[योगी आदित्यनाथ]। सकल आस्था के प्रतिमान रघुनंदन प्रभु श्रीराम की जन्मस्थली धर्मनगरी श्रीअयोध्या जी की पावन भूमि पर श्रीरामलला के भव्य और दिव्य मंदिर की स्थापना की प्रक्रिया गतिमान है। लगभग पांच शताब्दियों की भक्तपिपासु प्रतीक्षा, संघर्ष और तप के उपरांत कोटि-कोटि सनातनी बंधु-बांधवों के स्वप्न को साकार करते हुए पांच अगस्त को अभिजीत मुहूर्त में मध्याह्न बाद 12.30 से 12.40 के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा श्री रामलला के चिर अभिलाषित भव्य-दिव्य मंदिर की आधारशिला रखी जाएगी। यह अवसर उल्लास, आह्लाद, गौरव एवं आत्मसंतोष और करुणा का है। हम भाग्यशाली हैं कि प्रभु श्रीराम ने हमें इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी होने का सकल आशीष प्रदान किया।

भाव-विभोर कर देने वाली इस बेला की प्रतीक्षा में पांच शताब्दियां व्यतीत हो गईं। दर्जनों पीढ़ियां अपने आराध्य का मंदिर बनाने की अधूरी कामना लिए भावपूर्ण सजल नेत्रों के साथ ही इस धराधाम से परमधाम में लीन हो गईं, किंतु प्रतीक्षा और संघर्ष का क्रम सतत जारी रहा। अब वह शुभ घड़ी आ ही गई जब कोटि-कोटि सनातनी आस्थावानों के त्याग और तप की पूर्णाहुति होने जा रही है। मर्यादा के साक्षात प्रतिमान, पुरुषोतम, त्यागमयी आदर्शसिक्त चरित्र के नरेश्वर, अवधपुरी के प्राणप्रिय राजा श्रीराम अपने वनवास की पूर्णाहुति कर हमारे हृदयों के भावपूरित संकल्प स्वरूप सिंहासन पर विराजने जा रहे हैं।

गोरक्षपीठाधीश्वर महंत को किया याद

आस्था से उत्पन्न भक्ति की शक्ति का प्रताप अखंड होता है। श्रीरामजन्मभूमि मंदिर निर्माण में अवरोध विगत पांच शताब्दियों से सनातन हिंदू समाज की आस्थावान सहिष्णुता की कठोर परीक्षातुल्य था। श्री रामलला विराजमान की भव्य प्राण-प्रतिष्ठा भारत की सांस्कृतिक अंतरात्मा की समरस अभिव्यक्ति का प्रतिमान सिद्ध होगा। श्रीरामजन्मभूमि मंदिर के निर्माण हेतु भूमिपूजन के अवसर पर सहज ही दादागुरु ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत श्री दिग्विजयनाथ जी महाराज और पूज्य गुरुदेव ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत श्री अवेद्यनाथ जी महाराज का पुण्य स्मरण हो रहा है। मैं अत्यंत भावुक हूं कि हुतात्माद्वय भौतिक शरीर से इस अलौकिक सुख देने वाले अवसर के साक्षी नहीं बन पा रहे, किंतु आत्मिक दृष्टि से आज उन्हें असीम संतोष और हर्षातिरेक की अनुभूति हो रही होगी।

1989 में पहली शिला रखने का अवसर कामेश्वर चौपाल जी को मिला

ब्रितानी परतंत्रता काल में श्रीराममंदिर के विषय को स्वर देने का कार्य महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज ने किया। 1934 से 1949 के दौरान उन्होंने राम मंदिर निर्माण हेतु सतत संघर्ष किया। 22-23 दिसंबर, 1949 को जब कथित विवादित ढांचे में श्रीरामलला का प्रकटीकरण हुआ उस समय वहां तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज कुछ साधु-संतों के साथ संकीर्तन कर रहे थे। 28 सितंबर, 1969 को उनके ब्रह्मलीन होने के उपरांत अपने गुरुदेव के संकल्प को महंत श्री अवेद्यनाथ जी ने अपना बना लिया, जिसके बाद श्री राम मंदिर निर्माण आंदोलन के निर्णायक संघर्ष की नवयात्रा का सूत्रपात हुआ। संतों की तपस्या के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय वैचारिक चेतना में विकृत, पक्षपाती एवं छद्म धर्मनिरपेक्षता तथा सांप्रदायिक तुष्टीकरण की विभाजक राजनीति का काला चेहरा बेनकाब हो गया। 1989 में जब मंदिर निर्माण हेतु प्रतीकात्मक भूमिपूजन हुआ तो पहला फावड़ा स्वयं अवेद्यनाथ जी महाराज एवं परमहंस रामचंद्रदास जी महाराज ने चलाया। इन पूज्य संतों की पहल और श्रद्धेय अशोक सिंघल के कारण पहली शिला रखने का अवसर कामेश्वर चौपाल जी को मिला।

