नए कानून मंत्री, किरण रिजिजू द्वारा उठाए गए कुछ प्रश्नों के जवाब मिलना अब भी बाकी
कानून मंत्री के रूप में किरण रिजिजू न केवल अपनी बात स्पष्टता से रख रहे थे बल्कि कई बार वह सुप्रीम कोर्ट से असहमति भी प्रकट करने से पीछे नहीं रहते थे। बतौर कानून मंत्री किरण रिजिजू ने सुप्रीम कोर्ट को उसकी मर्यादा और लक्ष्मण रेखा का भी स्मरण कराया।
किरण रिजिजू की जगह अर्जुन राम मेघवाल का कानून मंत्री बनना न केवल अप्रत्याशित है, बल्कि कई प्रश्न खड़े करने वाला भी है। चूंकि अगले आम चुनाव में अब लगभग एक वर्ष की ही देर रह गई थी इसलिए यह माना जा रहा था कि केंद्रीय मंत्रिपरिषद में फेरबदल हो सकता है और कुछ नए चेहरे भी आ सकते हैं। इस आशय की चर्चा भी लगातार हो रही थी, लेकिन ऐसा कुछ होने के बजाय अचानक यह समाचार सामने आया कि कानून मंत्री किरण रिजिजू अब पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय संभालेंगे और उनके स्थान पर अर्जुन राम मेघवाल कानून मंत्री के दायित्व का निर्वहन करेंगे।
किरण रिजिजू को जिस तरह कानून मंत्रालय से हटाया गया उससे रविशंकर प्रसाद का स्मरण हो रहा है। कानून मंत्रालय से उनकी विदाई भी अप्रत्याशित थी। तब कुछ और मंत्री भी हटाए गए थे, लेकिन इस बार फेरबदल की परिधि में किरण रिजिजू के साथ उनके कनिष्ठ मंत्री एसपी सिंह बघेल का ही मंत्रालय बदला गया।
कहना कठिन है कि कानून मंत्रालय से उनकी विदाई मूलत: किन कारणों से हुई, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि वह एक मुखर कानून मंत्री के रूप में सक्रिय थे। वह न्यायपालिका से जुड़े विभिन्न विषयों के साथ कानूनी मामलों पर लगातार अपनी बात बेबाकी से रखते थे। उनकी मुखरता को लेकर यह आम धारणा थी कि वह अपने विचार व्यक्त करने के साथ ही सरकार के मत को भी प्रकट करने का काम कर रहे थे, लेकिन अब जब उन्हें कानून मंत्रालय से हटा दिया गया है तो ऐसा लगता है कि सुप्रीम कोर्ट और किरण रिजिजू के बीच टकराव की जो मुद्रा बन रही थी, संभवत: उसके चलते ही उन्हें हटाया गया।
कानून मंत्री के रूप में किरण रिजिजू न केवल अपनी बात स्पष्टता से रख रहे थे, बल्कि कई बार वह सुप्रीम कोर्ट से असहमति भी प्रकट करने से पीछे नहीं रहते थे। बतौर कानून मंत्री किरण रिजिजू ने सुप्रीम कोर्ट को उसकी मर्यादा और लक्ष्मण रेखा का भी स्मरण कराया। यही काम उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भी करने में लगे हुए थे। उन्होंने तो कहीं अधिक तीखे बयान दिए।
किरण रिजिजू को कानून मंत्रालय से हटाने का कारण कुछ भी हो, लेकिन इसे विस्मृत नहीं किया जाना चाहिए कि उन्होंने न्यायिक नियुक्ति आयोग संबंधी कानून को खारिज करने का जो प्रश्न उठाया उसे अनुचित नहीं कहा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को खारिज कर न्यायिक प्रक्रिया में सुधार की प्रक्रिया को रोकने का ही काम किया था। समझना कठिन है कि उसने इस कानून की कथित विसंगतियों को दूर करने के बजाय समूचे कानून को ही असंवैधानिक क्यों करार दिया। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट का जो भी अभिमत हो, यह एक तथ्य है कि किरण रिजिजू ने बतौर विधि मंत्री कलेजियम की विसंगतियों को लेकर जो प्रश्न उठाए, वे अभी भी अनुत्तरित हैं और उनका समाधान किया जाना चाहिए।
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