पेड़ और पहाड़ का नाता
पहाड़ को जीवंत बनाने के लिए जरूरी मुख्य तत्वों में पेड़ और पानी, दोनों आवश्यक हैं। वृक्ष से पानी, पानी से अन्न तथा अन्न से जीवन मिलता है। जीवन को परिभाषित करने के लिए जीव और वन, दोनों जरूरी हैं। जहां वन होता है वहीं जीव होते हैं। इनके बिना पहाड़ अधूरा और कमजोर है। पेड़ पहाड़ की आंतरिक व वाह्य संरचना में अहम भूमिका निभाता है। वह न केवल पारिस्थितिकी तंत्र को सृजित करता है, वरन उसके संतुलन के लिए भी उत्तारदायी होता है। भूस्खलन रोककर मृदा को उर्वरकता प्रदान करने वाला पेड़ ही इस सृष्टि का ऐसा घटक है जो पहाड़ को समग्रता व पूर्णता प्रदान करता है।
पेड़ के बिना पहाड़ अपनी भौतिकता से दूर रहकर अपना धर्म नहीं निभा पाता है और प्राकृतिक असंतुलन का दंश आपदाओं के रूप में देखने को मिलता है। प्रकृति का कोप सबसे अधिक पहाड़ ही झेलता है, चाहे वह भूकंप हो, बाढ़, सुनामी, चक्त्रवात या फिर भूस्खलन। ये आपदाएं पहाड़ के विनाश के कारण ही होती हैं और पहाड़ के विनाश की हर गतिविधि में सबसे पहले पेड़ अपनी बलि देता है। सघन वन क्षेत्रों वाली पहाड़ियों की जलवायु कितनी अनुकूल होती है, यह बताने की आवश्यकता नहीं है। विश्व के भूगोल में वसुंधरा ने अपनी व्यवस्था को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए वृक्षों को सर्वाधिक महत्व दिया है, लेकिन हमारे विनाशकारी विकास ने पेड़ को तुच्छ समझकर पर्यावरण संकट पैदा कर दिया है। अनियंत्रित विकास ने धरती को वृक्षविहीन करने की ठान ली है।
ग्लोबल वार्मिंग व जलवायु परिवर्तन की विश्वव्यापी समस्या का जन्म भी पेड़ रहित पहाड़ों से ही हुआ है। जो भी प्राकृतिक आपदाएं आ रही हैं उन सभी के मूल में नंगे और गंजे होते पहाड़ ही मुख्य कारण हैं। पहाड़ों की जैव-विविधता नष्ट हो रही है, तापमान में निरंतर बढ़ोतरी के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं, संजीवनी का कार्य करने वाली वनस्पतियां विलुप्त हो रही हैं तथा पहाड़ों का मूल स्वरूप बिगड़ रहा है। इसके कारण प्राकृतिक असंतुलन की स्थिति बन रही है। हमारा मानना है कि पहाड़ों के अस्तित्व को अगर कोई बचा सकता है तो वह पेड़ है। पेड़ ही पहाड़ को जीवन प्रदान कर सकता है।
पहाड़ बचाने के लिए वानिकी संपदा बढ़ाना जरूरी है। यह स्पष्ट है कि यदि हम पेड़ों से विमुख रहते हैं, पेड़ों की कद्र नहीं करते, उनकी रक्षा नहीं करते, पौधरोपण नहीं करते और पेड़ बनने तक उनकी परवरिश नहीं करते तो हम अपने पहाड़ों को नहीं बचा सकते। पहाड़ को संरक्षित करने के लिए सबसे पहले वानिकी संपदा का संरक्षण व संवर्द्धन करना होगा। इस संबंध में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत सी संधियां हुई हैं तथा कानूनों के माध्यम से पर्यावरण विनाश को रोकने की कोशिशें की जा रही हैं, लेकिन ये कोशिशें विफल रही हैं। इन कोशिशों को सफल बनाने के लिए सबसे जरूरी है जनसहभागिता। अफसोस की बात है कि इसी पक्ष की अवहेलना हो रही है। पेड़ों को बचाने के लिए व्यवहारिक योजनाएं बनानी जरूरी हैं, जिनमें आमजन की भागीदारी सुनिश्चित हो। पहाड़ बचाने की रचनात्मक पहल तभी सार्थक होगी जब हम पेड़ व पहाड़ के साथ भावनात्मक रिश्ता कायम कर सकें। आइए, मिलकर पेड़ लगाएं-पहाड़ बचाएं। पर्यावरण हित में, अपने जीवन हित में इस कार्य को जनक्त्रांति का रूप प्रदान करें।
इस संबंध में गंगा एक्शन परिवार, ऋषिकेश ने पहल करते हुए पर्वतीय इलाकों में स्मृति वनों की स्थापना की है। इस संगठन ने गढ़वाल के पहाड़ों को हरीतिमा से युक्त करने तथा वृहद पौधरोपण करने के लिए प्रेरक संस्था का गुरुतर दायित्व लिया है। हिमालय वाहिनी इस कार्य में प्रमुख सहयोगी संस्था के रूप में अपनी सेवाएं दे रही है। देश की विभिन्न संस्थाओं एवं पर्यावरण प्रेमियों से इस संबंध में सहयोग मिल रहा है। बीते जून माह के तीसरे सप्ताह में उत्ताराखंड के पहाड़ी इलाकों में जो व्यक्ति काल-कवलित हुए हैं, उनकी स्मृति में केदारनाथ, गौरीकुंड, गौरीबाग, रामबाग आदि क्षेत्रों में स्मृति वन विकसित करने की योजना बनाई गई है। वायुसेना के बहादुर अफसरों व सैनिकों की शहादत वाले गौरीकुंड गांव में वीर शहीदों की याद में एक स्मृति उद्यान स्थापित करने की योजना है। धर्मनगरी हरिद्वार में विश्वविख्यात हर की पैड़ी पर दिवंगतों के अस्थि विसर्जन के कार्यक्त्रम के उपरांत गंगा एक्शन परिवार और हिमालय वाहिनी द्वारा पौधरोपण की योजना को मूर्त रूप दिया जाएगा।
समस्त संत समाज, पुरोहित समाज, धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्थाओं तथा समाज के सभी वगरें से मेरा आह्वान है कि आइए पेड़ों के माध्यम से उन लोगों को श्रद्धांजलि दें, जो एक माह पहले आई भयानक बाढ़ में अपनी जान गंवा बैठे। पौधारोपण करके राष्ट्र के अमर जवानों के प्रति सम्मान प्रकट करें, देश के भाल-प्रांत देवभूमि उत्ताराखंड को हरा-भरा बनाएं और अपने गौरवशाली राष्ट्र के प्रमुख प्रहरी देवात्मा हिमालय को सृदृढ़ता प्रदान करें, ताकि वह सदैव अपना सिर ऊंचा रखकर खड़ा रह सके। हम सभी देशवासी तभी सिर ऊंचा करके कह सकेंगे-झंडा ऊंचा रहे हमारा। उज्जवल भविष्य लेकर आई 21वीं सदी के दूसरे दशक में पेड़ लगाओ-पहाड़ बचाओ हम सबका प्रमुख उदघोष बने। इसी में पर्यावरण, पहाड़ और मानव जाति का हित है।
[लेखक स्वामी चिदानंद सरस्वती, गंगा एक्शन परिवार के संस्थापक एवं परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के अध्यक्ष हैं]
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