नाना ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह ने की कश्मीर की रक्षा, नातिर सहेज रही डोगरा विरासत, जानें इनकी कहानी और संघर्ष
ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह की नातिन पूनम जम्वाल डोगरी भाषा और संस्कृति के संरक्षण में सक्रिय हैं। उन्होंने अपने पिता कुंवर वियोगी की विरासत को आगे बढ़ाते हुए 2015 में कुंवर वियोगी मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना की। यह ट्रस्ट शिक्षा छात्रवृत्ति और साहित्यिक आयोजनों के माध्यम से डोगरी भाषा और साहित्य को बढ़ावा दे रहा है।

अशोक शर्मा, जम्मू। नाना कश्मीर के रक्षक बिग्रेडियर राजेंद्र सिंह ने कश्मीर को बचाया तो उनकी नातिन पूनम जम्वाल डोगरी भाषा, साहित्य और डुग्गर संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए निरंतर काम कर रही हैं।
पिता ग्रुप कैप्टन रंधीर सिंह ‘कुंवर वियोगी’ की साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और डोगरी को शिखर पर पहुंचाने की चाहत के साथ 2015 में कुंवर वियोगी मेमोरियल ट्रस्ट; केवीएमटी की संस्थापना की और इस विरासत को आगे बढ़ाने में जुट गई।
वियोगी न सिर्फ डोगरी सानेट्स के जनक माने जाते हैं बल्कि 2300 से अधिक सानेट्स व 26 से अधिक मौलिक कृतियों के रचयिता भी रहे। ‘घर’ नामक लंबी डोगरी कविता के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ।
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शिक्षा व छात्रवृत्ति पहल
ट्रस्ट ने जम्मू विश्वविद्यालय के डोगरी व अंग्रेजी विभागों के साथ मिलकर कुंवर व्योगी मेरिट स्कालरशिप, प्रेम जम्वाल-कुंवर वियोगी मेरिट स्कालरशिप और कुंवर वियोगी रिसर्च स्कालरशिप शुरू की हैं। इनसे युवा विद्यार्थियों को भाषा व साहित्य के क्षेत्र में आगे बढ़ने का अवसर मिल रहा है।डोगरी संस्था भवन में कुंवर वियोगी आडिटोरियम का निर्माण करवाया ताकि यहां निरंतर साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन हो सके।
कुंवर वियोगी मेमोरियल ट्रस्ट की संस्थापक
पूनम जम्वाल द्वारा स्थापित कुंवर वियोगी ट्रस्ट निरंतर नई ऊंचाइयां छूते हुए कलाकारों, साहित्यकारों और सकालरों को अधिक से अधिक और बेहतर कार्य करने के लिए प्रेरित कर रहा है। इस वर्ष आयोजित 10वें कुंवर वियोगी चार दिवसीय उत्सव में कविताए, संगीत और विचारों के रंग देखने को मिले। उत्सव का शुभारंभ चेतें दी लड़ी स्कालरशिप अवार्ड्स से हुआ।
जहां रुपाली देवी, पंकज शर्मा और आयशा तलहत को डोगरी व अंग्रेज़ी में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने पर सम्मानित किया गया। इसी अवसर पर जम्मू विश्वविद्यालय के डोगरी विभाग में कुंवर वियोगी आडिटोरियम की योजना का अनावरण किया गया।
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जिसमें 150 सीटों की क्षमता और आधुनिक सुविधाएं होंगी। इस उत्सव में दो अहम परिचर्चाएं भी हुईं। इन चर्चाओं में सैन्य अधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता और कलाकार शामिल हुए और जम्मू की बदलती पहचान पर विचार साझा किए।
सम्मान व पुरस्कार
कुंवर वियोगी साहित्य पुरस्कार, कुंवर वियोगी साहित्य कला सम्मान, प्रेम जम्वाल यूथ आर्ट इनोवेशन अवार्ड शुरू किया गया। जिसमें संगीत निर्देशक बृज मोहन, जिन्होंने वियोगी की कविता ‘घर’ से प्रेरित गीत ‘जय डोगरा’ की रचना की, को सम्मानित किया गया। सैन्य सेवाओं और साहित्यिक योगदान के लिए कुंवर वियोगी शौर्य सम्मान शुरू किया।
पूनम जम्वाल बताती हैं कि वह कला संस्कृति, साहित्य, विरासत के लिए जो भी कार्य कर रही हैं, वह अपने पहले शिक्षक, अपने पिता और अपने पथप्रदर्शक से प्रेरित हो कर रही हैं। वे केवल मेरे पिता ही नहीं, बल्कि एक गहरे चिंतक, शब्दों के जादूगर, निडर नास्तिक और अद्भुत व्यक्तित्व थे। ज्ञान की प्यास उनके भीतर अनंत थी।
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डोगरी भाषा और संस्कृति की संरक्षक और संवर्धक
डोगरी साहित्य में उनकी आवाज अग्रणी थी। उन्हें हर कोई प्यार करता था और वे सबको समान रूप से प्रेम करते थे।पूनम बताती हैं कि उनका बचपन पिता जी की संगति में बीता, जहां उर्दू, डोगरी और अंग्रेजी साहित्य का गहन वैभव था और उसके साथ-साथ लोकप्रिय संस्कृति की गूंज भी।
उनके साथ हर विषय पर खुलकर चर्चा होती थी।चाहे राजनीति हो, धर्म हो या समाज। वे हिन्दू धर्म को परखते, इस्लाम को समझते, ईसाई विचारों पर बहस करते और यहूदी परंपराओं को जानने में उतनी ही रुचि रखते।
उनकी शिक्षा का तरीका अनोखा था। वे शेक्सपियर के ’रोमियो-जूलियट’ को उसी सहजता से सुनाते जैसे एक कोयल अपने गीत गाती है। उनका हर संवाद ज्ञानवर्धक, रोचक और जीवन का गहरा पाठ पढ़ाने वाला होता था।
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वह चिंतक, शब्दों के जादूगर थे
वे हमेशा अपने विचारों में स्पष्ट, अपने उद्देश्यों में एकाग्र और अपने व्यवहार में दयालु रहे। उनकी उपस्थिति हमें प्रेरणा देती रही, उनकी बातें दिल को छू जाती थीं।उन्हें डोगरी भाषा, संस्कृति, विरासत से विशेष प्रेम था।आज जब वे नहीं हैं, तो भी वे हमारी यादों और विचारों में जीवित हैं। वे हमारी आत्मा को रोशन करने वाले दीपक की तरह बने रहेंगे।उनकी चाहत को पूरा करने के उद्देश्य से ही पूनम जम्वाल लगातार कार्यरत हैं।
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