खतरे की घंटी, हमास का समर्थन करना जानबूझकर आतंक की पैरवी करना है
इससे दुर्भाग्यपूर्ण चिंताजनक और शर्मनाक और कुछ नहीं हो सकता कि देश के कुछ हिस्सों में मुस्लिम संगठन हमास का समर्थन करने में लगे हुए हैं। हमास का समर्थन करना जानबूझकर आतंक की पैरवी करना है। यह दुखद है कि जब भारत के मुसलमानों को हमास की बर्बरता की निंदा करनी चाहिए तब उनके कुछ संगठन उसकी पक्षधरता करने में लगे हैं।
पिछले दो दिनों से केरल से आने वाली खबरें गंभीर चिंता का कारण हैं। पहले इजरायल पर बर्बर आतंकी हमला करने वाले संगठन हमास के एक नेता ने मलप्पुरम जिले में एक कार्यक्रम को वर्चुअली संबोधित किया। इसके बाद कोच्चि में ईसाइयों की एक प्रार्थना सभा में एक के बाद एक कई धमाके हुए, जिसमें एक महिला की मृत्यु हो गई और कई अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए।
फिलहाल यह कहना कठिन है कि इन धमाकों के पीछे कौन है और उसका उद्देश्य क्या था, लेकिन जिस तरह से धमाके हुए उससे यही लगता है कि ये एक आतंकी घटना है और इसी कारण गृह मंत्री अमित शाह ने केंद्रीय एजेंसियों को घटना की जांच के लिए तत्काल रवाना कर दिया। उन्होंने केरल के मुख्यमंत्री से बात भी की, लेकिन वह दिल्ली में फलस्तीन के समर्थन में धरने पर बैठे हुए थे।
फलस्तीन के समर्थन के नाम पर देश भर में कई जगह प्रदर्शन हो रहे हैं। चूंकि भारत सरकार की यह नीति है कि फलस्तीनियों का अपना एक अलग देश होना चाहिए, इसलिए उनके पक्ष में आवाज उठाने में कोई हर्ज नहीं, लेकिन फलस्तीन के नाम पर जिस तरह हमास का समर्थन और महिमामंडन किया जा रहा है, वह खतरे की एक बड़ी घंटी है। भले ही भारत ने हमास को आतंकी संगठन न घोषित किया हो, लेकिन इस संगठन के तौर-तरीके आतंकियों वाले ही हैं और इजरायल में उसने जिस तरह की बर्बरता दिखाई उससे तो वह सबसे खूंखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट को भी मात करता हुआ दिखता है।
इससे दुर्भाग्यपूर्ण, चिंताजनक और शर्मनाक और कुछ नहीं हो सकता कि देश के कुछ हिस्सों में मुस्लिम संगठन हमास का समर्थन करने में लगे हुए हैं। हमास का समर्थन करना जानबूझकर आतंक की पैरवी करना है। यह दुखद है कि जब भारत के मुसलमानों को हमास की बर्बरता की निंदा करनी चाहिए तब उनके कुछ संगठन उसकी पक्षधरता करने में लगे हैं। यह समझना कठिन है कि केरल की सरकार ने जमात-ए-इस्लामी हिंद की युवा शाखा के उस आयोजन को अनुमति कैसे दे दी, जिसमें हमास के नेता को वर्चुअली संबोधन करना था।
भारत जिस तरह आतंकी हमलों का शिकार होता चला आ रहा है, उसे देखते हुए तो देश में किसी को भी हमास के पक्ष में बोलने से पहले सौ बार सोचना चाहिए था। कम से कम अब तो केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना ही चाहिए कि हमास की पक्षधरता करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए। यह ठीक नहीं कि फलस्तीन के पक्ष में खड़े होने वाले राजनीतिक दल अथवा गैर राजनीतिक संगठन हमास की निंदा करने से कतरा रहे हैं। यह वोट बैंक की देशघाती सस्ती राजनीति के अतिरिक्त और कुछ नहीं।
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