यह निराशाजनक है कि तमाम नियमों में संशोधन-परिवर्तन के बाद भी वस्तुओं एवं सेवाओं पर कराधान की व्यवस्था यानी जीएसटी सरलीकरण से दूर है। जीएसटी लागू हुए आठ वर्ष होने वाले हैं, लेकिन एक बड़े कारोबारी वर्ग के लिए यह व्यवस्था जटिल ही बनी हुई है। जीएसटी लागू किया जाना एक क्रांतिकारी कदम था।

इसे लागू करते समय यह माना गया था कि इससे एक ओर जहां टैक्स चोरी पर लगाम लगेगी, वहीं कारोबारियों को लालफीताशाही से मुक्ति मिलेगी।

दुर्भाग्य से अभी तक ऐसा नहीं हो सका है और यह कहना भी कठिन है कि निकट भविष्य में ऐसा हो जाएगा। जीएसटी की जटिलता केवल इससे ही उजागर नहीं होती कि एक जैसे उत्पादों पर अलग-अलग दरें हैं, बल्कि इससे भी होती है कि कारोबारियों को उसके कई प्रविधानों को समझने के लिए विशेषज्ञों की सहायता लेनी पड़ती है।

इससे उनके समय और धन की बर्बादी तो होती ही है, उनका सुख-चैन भी छिनता है। इससे वे हतोत्साहित होते हैं और जीएसटी के पचड़े में पड़ने से बचते हैं। यदि जीएसटी चोरी के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं तो इसका एक कारण इस व्यवस्था के जटिल नियम भी हैं। जीएसटी के जटिल बने रहने का एक बड़ा कारण नौकरशाही का रवैया है, जो उलझाने वाले तौर-तरीके अपनाने में माहिर है।

वह विसंगतियां दूर करने के नाम पर ऐसे तरीके अपनाता है, जिससे सरल चीजें भी कठिन हो जाती हैं। लगता है कि बीते वर्षों में जीएसटी में जो सैकड़ों सुधार किए गए, उन्हें अपनाते समय कारोबारियों से विचार-विमर्श करना आवश्यक नहीं समझा गया या फिर उनके सुझावों को महत्व ही नहीं दिया गया।

यह समझा जाए तो बेहतर कि कराधान की कोई भी व्यवस्था जब जटिल हो जाती है तो लोग उसके दायरे में आने से बचना पसंद करते हैं। वादा यह किया गया था कि जीएसटी के तहत कारोबारियों को केवल अपनी बिक्री का विवरण देना होगा, लेकिन अब उन्हें तमाम तरह की जानकारी देनी पड़ती है और यदि भ्रम पैदा करने वाले नित नए नियमों के कारण तनिक भी हेर-फेर हो जाए तो वह उनके लिए आफत बन जाती है। यहीं से भ्रष्टाचार के लिए गुंजाइश पैदा होती है और टैक्स चोरी के रास्ते खुलते हैं।

आखिर इसका क्या औचित्य कि यदि कोई कारोबारी किसी दूसरे से माल खरीदे और दूसरा समय पर जीएसटी रिटर्न न भरे तो पहले वाले का इनपुट टैक्स रिटर्न फंस जाए? यह तो करे कोई और भरे कोई वाला मामला है।

सरकार इससे संतुष्ट हो सकती है कि जीएसटी से प्राप्त राजस्व बढ़ रहा है, लेकिन कारोबारी उससे संतुष्ट नहीं। इसके अतिरिक्त जनता के लिए भी यह समझना कठिन है कि इस व्यवस्था से उसे क्या लाभ मिला? यह प्रश्न भी अनुत्तरित है कि जीएसटी स्लैब कब कम होंगे?