यह सचमुच एक बड़ी उपलब्धि है कि भारतीय वैज्ञानिकों ने वह कर दिखाया जो अब तक केवल अमेरिका, रूस और चीन ही कर सके हैैं। अंतरिक्ष में उपग्रह मार गिराने की क्षमता का सफल प्रदर्शन करने के बाद भारत ने खुद को सच्चे अर्थों में अंतरिक्ष की एक बड़ी शक्ति के रूप में स्थापित कर लिया है। अब उसे बिना किसी संकोच अंतरिक्ष का महारथी कहा जा सकता है। हमारे वैज्ञानिकों ने यह उल्लेखनीय सफलता हासिल कर केवल भविष्य की चुनौतियों का जवाब देने की अपनी क्षमता का ही शानदार प्रदर्शन नहीं किया है, बल्कि यह भी साबित किया है कि वे हर तरह की बाधा पार करने में सक्षम हैैं। यदि अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के साथ रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के वैज्ञानिकों की मुक्त कंठ से प्रशंसा हो रही है तो यह स्वाभाविक है। आखिर उन्होंने भारत को दुनिया के शीर्ष देशों की पांत में खड़ा कर दिया है।

उपग्रह नष्ट करने की क्षमता हासिल करना इसलिए वक्त की मांग थी, क्योंकि अंतरिक्ष तकनीकी प्रतिस्पर्धा से दो-चार होने के साथ ही भविष्य में संघर्ष का भी मैदान बन सकता है। आखिर यह एक तथ्य है कि 2007 में चीन ने इसी तरह का परीक्षण करके इसी आशंका को बल दिया था। जब अंतरिक्ष के सैन्य इस्तेमाल की आशंका बढ़ती जा रही हो तब समझदारी इसी में है कि भारत भी अपने को तैयार रखे। यह सही है कि भारत अंतरिक्ष को हथियारों की होड़ से मुक्त रखना चाहता है, लेकिन अकेले उसके चाहने से हालात बदलने वाले नहीं हैैं।

चूंकि मिशन शक्ति के तहत एंटी सैटेलाइट मिसाइल का सफल परीक्षण करना साधारण उपलब्धि नहीं इसलिए इस पर सवाल खड़े करने का कोई खास औचित्य नहीं बनता कि इस आशय की घोषणा खुद प्रधानमंत्री ने क्यों की? आखिर प्रधानमंत्री की घोषणा पर सवाल खड़े करने वाले इसकी अनदेखी कैसे कर सकते हैैं कि अंतरिक्ष विभाग का प्रभार उनके ही पास है। नि:संदेह इस पर बहस हो सकती है कि प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम संदेश के माध्यम से अंतरिक्ष में अर्जित की गई इस सफलता की घोषणा क्यों की, लेकिन यह कोई मामूली कामयाबी नहीं है। अगर इस कामयाबी को दूसरे परमाणु परीक्षण की तरह से माना जा रहा है तो फिर यह आवश्यक ही था कि उसके बारे में स्वयं प्रधानमंत्री देश-दुनिया को अवगत कराते।

यह सही है कि आम चुनाव होने जा रहे हैैं, लेकिन क्या इस तरह की असाधारण उपलब्धियों को चुनाव संबंधी आचार संहिता से बांधने की कोशिश उचित है? ऐसा लगता है कि विपक्षी दलों ने इस सवाल पर ढंग से विचार करना जरूरी नहीं समझा। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अंतरिक्ष में हासिल कामयाबी पर वैज्ञानिकों को बधाई तो दी, लेकिन इसके साथ ही प्रधानमंत्री पर तंज भी कसा। क्या यह आवश्यक था? सवाल यह भी है कि कांग्रेसी नेता यह जानते हुए भी इस कामयाबी का श्रेय मोदी सरकार को देने से क्यों बच रहे कि इसरो ने मनमोहन सरकार के समय इस तरह का परीक्षण करने की अनुमति मांगी थी? बेहतर होगा कि कांग्रेस के नेता ही यह बताएं कि उस समय यह अनुमति क्यों नहीं दी गई थी?