फिर जलाई जाने लगी पराली, थोड़े मुनाफे के लिए किसान छीन रहे मिट्टी का जीवन

उत्तर भारत के कई हिस्सों में पराली जलाए जाने के मामले एक बार फिर सामने आने लगे हैं। 28 सितंबर को लगभग 237 पराली जलाने के मामले दर्ज किए गए। पराली जलान...और पढ़ें
विवेक तिवारी जागरण न्यू मीडिया में एसोसिएट एडिटर हैं। लगभग दो दशक के करियर में इन्होंने कई प्रतिष्ठित संस्थानों में कार् ...और जानिए
नई दिल्ली, विवेक तिवारी। उत्तर भारत के कई हिस्सों में धान की कटाई शुरू हो चुकी है। वहीं फसल की कटाई के साथ पराली जलाए जाने के मामले भी सामने आने लगे हैं। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की ओर से सेटेलाइट के जरिए 28 सितंबर को उत्तर भारत में लगभग 237 पराली जलाने के मामले दर्ज किए गए। पराली जलाना किसानों के लिए समय और लागत बचाने का आसान विकल्प जरूर बन गया है, लेकिन इसका खामियाजा किसानों को लम्बे समय तक उठाना पड़ सकता है। हाल ही में हुए एक अध्ययन में सामने आया है कि फसलों के अवशेष जलाने से न सिर्फ मिट्टी के पोषक तत्व और सूक्ष्मजीव नष्ट होते हैं, बल्कि खेती के लिए जरूरी जैव विविधता और इकोसिस्टम को भी काफी नुकसान पहुंचता है। आग लगाए जाने से एक तरफ जहां मिट्टी में मौजूद पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं वहीं फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों पर लगाम लगाने वाले जीव भी खत्म हो जाते हैं। ऐसे में फसलों को काफी नुकसान पहुंचता है। लाभकारी जीवों की कमी से दीर्घकालिक उत्पादकता खतरे में पड़ रही है। वहीं आग लगाए जाने से निकलने वाले धुएं से होने वाला वायु प्रदूषण मकड़ी, मेढ़क जैसे जीवों और पक्षियों आदि से बनने वाले एक स्वस्थ्य इकोसिस्टम को खत्म कर देता है।
साइंस डायरेक्ट में छपे इस शोध में वैज्ञानिकों ने लगभग 250 शोधों की समीक्षा में पाया कि फसल अवशेष जलाने से मृदा जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र पर बुरा असर पड़ता है। लगभग 233 दर्ज उदाहरणों में से करीब 40 फीसदी मामलों में पाया किया कि अवशेष जलाए जाने से फसलों को नुकसान पहुंचा। वैज्ञानिकों ने पाया कि धान के भूसे को जलाने से मिट्टी का नाइट्रोजन पूरी तरह खत्म हो जाता है, मिट्टी में मौजूद फास्फोरस में 25 फीसदी और सल्फर में 5 से 60 फीसदी तक की कमी आ जाती है। ऐसे में फसलों के अवशेष जलाए जाने से मिट्टी में पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ने से स्वास्थ्य खराब हो जाता है। वहीं तापमान बढ़ने से फसलों को कीट पतंगों से होने वाले नुकसान को रोकने वाले प्राकृतिक जीवों जैसे पक्षियों और मकड़ी, मेढ़क जैसे कीटों का इको सिस्टम पूरी तरह से नष्ट हो जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ये लम्बे समय तक खेती के लिए मुश्किल हालात पैदा करता है।
शोध में शामिल इंटरनेशनल मेज एंड वीट इंप्रूवमेंट सेंटर के वैज्ञानिक डॉक्टर महेश कुमार गठाला कहते हैं कि हमारे बदलते खेती के तरीके और केमिकलों के इस्तेमाल के चलते मिट्टी के पोषक तत्वों और उसकी जैव विविधता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। कुछ सालों पहले तक हमें एक किलो खाद डालने से जितना उत्पादन मिलता था अब उतना उत्पादन लेने के लिए 10 किलो खाद डालनी पड़ती है। पौधों में परागण के लिए बहुत से पक्षियों, मधुमक्खियों, कीटों, आदि की जरूरत होती है। फसलों के अवशेष जलाए जाने और बड़े पैमाने पर केमिकलों के इस्तेमाल से इन्हें काफी नुकसान पहुंचा है। हमें ध्यान रखना होगा कि हमारी बेहतर सेहत के लिए जरूरी है कि मिट्टी के नीचे और मिट्टी के ऊपर दोनों जगहों पर जैव विविधता बनी रहे। आज बड़ी संख्या में किसान खेतों की जुताई रोटावेटर से करा रहे हैं। हो सकता है कि एक साथ उन्हें इससे कुछ लाभ मिले लेकिन लम्बे समय में इसके कई नुकसान किसानों को होंगे। मिट्टी की ऊपर की तीन इंच के नीचे बहुत से खरपतवार के बीच उग नहीं पाते हैं। लेकिन रोटावेटर से जुताई के बाद ये ऊपर आ जाते हैं और सूरज की रौशनी और नमी पा कर ये उगने लगते हैं। इसी के चलते आज किसान काफी खरपतवारों का सामना कर रहे हैं। इन खरपतवारों को खत्म करने के लिए किसानों को हर साल बड़े पैमाने पर केमिकलों का इस्तेमाल करना पड़ रहा है।
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