उत्तराखंड इलेक्शनः बागी ही नहीं अपने भी कर रहे परेशान
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 में कांग्रेस और भाजपा में कम से कम सात-आठ ऐसे मजबूत बागी खड़े हैं जो पासा पलट सकते हैं।
टिहरी, [आशुतोष झा]: उत्तराखंड में यूं तो सत्ता की लड़ाई में भाजपा और कांग्रेस आमने सामने हैं, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इस पूरे क्रम में दोनों दलों के नेता पार्टी के हर उम्मीदवार के लिए जी जान झोंक रहे हों।
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कई सीटों पर दिखने लगा है कि दोनों दलों के नेतागण पराजय से भी हतोत्साहित नहीं होने वाले हैं, बल्कि परोक्ष रूप से विरोधी को जिताने की जरूरत पड़ी, तो वह भी करने से गुरेज नहीं है। ऐसे में बागियों से जूझ रही कांग्रेस और भाजपा के लिए आखिरकार निर्दलीय उम्मीदवार अहम होकर उभरें तो आश्चर्य नहीं है।
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 में आप कांग्रेस और भाजपा के जिम्मेदार लोगों से बागी के बारे में पूछेंगे तो जवाब मिलेगा, 'वह तो हर बार होते हैं लेकिन वोट तो पार्टी को मिलता है। अगर लंबी चर्चा हुई तो वह भी मानने लगते हैं कि इस बार मामला इतना सरल नहीं है। दोनों दलों में कम से कम सात-आठ ऐसे मजबूत बागी खड़े हैं जो पासा पलट सकते हैं।
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फिर वह टिहरी की नरेंद्रनगर सीट हो या फिर पौड़ी की यमकेश्वर सीट। नरेंद्रनगर में कांग्रेस के घोषित उम्मीदवार हैं लेकिन चर्चा गर्म है कि खुद कांग्रेस के एक प्रमुख नेता निर्दलीय को जिताने की कोशिश कर सकते हैं।
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यमकेश्वर मे कांग्रेस की ओर से शैलेंद्र रावत के रूप में ऐसे उम्मीदवार मैदान मे हैं जो भाजपा से टिकट न मिलने पर नाराज हैं और अब माना जा रहा है यमकेश्वर के रहने वाले और कोटद्वार से कांग्रेस के उम्मीदवार नेगी और रावत अपने अपने गृहक्षेत्र में एक दूसरे के लिए जीत का समीकरण बना रहे हैं।
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कोटद्वार में भाजपा ने कांग्रेस से आए हरक सिंह रावत को टिकट दिया है जिनके खिलाफ भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व प्रदेश महामंत्री संगठन धनसिंह रावत पहले बयान भी दे चुके हैं। पौड़ी गढ़वाल की ही श्रीनगर सीट भी अनोखी है। यहां भाजपा से उम्मीदवारी की आस लगाए बैठे उद्योगपति मोहन काला निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खम ठोक चुके हैं।
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काग्रेस की हालत भी कुछ ऐसी ही है। प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय भी बगावत की आंच से बाहर नहीं हैं। गढ़वाल में रुद्रप्रयाग, कुमाऊं में लालकुआं और भीमताल, टिहरी में देवप्रयाग जैसी सीटों पर कांग्रेस को मजबूत बगावत का सामना कर पड़ रहा है, जबकि नरेंद्रनगर के साथ साथ धनोल्टी में कांग्रेस उम्मीदवार अपने ही साथियों के निशाने पर हैं।
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यही कारण है कि लड़ाई तीखी हो गई है और चाहे अनचाहे निर्दलीय विधायकों पर दारोमदार आ टिका है। फिलहाल माना जा रहा है कि लगभग आधे दर्जन निर्दलीय विधायक जीत कर आ सकते हैं। ध्यान रहे कि पिछली बार भाजपा सिर्फ एक सीट गंवाने के कारण सत्ता से बाहर रह गई थी।
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आखिरी वक्त पर दोनों दलों की ओर से बगावत पर लगाम लगाने की कोशिश हो रही है। मुख्यमंत्री हरीश रावत समेत दूसरे नेता उन लोगों पर नजरें लगाए हैं जो पार्टी के खिलाफ काम कर रहे हैं।
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उधर, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अजय भट्ट ने रविवार को भी 33 नेताओं को पार्टी से निष्कासित कर दिया है। बताते हैं कि भाजपा के बड़े नेता व संगठन के प्रभारी घूम घूम कर यह स्पष्ट चेतावनी दे रहे हैं कि कुछ गड़बड़ हुई तो खैर नहीं।
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