जागरण संपादकीय: बिगड़ैल पड़ोसी, चीन-पाकिस्तान पर जयशंकर की सटीक टिप्पणी
ट्रंप को संदेश देने के लिए यह पहले ही कहा जा चुका है कि ऑपरेशन सिंदूर स्थगित भर किया गया है। पाकिस्तान के साथ विश्व समुदाय और विशेष रूप से अमेरिका को ऐसा संदेश देना समय की मांग है क्योंकि कई देश प्रमुख आतंकवाद की जानबूझकर अनदेखी करते दिख रहे हैं। यह रवैया विश्व शांति और सुरक्षा को खतरे में डालने वाला है।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने यह सटीक टिप्पणी की कि पाकिस्तान और चीन, दो सबसे कठिन पड़ोसी देश हैं। आम भाषा में कहें तो बिगड़ैल देश हैं। यदि पाकिस्तान सुधरने के लिए तैयार नहीं तो इसका एक बड़ा कारण चीन है। वह उसे भारत के खिलाफ उकसाता रहता है। भारत को इस रणनीति पर काम करना होगा कि पाकिस्तान के साथ चीन पर भी कैसे दबाव बनाया जाए, क्योंकि अब वह अफगानिस्तान में तालिबान को प्रभावित करने में जुट गया है।
वह ऐसा इसीलिए कर रहा है ताकि तालिबान आतंक को पाल-पोस रहे पाकिस्तान की हरकतों की अनदेखी करे। वे ऐसा शायद ही करें, लेकिन भारत को अमेरिका के रवैये के प्रति भी सावधान रहना होगा। यह अच्छा हुआ कि विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने यह कहकर अमेरिकी राष्ट्रपति को आईना दिखाया कि भारत-पाकिस्तान के बीच के मुद्दों पर कोई मध्यस्थता स्वीकार नहीं।
इसे और स्पष्ट किया विदेश मंत्री ने यह कहकर कि ट्रंप भारत और पाकिस्तान को आर्थिक समृद्धि पर ध्यान देने की जो बात लगातार दोहरा रहे हैं, वह अस्वीकार्य है। ट्रंप का रवैया विचित्र ही नहीं, आतंक के पोषक पाकिस्तान का दुस्साहस बढ़ाने वाला है। क्या कल को ट्रंप इजरायल को भी आर्थिक समृद्धि पर ध्यान देने की सलाह देकर उसे हमास अथवा हूतियों की अनदेखी करने को कहेंगे? वह विश्व में शांति लाने के नाम पर अपनी और अमेरिका की फजीहत ही करा रहे हैं। शायद उनके इसी रवैये के कारण प्रधानमंत्री ने यह कहा कि पहलगाम का बदला अभी पूरा नहीं हुआ है।
ट्रंप को संदेश देने के लिए यह पहले ही कहा जा चुका है कि ऑपरेशन सिंदूर स्थगित भर किया गया है। पाकिस्तान के साथ विश्व समुदाय और विशेष रूप से अमेरिका को ऐसा संदेश देना समय की मांग है, क्योंकि कई देश प्रमुख आतंकवाद की जानबूझकर अनदेखी करते दिख रहे हैं। यह रवैया विश्व शांति और सुरक्षा को खतरे में डालने वाला है। इसलिए और भी, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएं पंगु हो चुकी हैं।
वैसे तो ट्रंप कुछ भी उलटा-सीधा बोलते हैं और फिर उससे पलट भी जाते हैं, जैसे भारत-पाक के बीच मध्यस्थता की बात से पलट गए, लेकिन क्या वह वही अमेरिकी राष्ट्रपति नहीं, जिन्होंने अपने पहले कार्यकाल में पाकिस्तान पर खुद को धोखा देने का आरोप लगाया था?
यदि भारत उनके इस दावे को नकार रहा है कि सैन्य टकराव रोकने में उनकी भूमिका थी तो इसके लिए वही जिम्मेदार हैं। उनका व्यवहार एक जिम्मेदार देश के शासनाध्यक्ष जैसा नहीं। हैरानी नहीं कि वह ऐसा व्यवहार इसलिए कर रहे हों ताकि भारत से मनचाहा व्यापार समझौता कर सकें। जो भी हो, भारत को अब उनसे भी सतर्क रहना होगा। भारत के साथ जापान और आस्ट्रेलिया को भी, क्योंकि उनके रवैये से क्वाड की राह भी कठिन दिखने लगी है।
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