श्रीनगर में क्रिकेट खेल रहे पुलिस इंस्पेक्टर मसरूर अहमद वानी को गोली मारे जाने के 24 घंटे के अंदर पुलवामा में आतंकियों ने जिस तरह उत्तर प्रदेश के एक श्रमिक मुकेश कुमार की जान ले ली, उससे यही लगता है कि उनका दुस्साहस फिर से बेलगाम हो रहा है। ये दोनों घटनाएं उस समय की याद दिला रही हैं, जब कश्मीर में टारगेट किलिंग का सिलसिला कायम था।

यह सिलसिला फिर से कायम न होने पाए, इसके लिए इन दोनों घटनाओं के लिए जिम्मेदार आतंकियों को ठिकाने लगाने के साथ उन्हें संरक्षण देने वालों की भी पहचान कर कठोर दंड का भागीदार बनाना होगा। इसके साथ ही इस पर भी ध्यान देना होगा कि कश्मीर में सक्रिय आतंकियों के दुस्साहस के पीछे कहीं इजरायल पर हमास का बर्बर हमला तो नहीं?

इस अंदेशे का कारण यह है कि हमास के पैशाचिक कृत्य ने दुनिया भर के जिहादियों का दुस्साहस बढ़ाने का काम किया है। इसकी वजह यही है कि हमास की रोंगटे खड़े करने वाली बर्बरता से अवगत होने के बाद भी विश्व के अनेक हिस्सों में इस आतंकी संगठन का महिमामंडन हो रहा है। दुर्भाग्य से फलस्तीन के पक्ष में आवाज उठाने के बहाने यह काम अपने देश में भी हो रहा है।

चंद दिनों पहले ही हमास के एक संस्थापक सदस्य ने केरल में एक कार्यक्रम को आनलाइन संबोधित किया। इसी तरह केरल में ही एक अन्य कार्यक्रम में जब कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने हमास की वहशी हरकत को आतंकी कार्रवाई बता दिया तो उन्हें आगे होने वाले एक आयोजन से हटा दिया गया।

चूंकि इसके साफ संकेत दिख रहे कि हमास की हरकत ने जिहादी संगठनों के दुस्साहस को बढ़ाने का काम किया है, इसलिए भारत को न केवल कश्मीर में अतिरिक्त सतर्कता बरतनी होगी, बल्कि शेष देश में भी। केंद्र और विशेष रूप से राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि फलस्तीन की पैरवी की आड़ में हमास का महिमामंडन न होने पाए। जम्मू-कश्मीर में अतिरिक्त सतर्कता बरतने की आवश्यकता इसलिए है, क्योंकि पाकिस्तान इस राज्य में आतंकी गतिविधियां बढ़ाकर यह दुष्प्रचार करने की कोशिश में है कि गाजा जैसे हालात कश्मीर घाटी में भी हैं।

इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि पिछले दिनों उसने जम्मू से लगती अंतरराष्ट्रीय सीमा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन किया। यह ठीक है कि कश्मीर में आतंकियों के सफाए का सिलसिला कायम है, लेकिन उन कारणों पर नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता है, जिसके चलते सीमा पार से आतंकियों की घुसपैठ थम नहीं रहीं और सुरक्षा कर्मियों के साथ अन्य राज्यों के श्रमिकों के साथ बचे-खुचे कश्मीरी हिंदुओं को निशाना बनाने की घटनाएं रह-रहकर होती ही रहती हैं। ये घटनाएं इसीलिए होती हैं, क्योंकि आतंकियों के खुले-छिपे समर्थकों पर पूरी तरह लगाम नहीं लगाई जा सकी है। आतंकियों के साथ उनके समर्थकों के दुस्साहस का भी दमन आवश्यक है।