आधुनिक संस्कृति का नया प्रतिमान बनकर उभरेगी अयोध्या

जन्मभूमि की मुक्ति के लिए बड़ा और कड़ा संघर्ष हुआ। न्याय और सत्य की संयुक्त विजय का यह उल्लास अतीत की कटु स्मृतियों को विस्मृत कर नए कथानक रचने और समाज में समरसता की सुधा सरिता के प्रवाह की नवप्रेरणा दे रहा है। सनातन संस्कृति के प्राण प्रभु श्रीराम की जन्मस्थली हमारे शास्त्रों में मोक्षदायिनी कही गई है। प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में उत्तर प्रदेश सरकार इस पावन नगरी को पुन: इसी गौरव से आभूषित करने हेतु संकल्पबद्ध है। श्रीअयोध्या जी वैश्विक मानचित्र पर महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में अंकित हों और इस धर्मधरा में रामराज्य की संकल्पना मूर्त भाव से अवतरित हो, इस हेतु हम नियोजित नीति के साथ निरंतर कार्य कर रहे हैं। वर्षों तक राजनीतिक उपेक्षा के भंवरजाल में उलझी रही अवधपुरी आध्यात्मिक और आधुनिक संस्कृति का नया प्रतिमान बनकर उभरेगी। यहां रोजगार के नए अवसर सृजित हो रहे हैं। विगत तीन वर्षों में विश्व ने अयोध्या की भव्य दीपावली देखी है। अब यहां धर्म और विकास के समन्वय से हर्ष की सरिता और समृद्धि की बयार बहेगी।

प्रत्येक भारतीय के लिए होगा गौरव का क्षण

पांच अगस्त को श्रीअयोध्या जी में आयोजित भूमिपूजन और शिलान्यास में सहभागिता हेतु प्रभु श्रीराम के असंख्य अनन्य भक्तगण परम इच्छुक होंगे, किंतु महामारी कोविड-19 के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा। इसे प्रभु इच्छा मानकर सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। प्रधानमंत्री सवा सौ करोड़ देशवासियों की आकांक्षाओं के प्रतिबिंब हैं। वह वहां रहेंगे। यह प्रत्येक भारतीय के लिए गौरव का क्षण होगा।

राममंदिर ही नहीं एक नए युग का भी है भूमिपूजन

प्रधानमंत्री के कारण ही देश और दुनिया लगभग पांच शताब्दी बाद इस शुभ मुहूर्त की अनुभूति कर पा रही है। 5 अगस्त, 2020 को भूमिपूजन और शिलान्यास न केवल मंदिर का है वरन एक नए युग का भी है। यह नया युग प्रभु श्रीराम के आदर्शों के अनुरूप नए भारत के निर्माण का है। यह युग मानव कल्याण का है। यह युग लोककल्याण हेतु तपोमयी सेवा का है। यह युग रामराज्य का है। भाव-विभोर करने वाले इस ऐतिहासिक अवसर पर प्रत्येक देशवासी का मन प्रफुल्लित होगा, किंतु स्मरण रहे प्रभु श्री राम का जीवन हमें संयम की शिक्षा देता है। उत्साह के बीच हमें संयम रखते हुए वर्तमान परिस्थितियों के दृष्टिगत शारीरिक दूरी बनाए रखना है, क्योंकि यह भी हमारे लिए परीक्षा का क्षण है।

मेरी अपील है कि विश्व के किसी भी भाग में मौजूद समस्त श्रद्धालु जन चार एवं पांच अगस्त को अपने-अपने निवास स्थान पर दीपक जलाएं और धर्माचार्यगण देवमंदिरों में अखंड रामायण का पाठकर दीप जलाएं। ऐसे ऐतिहासिक क्षण का प्रत्यक्ष अवलोकन किए बिना गोलोक पधार चुके अपने पूर्वजों का स्मरण कर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें और पूर्ण श्रद्धाभाव से प्रभु श्रीराम का स्तवन करें।

(लेखक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं)