छत्तीसगढ़ में नक्सली संगठनों के गढ़ में पहुंचकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने नक्सलियों से आत्मसमर्पण करने की अपील करते हुए यह जो कहा कि उनके समक्ष इसके अलावा और कोई उपाय नहीं है, वह कहना इसलिए आवश्यक था, क्योंकि नक्सली अब भी मुख्यधारा में लौटने के लिए तैयार नहीं दिख रहे हैं।

इन स्थितियों में यही उचित होगा कि उनके आत्मसमर्पण की राह खुली रखने के साथ ही उन पर निरंतर दबाव बनाए रखा जाए। उनके सामने यह बार-बार स्पष्ट करना होगा कि वे बंदूक के बल पर सत्ता एवं व्यवस्था परिवर्तन का जो सपना देख रहे हैं, वह कभी पूरा होने वाला नहीं है।

केंद्रीय गृहमंत्री पिछले कुछ समय से यह दोहरा रहे हैं कि केंद्र सरकार मार्च 2026 तक नक्सलवाद की समस्या को पूरी तरह खत्म कर देगी। इस लक्ष्य को पाने के लिए जहां यह आवश्यक है कि नक्सल प्रभावित राज्यों की सरकारें केंद्र सरकार का पूरा सहयोग करें, वहीं नक्सलियों के प्रभाव वाले इलाकों में विकास एवं जनकल्याण की योजनाएं तेजी से आगे बढ़ाई जाएं।

ऐसा इसलिए किया जाना चाहिए, ताकि नक्सली संगठन और उनके वैचारिक समर्थक कहे जाने वाले तत्व यानी अर्बन नक्सल यह दुष्प्रचार न करने पाएं कि दूरदराज के इलाकों में शासन विकास पर ध्यान नहीं देता। वैसे इस दुष्प्रचार की कलई खुल चुकी है और यह साबित हो चुका है कि नक्सली ही ग्रामीण इलाकों में विकास कार्यों में बाधक बने हुए हैं।

यह किसी से छिपा नहीं कि नक्सली किस तरह अपने इलाकों में सड़कें नहीं बनने देते और स्कूलों एवं अस्पतालों के निर्माण में अड़ंगा लगाते हैं। उनकी इन्हीं हरकतों के चलते इसका पर्दाफाश हो चुका है कि वे निर्धन तबकों के हितों की लड़ाई लड़ रहे हैं। वास्तव में वे इन वर्गों के हितों की रक्षा में सबसे अधिक बाधक बनकर उभरे हैं और इसीलिए उनका प्रभाव कम होता चला जा रहा है।

यह उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ वर्षों में नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या में कमी दर्ज की गई है। 2019 में नक्सली हिंसा से प्रभावित जिलों की संख्या 90 थी। अब यह संख्या 40 से भी कम रह गई है। इस संख्या में और अधिक कमी तब आएगी, जब नक्सलियों को यह महसूस होगा कि उनके छिपने के लिए कोई जगह नहीं रह गई है।

शायद तभी वे अपने निरर्थक संघर्ष को विराम देने के लिए तैयार होंगे। जब तक वे ऐसा नहीं करते, तब तक उनके खिलाफ कठोरता का परिचय देने में संकोच नहीं किया जाना चाहिए। इसलिए और भी नहीं, क्योंकि वे जब-तब सुरक्षा बलों को निशाना बनाते रहते हैं।

यह सही है कि नक्सलियों की ताकत कम हुई है, लेकिन उनके खिलाफ अभियान इसलिए जारी रहना चाहिए, ताकि वे नए सिरे से खुद को संगठित न कर सकें। नक्सलियों के खिलाफ जारी अभियान के तहत यह अवश्य देखा जाना चाहिए कि उन तक आधुनिक हथियार कैसे पहुंच रहे हैं।