फल किसानों के समर्थन में एकजुट हुआ कश्मीर, बोले- अभी भी प्रशासन सुध नहीं लेगा तो होगी और ज्यादा तबाही
कश्मीर में फल उत्पादक सरकार से सेब के परिवहन को सुचारू बनाने की मांग कर रहे हैं। श्रीनगर-जम्मू राजमार्ग बंद होने से 1000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। केसीसीआई और केटीएमएफ ने स्थिति को गंभीर बताया है। पीएचडीसीसीआई ने सरकार से तत्काल कार्रवाई करने का आग्रह किया है। बागवानी क्षेत्र जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

जागरण संवाददाता, श्रीनगर। कश्मीर फल उत्पादकों के समर्थन में एकजुट हो रहा है और सरकार से बाहरी बाजारों में सेब की उपज के सुचारू परिवहन को सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कदम उठाने का आग्रह कर रहा है।
श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग के बंद होने से फलों से लदे ट्रक 20 दिनों से अधिक समय से फंसे हुए हैं, जिससे बागवानी क्षेत्र में अराजकता फैल गई है और अनुमानित 1000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है। उन्होंने यह चेतावनी भी दी कि अगर अभी भी प्रशासन ने सुध नहीं ली तो आगे और तबाही होगी।
केसीसीआई ने स्थिति को बताया गंभीर
कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (केसीसीआई) के अध्यक्ष जाविद अहमद टेंगा ने स्थिति को गंभीर बताया। उन्होंने कहा, अंतिम नुकसान के आंकड़ों के बारे में बात करना जल्दबाजी होगी क्योंकि सैकड़ों वाहन अभी भी फंसे हुए हैं। फल उत्पादक बहुत मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं।
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बताया जा रहा है कि श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग पर फंसे फल अगर सड़े या क्षतिग्रस्त हो गए तो बाहर की मंडियों में बहुत कम कीमत मिलेगी। यह हमारे बागवानी क्षेत्र के लिए एक गंभीर स्थिति है, जो सालाना लगभग 9 करोड़ कार्य दिवस पैदा करता है। अर्थव्यवस्था में लगभग 20,000 करोड़ रुपये का योगदान देता है।
टेंग ने कहा, यह विडंबना ही है कि यह राजमार्ग अभी भी बारहमासी सड़क नहीं है और मौसम की मार झेलने के लिए अतिसंवेदनशील बना हुआ है। हम वर्षों से फसल बीमा की मांग कर रहे हैं और अब समय आ गया है कि सरकार इसे लागू करे। इस बंद से हुए वास्तविक नुकसान का आकलन करने के लिए सभी हितधारकों की एक समिति गठित की जानी चाहिए।
केटीएमएफ ने भी सेब किसानों की हालत पर जताई चिंता
कश्मीर ट्रेडर्स एंड मैन्युफैक्चरर्स फेडरेशन (केटीएमएफ) के अध्यक्ष मुहम्मद यासीन खान ने भी इसी तरह की चिंता जताई। खान ने कहा, यह हमारी अर्थव्यवस्था के लिए कठिन समय है।
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फल उत्पादकों को अच्छे मौसम की बड़ी उम्मीदें थीं, लेकिन फसल के चरम पर राजमार्ग बंद होने से सब कुछ अस्त-व्यस्त हो गया है। ट्रक हफ़्तों से फंसे हुए हैं, हर गुजरते दिन के साथ नुकसान बढ़ रहा है और इसका अर्थव्यवस्था पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा। अगर तुरंत सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए तो यह संकट हज़ारों परिवारों की आजीविका पर दाग छोड़ जाएगा।
पीएचडीसीसीआई ने भी निर्णायक सरकारी कार्रवाई की मांग की
पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (पीएचडीसीसीआई) के सह-अध्यक्ष हिमायु वानी ने भी निर्णायक सरकारी कार्रवाई की मांग की। उन्होंने कहा, हज़ारों फलों से लदे ट्रक फंसे हुए हैं, जिससे भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है। यह प्रशासन के लिए परीक्षा की घड़ी है और सरकार को कश्मीर की प्रमुख आर्थिक गतिविधियों के बचाव में आगे आना चाहिए।
साल दर साल तैयारी में कमी क्यों रहती है? हम फसल आने से पहले कभी तैयार क्यों नहीं होते? हम केवल तभी शोर क्यों मचाते हैं जब कोई आपदा आती है,हिमायु ने पूछा। पीएचडीसीसीआई प्रतिनिधिमंडल ने राजमार्गों की तत्काल सफाई, वैकल्पिक निकासी मार्गों के विकास और दीर्घकालिक बुनियादी ढांचे के समाधान सहित युद्धस्तर पर उपाय करने की आवश्यकता पर बल दिया।
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मल्टीमॉडल कार्गो टर्मिनलों के निर्माण का आग्रह किया
पार्सल ट्रेन सेवाओं के शुभारंभ का स्वागत करते हुए, इसने सार्वजनिक-निजी भागीदारी मोड में गति शक्ति पहल के तहत मल्टीमॉडल कार्गो टर्मिनलों के निर्माण का आग्रह किया। इसने सेब और अन्य उपज की समय पर निकासी के लिए एक व्यापक मास्टर प्लान का भी आह्वान किया, यह तर्क देते हुए कि उत्पादक गुणवत्ता वाले फलों की खेती पर ध्यान केंद्रित करते हैं, सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रसद, बुनियादी ढांचा और योजना लागू हो।
मौजूदा हालात योजना और तैयारियों का पूर्ण पतन
कश्मीर व्यापार गठबंधन (केटीए) के अध्यक्ष, ऐजाज शाहदार ने मौजूदा संकट पर गहरी चिंता व्यक्त की। आज हम जो देख रहे हैं वह सिर्फ़ परिवहन की बाधा नहीं है बल्कि योजना और तैयारियों का पूर्ण पतन है। सेब उद्योग हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की जीवन रेखा है, फिर भी इसे सड़क बंद होने और प्रशासनिक उदासीनता की दया पर छोड़ दिया गया है।
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शहादार ने कहा, देरी का हर बीतता दिन उत्पादकों को असहनीय नुकसान में धकेल रहा है, फंसे हुए ट्रकों में सेब सड़ रहे हैं। हम राजमार्ग को तुरंत साफ़ करने, फलों से लदे वाहनों के लिए प्राथमिकता वाले मार्ग और उन उत्पादकों के लिए मुआवज़ा की मांग करते हैं जिनकी उपज क्षतिग्रस्त हुई है। जब तक संरचनात्मक सुधार नहीं किए जाते तो हर साल इसी तरह हमारी तबाही होती रहेगी।
35 लाख लाेगों का भरण-पोषण करती है बागवानी
अर्थशास्त्रियों ने कहा कि संकट का पैमाना उत्पादकों और व्यापारियों से कहीं आगे तक जाता है। बागवानी क्षेत्र जम्मू-कश्मीर के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) में लगभग 8 प्रतिशत का योगदान देता है और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से 35 लाख से अधिक लोगों का भरण-पोषण करता है।कश्मीर के फल उत्पादन में अकेले सेब की हिस्सेदारी 75 प्रतिशत है, इसलिए फसल के मौसम में व्यवधान से परिवहन, व्यापार और खुदरा नेटवर्क पर असर पड़ता है।
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