फलस्तीनी आतंकी गुट हमास ने इजरायल में घुसकर जैसा भयावह हमला किया, वह एक तरह का आक्रमण ही है। यही कारण है कि इजरायल ने इसे युद्ध की संज्ञा देते हुए कहा कि उसके शत्रुओं को इस जंग की ऐसी कीमत चुकानी होगी, जिसकी उन्हें कल्पना भी नहीं होगी। फलस्तीनी आतंकी समूह इसके पहले भी इजरायल में हमले करते रहे हैं, लेकिन युद्ध सरीखा इतना व्यापक हमला संभवतः पहली बार है। इस बार हमास के आतंकी समुद्री और जमीनी मार्ग के साथ पैराग्लाइडिंग के सहारे भी इजरायली सीमा में घुसने में सफल रहे।

हमास आतंकियों ने इजरायल में हजारों राकेट दागे और वहां के नागरिकों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाने के साथ लोगों को घरों में घुसकर मारा। उन्होंने इजरायली सैनिकों के साथ महिलाओं और बच्चों को भी बंधक बनाकर उनकी हत्या कर दी। कुछ बंधकों को वे अपने साथ भी ले गए। जितना यह स्पष्ट है कि हमास ने पूरी तैयारी के साथ इजरायल पर धावा बोला, उतना ही यह भी कि इजरायली खुफिया एजेंसियों को उसकी तैयारियों की भनक नहीं लग पाई। इसी कारण उसे बड़ी क्षति उठानी पड़ी।

इजरायल और फलस्तीन के बीच एक ऐसे समय जंग छिड़ी है, जब विश्व समुदाय रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते पहले से ही त्रस्त है। इजरायल और फलस्तीन के बीच लड़ाई ने विश्व शांति के लिए एक नया संकट पैदा कर दिया है। इस लड़ाई के चलते विश्व समुदाय में विभाजन की खाई और चौड़ी ही होगी। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि ईरान के साथ-साथ अन्य कई इस्लामी देशों ने हमास की तरफदारी की है। हमास की खौफनाक हरकत ने सऊदी अरब एवं इजरायल के बीच संबंध कायम होने की संभावनाओं को स्याह करने का भी काम किया है। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि ईरान को सऊदी अरब एवं इजरायल की निकटता रास नहीं आ रही थी और इसीलिए उसने हमास को इजरायल पर आक्रमण करने के लिए उकसाया।

हालांकि संयुक्त राष्ट्र ने हमास के जघन्य हमले की निंदा की है, लेकिन इसमें संदेह है कि वह अथवा उसकी सुरक्षा परिषद शांति कायम करने में सक्षम हो सकेगी। यह कहने में हर्ज नहीं कि सुरक्षा परिषद विभिन्न देशों के बीच तनाव, टकराव और युद्ध रोकने में नाकाम है। इसीलिए वह अप्रासंगिक होती जा रही है। यह अच्छा हुआ कि भारत ने साफ तौर पर यह कहा कि इस कठिन समय में वह इजरायल के साथ खड़ा है। इस स्पष्टता की आवश्यकता इसलिए थी, क्योंकि हमास का हमला मुंबई में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी हमले की याद दिला रहा है। हमास के आतंकियों ने इजरायल में 26/11 की तरह से, लेकिन उससे कई गुना भीषण हमला किया है। उसे इसकी कीमत चुकानी ही चाहिए। यह ठीक है कि भारत फलस्तीनी हितों के पक्ष में है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं हो सकता कि वह भीषण आतंकी हमले की निंदा करने में किसी तरह का संकोच करे।