यह तथ्य चकित करने वाला है कि दवा बनाने वाली कंपनियों के लिए गुणवत्ता नियंत्रण का कोई नियम नहीं है और स्वयं कंपनियां ही अपनी दवाओं की गुणवत्ता का सत्यापन करती हैं। यह ठीक नहीं और ऐसे समय तो बिल्कुल भी नहीं, जब दवाओं की गुणवत्ता को लेकर दुनिया भर में जागरूकता बढ़ रही है। चूंकि भारत एक बड़ा दवा निर्यातक देश है और उसे विश्व का औषधि कारखाना कहा जाता है, इसलिए सरकार के लिए यह आवश्यक है कि वह दवा कंपनियों के लिए क्वालिटी कंट्रोल का कोई भरोसेमंद नियम बनाए। इस नियम के दायरे में निर्यात होने वाली दवाएं भी आनी चाहिए और देश में बिकने वाली दवाएं भी, क्योंकि नकली और खराब गुणवत्ता वाली दवाएं बिकने की शिकायतें आती ही रहती हैं।

इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि पिछले दिनों विदेश व्यापार महानिदेशालय ने एक अधिसूचना जारी कर कहा कि एक जून से कफ सिरप निर्यातकों को विदेश भेजने के पहले अपने उत्पादों का निर्धारित सरकारी प्रयोगशालाओं में परीक्षण कराना आवश्यक होगा। प्रश्न यह है कि यह नया नियम केवल खांसी के सिरप पर ही क्यों लागू हो रहा है? क्या इसलिए कि पिछले वर्ष गांबिया और उज्बेकिस्तान में भारतीय दवा कंपनियों की ओर भेजे गए कफ सिरप में खामी पाई गई? विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारतीय कंपनियों की ओर से इन देशों में निर्यात किए गए कफ सिरप से कुछ बच्चों की मौत का भी दावा किया। यद्यपि इस दावे को भारत ने चुनौती दी, लेकिन देश से निर्यात होने वाले कफ सिरप की गुणवत्ता को लेकर विश्व के कुछ देशों में संशय पैदा होना स्वाभाविक है।

यह ठीक है कि विदेश व्यापार महानिदेशालय ने कफ सिरप के मामले में एक आवश्यक कदम उठाया, लेकिन ऐसा कदम तो निर्यात होने वाली सभी दवाओं के मामले में उठाया जाना चाहिए। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कुछ समय पहले एक भारतीय फार्मा कंपनी की ओर से अमेरिका भेजी गई आई ड्राप में खामी मिलने की बात सामने आई थी।

भारत जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है और दुनिया के कुल जेनेरिक उत्पादन का लगभग 20 प्रतिशत आपूर्ति करता है। भारत के दवा उद्योग की व्यापकता को इससे समझा जा सकता है कि देश में तीन हजार से ज्यादा दवा कंपनियां हैं, जो दस हजार से ज्यादा फैक्ट्रियों के जरिये दवाओं का उत्पादन करती हैं। 2014 से 2022 के बीच भारत का दवा निर्यात दोगुने से भी ज्यादा बढ़कर 24.6 अरब डालर के स्तर पर पहुंचा।

स्पष्ट है कि भारत को अपने दवा उद्योग की साख को बचाने के लिए हरसंभव जतन करने होंगे। जिस तरह विदेश व्यापार महानिदेशालय कफ सिरप के निर्यात के मामले में सक्रिय हुआ, उसी तरह औषधि महानियंत्रक को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि देश में बनने वाली दवाओं की गुणवत्ता को लेकर कहीं कोई सवाल न उठने पाए।