जागरण संपादकीय: आपातकाल के सबक, लोकतंत्र को किया था शर्मसार
वंशवादी गांधी परिवार पर आश्रित कांग्रेस शायद ही अपनी रीति-नीति सुधारे, पर उन प्रवृत्तियों से सभी को सावधान रहना चाहिए, जिनका परिचय आपातकाल में इंदिरा गांधी और उनके सहयोगियों ने दिया था। सभी को यह भी ध्यान रहे तो अच्छा कि अभी भारत को एक आदर्श लोकतांत्रिक देश बनना शेष है।
सत्ता और पद के मोह में इंदिरा गांधी की ओर से देश पर आपातकाल थोपने, विरोधियों के खिलाफ दमनचक्र चलाने और नौकरशाही को अपने हिसाब से काम करने के लिए विवश करने के घोर अलोकतांत्रिक फैसले के 50 वर्ष पूरे होने पर देश में विभिन्न आयोजन हुए। प्रधानमंत्री मोदी ने भी आपातकाल के काले दिनों को याद किया। आज अनेक ऐसे नेता सक्रिय हैं, जिन्होंने 50 साल पहले आपातकाल के उत्पीड़न का सामना किया था।
यह आश्चर्यजनक है कि आज कांग्रेस को आपातकाल के समय इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली केंद्रीय सत्ता एवं कांग्रेस की राज्य सरकारों के दमनकारी रवैये का स्मरण किया जाना सहन नहीं हो रहा है। आपातकाल को लेकर जो कुछ कहा गया, उसका जवाब देते हुए कांग्रेस ने यह समझाया कि मोदी का शासन अघोषित आपातकाल है।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश की मानें तो आज लोकतंत्र पर पांच गुना अधिक हमले हो रहे हैं। क्या इंदिरा गांधी के आपातकाल पर उनके ऐसे ही विचार तब थे, जब वह कांग्रेस में नहीं थे? इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि अपने निर्वाचन पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के प्रतिकूल फैसले और पीएम पद छोड़ने से बचने के लिए ही इंदिरा गांधी ने आपातकाल थोपकर भारतीय लोकतंत्र को शर्मसार किया था।
आपातकाल की सजा उन्हें 1977 के आम चुनाव में भोगनी पड़ी। कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। सत्ता में आई जनता पार्टी का शासन अधिक नहीं चला और इंदिरा गांधी 1980 में फिर से सत्ता में आ गईं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि आपातकाल को भुला दिया जाए।
आपातकाल में इंदिरा गांधी ने मनमाने तरीके से शासन करने के अलावा परिवारवाद को भी आगे बढ़ाया। दमनचक्र चलाने और न्यायपालिका पर दबाव बनाने में उनके बेटे संजय गांधी की विशेष भूमिका थी। वह तो संविधान बदलने का इरादा रखते थे। यह विडंबना ही है कि जिन नेताओं ने आपातकाल का डटकर विरोध किया, उनके वंशज और उनकी ओर से गठित कई दल आज कांग्रेस के साथ हैं।
इस पर हैरानी नहीं कि इनमें से अधिकांश गांधी परिवार की तरह परिवारवाद की राजनीति को न केवल आगे बढ़ा रहे, बल्कि उसे सही भी ठहरा रहे हैं। इस पर आश्चर्य नहीं कि अपने विचित्र रवैये के कारण ही कांग्रेस उत्तर भारत में खास तौर पर कमजोर हो रही है। अपने पराभव के लिए वह स्वयं जिम्मेदार है, लेकिन भारतीय लोकतंत्र के लिए उसका कमजोर होना शुभ संकेत नहीं।
वंशवादी गांधी परिवार पर आश्रित कांग्रेस शायद ही अपनी रीति-नीति सुधारे, पर उन प्रवृत्तियों से सभी को सावधान रहना चाहिए, जिनका परिचय आपातकाल में इंदिरा गांधी और उनके सहयोगियों ने दिया था। सभी को यह भी ध्यान रहे तो अच्छा कि अभी भारत को एक आदर्श लोकतांत्रिक देश बनना शेष है।
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