प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विस्तृत संबोधन के साथ अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा समाप्त हो गई और उसका परिणाम वैसा ही रहा जैसा अपेक्षित था। यह हैरत की बात है कि विपक्ष सदन में अपना संख्याबल प्रदर्शित करने का साहस भी नहीं दिखा सका। इस अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से विपक्ष ने अपनी आक्रामकता दिखाते हुए मोदी सरकार को हरसंभव तरीके से कठघरे में खड़ा करने की कोशिश तो की, लेकिन वह नाकाम ही रहा। उसकी नाकामी का कारण यह रहा कि वह तथ्यों और तर्कों से लैस नहीं था। इसी कारण वह सरकार को आईना दिखाने में सफल नहीं हो सका।

विपक्ष चर्चा के दौरान जिस तरह बिखरा-बिखरा नजर आया और अपनी बात को सही तरीके से नहीं रख सका, उससे तो यही लगता है कि अविश्वास प्रस्ताव सरकार के लिए एक वरदान ही सिद्ध हुआ, क्योंकि इसके माध्यम से उसे अपनी बात आम जनता तक पहुंचाने का अवसर मिला। ऐसा नहीं है कि देश में समस्याएं नहीं हैं, लेकिन विपक्ष उन्हें समय रहते रेखांकित ही नहीं कर सका। ऐसा लगता है कि विपक्षी दल और विशेष रूप से नए गठबंधन आइएनडीआइए के नेता सरकार को घेरने के लिए ढंग से तैयारी ही नहीं कर सके।

अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान जहां विपक्ष ने अपनी कमजोरी ही प्रदर्शित की वहीं सत्तापक्ष उसके सवालों और उसके नकारात्मक रवैये का जवाब देने में कहीं अधिक सक्षम नजर आया। पहले सत्तापक्ष के अन्य नेताओं के साथ गृहमंत्री अमित शाह ने न केवल मणिपुर की हकीकत बताई, बल्कि इस राज्य में अतीत में हुई जातीय हिंसा और उस समय की राज्य और केंद्र की सरकारों के ढुलमुल रवैये को भी काफी विस्तार से बयान किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने पिछले नौ वर्षों में मोदी सरकार की तमाम सफलताओं को भी अच्छी तरह से रेखांकित किया।

उन्होंने यह भी बताया कि पिछले कुछ वर्षों में मणिपुर समेत पूरे पूर्वोत्तर में किस तरह विकास का काम हुआ है। फिर यही काम प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में और अधिक प्रभावी ढंग से किया। शायद यही कारण रहा कि कई विपक्षी नेता प्रधानमंत्री के संबोधन के बीच ही सदन से बाहर चले गए। यह विचित्र है कि पहले तो विपक्षी नेता प्रधानमंत्री के वक्तव्य की मांग को लेकर संसद नहीं चलने दे रहे थे, लेकिन जब वह बोले तो वे पूरा जवाब सुनने की क्षमता नहीं दिखा सके।

कम से कम अब तो विपक्ष को यह आभास हो जाना चाहिए कि उसे पहले ही मणिपुर के मुद्दे पर संसद में चर्चा के लिए राजी हो जाना चाहिए था। यह समझना कठिन है कि जब सरकार पहले दिन से मणिपुर पर चर्चा के लिए तैयार थी तो विपक्ष तरह-तरह के बहाने बनाकर संसद में हंगामा क्यों मचाता रहा? विपक्ष कुछ भी दावा करे, अविश्वास प्रस्ताव के जरिये वह कुछ विशेष हासिल नहीं कर सका। उलटे सत्तापक्ष विपक्षी दलों के गठबंधन आइएनडीआइए के अंतर्द्वंद्व और विरोधाभासों को उजागर करने में सफल साबित हुआ।