वपूर्ण कारक है।
भारत में कुल भौगोलिक क्षेत्र (328.7 मिलियन हेक्टेयर) का 29% यानी करीब 96.4 मिलियन हेक्टेयर से अधिक का क्षरण हुआ है। वहीं दुनियाभर में मिट्टी की उर्वरता खोने के मामले में 40 फीसदी तक गिरावट बढ़ गई है। इससे वैश्विक जीडीपी का लगभग आधा हिस्सा खतरे में है। इसके अलावा मिट्टी से लगातार ऑर्गेनिक कार्बन कम हो रहा है। लगातार घट रहे ऑर्गेनिक कार्बन से उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो कुछ सालों में कई स्थानों पर जमीन बंजर जाएगी।
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