जागरण संपादकीय: चुनाव आयोग की सख्ती, भ्रामक और गुमराह करने वाले पोस्ट पर एक्शन जरूरी
सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा कोई भी खटखटा सकता है लेकिन क्या महुआ मोइत्रा बिहार की सांसद हैं? क्या उन्हें यह लगता है कि बिहार की तरह बंगाल में भी मतदाता सूची का सत्यापन हो सकता है। जो भी हो ऐसा सत्यापन पूरे देश में होना चाहिए क्योंकि सही मतदाता सूची से ही लोकतंत्र सशक्त बनेगा।
बिहार में मतदाता सूची के सत्यापन की आवश्यक पहल के खिलाफ भ्रामक और गुमराह करने वाले वीडियो एवं पोस्ट पर चुनाव आयोग की सख्ती आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी है। यह ठीक है कि चुनाव आयोग मतदाता सूची के सत्यापन संबंधी फर्जी पोस्ट एवं वीडियो को खोज-खोज कर उन्हें गलत बता रहा है और इसी के साथ सच्चाई भी बयान कर रहा है, लेकिन इसे पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। चुनाव आयोग को ऐसे भ्रामक वीडियो एवं पोस्ट करने वालों के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई भी करनी चाहिए।
यह और कुछ नहीं सीधा-सीधा फेक न्यूज का मामला है। यदि इस तरह की फेक न्यूज फैलाने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई नहीं की गई तो शरारती तत्वों का दुस्साहस और अधिक ही बढ़ेगा। ऐसे तत्व चुनाव आयोग के साथ-साथ भारतीय लोकतंत्र की छवि खराब करने का ही काम करेंगे। अतीत में करते भी रहे हैं। यह किसी से छिपा नहीं कि वे किस तरह ईवीएम के खिलाफ गुमराह करने वाले वीडियो साझा कर चुके हैं।
समस्या यह है कि चुनाव आयोग के पास पर्याप्त अधिकार नहीं। वह खुद को और चुनाव प्रक्रिया को बदनाम एवं देश की जनता को गुमराह करने वाले लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई नहीं कर पाता। यह सहज ही समझा जा सकता है कि बिहार में मतदाता सूची के सत्यापन की प्रक्रिया के खिलाफ कौन लोग भ्रामक पोस्ट एवं वीडियो साझा करने में लगे हुए हैं।
यह तय माना जाना चाहिए कि इनमें से कई विपक्षी दलों के नेता, कार्यकर्ता और समर्थक होंगे। आखिर यह एक तथ्य है कि कांग्रेस, राजद समेत कई विपक्षी दलों ने बिहार में मतदाता सूची के सत्यापन का बेतुका विरोध किया है। समझना कठिन है कि आखिर निष्पक्ष एवं स्वतंत्र चुनाव के लिए यह क्यों नहीं पता लगाया जाना चाहिए कि वास्तविक मतदाता कौन हैं। यह काम तो पूरे देश में होना चाहिए।
पहले होता भी रहा है। इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि बिहार में मतदाता सूची के सत्यापन संबंधी चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गए हैं। इनमें वकील एवं नेता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी भी हैं। कपिल सिब्बल सदैव ऐसा करने में आगे रहते हैं। बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा भी आगे आई हैं।
सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा कोई भी खटखटा सकता है, लेकिन क्या महुआ मोइत्रा बिहार की सांसद हैं? क्या उन्हें यह लगता है कि बिहार की तरह बंगाल में भी मतदाता सूची का सत्यापन हो सकता है। जो भी हो, ऐसा सत्यापन पूरे देश में होना चाहिए, क्योंकि सही मतदाता सूची से ही लोकतंत्र सशक्त बनेगा। उचित यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं के पीछे के असल इरादों को भांपे।
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