एकपक्षीय प्रस्ताव से दूरी बनाना ही भारत के पास विकल्प
संयुक्त राष्ट्र महासभा में लाए गए प्रस्ताव में हमास के हमले का उल्लेख करने का आग्रह किया गया था लेकिन उसे स्वीकार नहीं किया गया। इन स्थितियों में भारत के समक्ष यही एक विकल्प शेष रह गया था कि वह इस एकपक्षीय प्रस्ताव से दूरी बनाए। भारत के साथ 44 देशों ने उक्त प्रस्ताव पर हुए मतदान में भाग नहीं लिया और 14 देशों ने उसके विरोध में मतदान किया।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में इजरायल और हमास के बीच जारी संघर्ष को थामने के लिए लाए गए प्रस्ताव से भारत ने दूरी बनाकर बिल्कुल सही किया। भले ही जार्डन की ओर से लाए गए इस प्रस्ताव में मानवीय आधार पर गाजा में संघर्ष विराम की अपील की गई हो, लेकिन उसमें न तो इजरायल पर हमास के बर्बर हमले का कोई उल्लेख किया गया और न ही उसके आतंकियों की ओर से दो सौ से अधिक लोगों को बंधक बनाने का।
आखिर ऐसे किसी प्रस्ताव को मानवीय आधार वाला कैसे कहा जा सकता है, जिसमें 1400 से अधिक निहत्थे लोगों की बर्बर तरीके से हत्या करने वालों की निंदा करने से बचा गया हो और इस तथ्य को ओझल कर दिया गया हो कि इजरायल के साथ कुछ और देशों के दो सौ से अधिक लोगों को हमास के आतंकियों ने बंधक बना रखे हैं? इन बंधकों में बच्चे और महिलाएं भी हैं। हमास के आतंकी इन बंधक बनाए गए लोगों की आड़ लेकर इजरायल में राकेट दागने में लगे हुए हैं।
हालांकि, संयुक्त राष्ट्र महासभा में लाए गए प्रस्ताव में हमास के हमले का उल्लेख करने का आग्रह किया गया था, लेकिन उसे स्वीकार नहीं किया गया। इन स्थितियों में भारत के समक्ष यही एक विकल्प शेष रह गया था कि वह इस एकपक्षीय प्रस्ताव से दूरी बनाए। भारत के साथ 44 देशों ने उक्त प्रस्ताव पर हुए मतदान में भाग नहीं लिया और 14 देशों ने उसके विरोध में मतदान किया। चूंकि 121 देशों ने इस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, इसलिए वह पारित तो हो गया, लेकिन उससे कुछ हासिल होने वाला नहीं है। यह एक निरर्थक और निष्प्रभावी प्रस्ताव है। यह प्रस्ताव यही बयान कर रहा कि किस तरह कई बार बहुमत गलत साबित होता है या फिर नीर-क्षीर विवेक का उपयोग नहीं करता।
आखिर जिस मानवीय आधार पर संघर्ष विराम रोकने का आग्रह किया गया, उसी मानवीय आधार पर हमास से बंधकों को रिहा करने की अपील क्यों नहीं की जा सकी? क्या बंधक बनाए लोगों के कोई मानवाधिकार नहीं? यह दुर्भाग्य की बात है कि जब सभी की सहमति से एक संतुलित प्रस्ताव लाकर उसे सार्थक बनाया जा सकता था, तब एक ऐसा प्रस्ताव लाया गया, जो समस्या के समाधान में सहायक नहीं साबित होने वाला। यह समझना कठिन है कि कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी को उक्त प्रस्ताव से भारत के दूरी बनाने पर हैरानी क्यों हो रही है? क्या वह इससे अनजान हैं कि भारत किस तरह हमास सरीखे आतंकी समूहों के हमलों का शिकार होता रहा है? निःसंदेह वह इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकतीं कि सात अक्टूबर को हमास ने इजरायल पर जो भीषण हमला किया, वह मुंबई में हुए आतंकी हमले की याद दिलाने वाला है। हमास के हमले का जिक्र न करने वाले प्रस्ताव के पक्ष में खड़े होने का मतलब होता जानबूझकर आतंकवाद की अनदेखी करना।
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