जागरण संपादकीय: पाकिस्तानी सेना की असलियत, पर्दे के पीछे से सत्ता पर काबिज
यह सर्वथा उचित है कि भारत ने सैन्य टकराव रोकने पर तो सहमति व्यक्त की लेकिन पहलगाम आतंकी हमले के बाद उसके खिलाफ उठाए गए अपने कठोर कदमों पर फिर से विचार करने से मना कर दिया। इन कदमों पर कड़ाई से अमल किया जाना चाहिए क्योंकि इस सैन्य टकराव ने यही बताया है कि भारत को पाकिस्तान पोषित एवं प्रायोजित आतंकवाद से अपनी लड़ाई स्वयं ही लड़नी होगी।
भारतीय सेना की ओर से ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान को बेबस कर देने और उसके चलते दोनों देशों के बीच सैन्य टकराव थम जाने के बाद भी पाकिस्तानी नेता जिस तरह शेखी बघार रहे हैं, उससे यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या उनकी और पर्दे के पीछे से सत्ता पर काबिज उसके सैन्य प्रमुख की अक्ल ठिकाने आएगी।
यह प्रश्न इसलिए उठता है, क्योंकि पाकिस्तान भारत की ओर से नष्ट किए गए अपने आतंकी अड्डों को आतंकियों की शरणस्थली मानने से तो इन्कार कर ही रहा है, उनका बेशर्मी के साथ बचाव भी कर रहा है। यह बचाव पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ की ओर से यह कहते हुए किया गया कि हम तो तीन दशकों से आतंकियों को पाल-पोस रहे हैं।
इसके बाद पाकिस्तानी वायु सेना के वाइस एयर मार्शल ने बड़ी ढिठाई के साथ यह स्वीकारा कि पुलवामा का आतंकी हमला हमारी रणनीतिक चतुराई का उदाहरण था। अभी तक पाकिस्तान पुलवामा हमले से अपना पल्ला झाड़ रहा था, लेकिन अब तो उसके शीर्ष सैन्य अधिकारी ने ही मान लिया कि इस हमले के पीछे वही थे। इसका अर्थ है कि पाकिस्तानी सेना एक ऐसा सैन्य बल है जो आतंकियों को पालने-पोसने के साथ उन्हें भारत के खिलाफ इस्तेमाल भी करता है। अब यह और अच्छे से स्पष्ट हो रहा है कि पहलगाम के बर्बर आतंकी हमले के पीछे पाकिस्तान की सेना ही थी।
यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान के सैन्य अधिकारियों ने आतंकी संगठनों को अपना सहयोगी बताया हो। इस तरह की बातें जनरल परवेज मुशर्रफ भी करते थे और पाकिस्तान के अनेक नेता भी। कहना कठिन है कि आतंकी संगठनों को इतना खुलकर समर्थन देने वाली पाकिस्तानी सेना का संज्ञान विश्व समुदाय लेगा या नहीं, क्योंकि अभी तक तो वह चिंता जताने तक ही सीमित रहा है।
यह ठीक है कि भारत ने यह स्पष्ट कर दिया कि यदि आगे कोई आतंकी हमला होता है तो उसे युद्ध की तरह लिया जाएगा। चूंकि अभी ऐसे कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं कि पाकिस्तान आतंकियों के जरिये भारत को तंग करने से बाज आएगा, इसलिए उसे उसकी हरकतों के प्रति अंतरराष्ट्रीय समुदाय को बताने-चेताने के साथ आतंकियों के अड्डों को निशाना बनाने के लिए तत्पर रहना चाहिए।
यह सर्वथा उचित है कि भारत ने सैन्य टकराव रोकने पर तो सहमति व्यक्त की, लेकिन पहलगाम आतंकी हमले के बाद उसके खिलाफ उठाए गए अपने कठोर कदमों पर फिर से विचार करने से मना कर दिया। इन कदमों पर कड़ाई से अमल किया जाना चाहिए, क्योंकि इस सैन्य टकराव ने यही बताया है कि भारत को पाकिस्तान पोषित एवं प्रायोजित आतंकवाद से अपनी लड़ाई स्वयं ही लड़नी होगी। भारत को विश्व समुदाय को यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि पाकिस्तान आतंक की अपनी फैक्ट्रियों को बंद नहीं करता तो वह यह काम खुद करेगा।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।