जागरण संपादकीय: अभिव्यक्ति की आजादी, आपत्तिजनक पोस्ट के लिए सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी
निश्चित रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कुछ अप्रिय कहने का अधिकार देती है लेकिन इसकी भी अपनी एक सीमा है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे को तय करना आसान काम नहीं लेकिन इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग न होने पाए इसके लिए सुप्रीम कोर्ट को कुछ करना होगा। उचित होगा कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संदर्भ में कुछ दिशा-निर्देश तय करे।
सुप्रीम कोर्ट ने आपत्तिजनक एवं भड़काऊ कार्टून बनाने वाले मध्य प्रदेश के एक कार्टूनिस्ट को राहत देते हुए जो चेतावनी दी, वह महत्वपूर्ण है। यह कार्टून केवल इसलिए आपत्तिजनक नहीं था कि उसमें प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को चित्रित किया गया था, बल्कि इसलिए भी था, क्योंकि वह धार्मिक भावनाओं को भी आहत करने वाला था।
संभवत: इसी कारण सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कार्टूनिस्ट के खिलाफ सरकार दंडात्मक कार्रवाई करने को स्वतंत्र है। इस कार्टूनिस्ट के खिलाफ धार्मिक भावनाएं भड़काने और दो समुदायों के बीच बैर पैदा करने का मामला दर्ज किया गया था। कार्टूनिस्ट को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से भी राहत नहीं मिली थी।
पिछले दिनों इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था कि नागरिकों को पता होना चाहिए कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का क्या महत्व है और इस अधिकार के नाम पर आनलाइन मीडिया में कुछ भी पोस्ट नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी ही टिप्पणी हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट करने वाले एक व्यक्ति के मामले की सुनवाई करते हुए भी की थी।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीम नहीं हो सकती। इस अधिकार का उपयोग जिम्मेदारी के साथ किया जाना चाहिए, लेकिन सोशल मीडिया कहे जाने वाले आनलाइन प्लेटफार्म पर लोग कुछ भी आपत्तिजनक, भड़काऊ कह देते हैं और फिर अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर उसका बचाव भी करते हैं। कई बार खुद को सेक्युलर एवं लिबरल कहलाने वाले लोग, कथित बुद्धिजीवी एवं नेता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की मनमानी व्याख्या करते हैं।
ऐसे ही लोग प्राय: ढोंग भी करते हैं। यह किसी से छिपा नहीं कि जब तमिलनाडु सरकार में मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म को लेकर बेहद भद्दी और भड़काऊ टिप्पणी की थी तो सेक्युलर नेताओं और बुद्धिजीवियों को कुछ बोलते नहीं बन रहा था। वे उदयनिधि की आलोचना करने को तैयार नहीं थे। ऐसे दोहरे मापदंड वाले लोगों को बेनकाब करने की आवश्यकता है।
निश्चित रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कुछ अप्रिय कहने का अधिकार देती है, लेकिन इसकी भी अपनी एक सीमा है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे को तय करना आसान काम नहीं, लेकिन इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग न होने पाए, इसके लिए सुप्रीम कोर्ट को कुछ करना होगा।
उचित होगा कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संदर्भ में कुछ दिशा-निर्देश तय करे। यह भी आवश्यक है कि एक्स, फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि का संचालन करने वाली कंपनियों को भी जवाबदेह बनाया जाए। कई बार ये कंपनियां भी दोहरे मानदंडों का परिचय देते हुए दिखती हैं।
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