जागरण संपादकीय: महाकुंभ का संदेश, भीड़ नियंत्रण के ठोस उपायों पर हो मंथन
Prayagraj Mahakumbh 45 दिनों तक चले प्रयागराज महाकुंभ का समापन हुआ। इस अवधि में 65 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने संगम में डुबकी लगाई। 144 साल बाद आए इस विशेष महाकुंभ का साक्षी बनने के लिए देश दुनिया से लोग प्रयागराज आए। महाकुंभ ने जहां आस्था का नया शिखर स्पर्श किया वहीं यह भी बताया कि भविष्य में ऐसे आयोजनों में लोग और बढ़चढ़कर हिस्सा लेंगे।
संजय गुप्त। 13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा के दिन से शुरू हुआ महाकुंभ शिवरात्रि को संपन्न हो गया। इस बार महाकुंभ में संगम पर जिस तरह अपार जन समूह ने स्नानकर अपने को धन्य किया, उसकी अपेक्षा किसी को नहीं थी। उत्तर प्रदेश सरकार का आकलन है कि 65 करोड़ से अधिक लोग महाकुंभ में सम्मिलित हुए।
इतने बड़े जनसमूह का 45 दिनों की अवधि में एक स्थान पर आकर एकत्रित होने से जहां एक कीर्तिमान स्थापित हुआ, वहीं इस बात को भी बल मिला कि भारत के लोगों को उस दैवीय शक्ति पर अगाध श्रद्धा है, जो मनुष्य को प्रेरित करती है कि वह ऐसे अवसरों पर आगे आकर जीवन के रहस्यों से परिचित हो और अपनी आध्यात्मिक भूख शांत करे। यह स्वाभाविक ही है कि लोग कुंभ को दैवीय कृपा का आशीर्वाद मानते हैं।
भारतीय संस्कृति में कुंभ का विशेष महत्व है। इसका उल्लेख हमारे शास्त्रों में भी मिलता है। कुंभ मेले का आयोजन हिंदू धर्म की सबसे प्राचीन परंपराओं में से एक है। कुंभ के आयोजन के पीछे पौराणिक और धार्मिक कारण ही नहीं, खगोलीय कारण भी हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया।
इस मंथन के समय अमृत का एक कुंभ यानी कलश निकला। यह असुरों के हाथ लग गया, जिसे बचाने देवता आगे आए। इसी क्रम में अमृत की कुछ बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नाशिक में गिरीं। इन चारों स्थानों को पवित्र मानकर यहां नदियों के तट पर कुंभ मेले का आयोजन होने लगा। कुंभ का भव्य आयोजन नाशिक, उज्जैन और हरिद्वार में भी होता है, लेकिन तीर्थराज प्रयागराज के कुंभ की महत्ता कहीं अधिक है।
इसका एक कारण यह है कि प्रयागराज में गंगा, यमुना के साथ अदृश्य सरस्वती का मिलन होता है। भले ही सरस्वती अदृश्य हो, लेकिन उसके अस्तित्व के प्रति भारतीयों की आज भी दृढ़ आस्था है। यही आस्था करोड़ों लोगों को कुंभ की ओर आकर्षित करती है और बिना किसी बुलावे के।
कुंभ साधु-संतों और भक्तों के मिलन का एक बड़ा केंद्र बनता है। कुंभ आध्यात्मिक ज्ञान का केंद्र ही नहीं बनता, बल्कि वह सांस्कृतिक आदान-प्रदान का माध्यम भी बनता है। इसके अतिरिक्त वह सामाजिक समरसता का भी परिचायक होता है।
आजादी के पहले भी संत–महात्माओं के साथ कुंभ पर जन समूह एकत्रित होता था, लेकिन जैसे-जैसे आवागमन की सुविधाएं बढ़ीं, लोगों ने कुंभ में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना शुरू किया। यहां आने वालों के बीच कहीं कोई भेद नहीं रहता।
इस बार का कुंभ खगोलीय विशिष्टताओं के कारण महाकुंभ कहलाया और इसीलिए इसमें देश के हर कोने और यहां तक कि दुनिया के अनेक हिस्सों से लोग आए। उत्तर प्रदेश सरकार का आकलन था कि महाकुंभ में लगभग 40 करोड़ लोग आएंगे, लेकिन इस अनुमान से कहीं अधिक 65 करोड़ से ज्यादा लोग प्रयागराज आए।
बहुत से लोगों ने इस कौतूहल के कारण भी हिस्सा लिया कि आखिर इतना बड़ा जनसमूह महाकुंभ क्यों पहुंच रहा है? जहां प्रधानमंत्री मोदी और अन्य अनेक लोग महाकुंभ को भारतीय एकता का कुंभ कह रहे हैं, वहीं कुछ लोग इसकी विवेचना इस तरह कर रहे हैं कि यह प्रकृति का दर्शन है और कुंभ जाकर हम पृथ्वी पर जीवनदायी सबसे अहम स्रोत-जल का नमन करते हैं।
हिमालय की बर्फ हो या मानसून की वर्षा, प्रकृति ने भारतीय उपमहाद्वीप को जल से विभूषित किया है। कुंभ जल स्रोतों की महत्ता का भी परिचायक है। हम भारतीयों को यह याद रखना होगा कि जल स्रोतों का शुद्ध रहना बहुत जरूरी है। आज हमारी नदियां प्रदूषित हो चुकी हैं।
महाकुंभ में तीर्थयात्रियों को प्रदूषित जल में स्नान न करना पड़े, इसके लिए प्रशासन ने कड़े जतन किए। इस पर कुछ राजनीति भी हुई कि स्नान के आखिरी दिनों में जल प्रदूषित हो रहा था। कई लोगों ने इसे मुद्दा भी बनाया, पर उनकी आवाज को आस्था के सैलाब ने अनसुनी कर दी।
अब जब महाकुंभ समाप्त हो गया है औऱ करोड़ों लोगों ने जिस जल को नमन कर प्रकृति का आशीर्वाद लिया, उसे गंगा-यमुना के साथ अन्य नदियों को शुद्ध रखने की जिम्मेदारी उठानी होगी। हम भारतीयों ने नदियों के साथ अन्य जल स्रोतों को जिस तरह अशुद्ध किया है, वह किसी से छिपा नहीं।
वैसे तो जल स्रोतों को शुद्ध रखने की जिम्मेदारी सरकार की है और उसे ऐसे आधारभूत ढांचे का निर्माण करना चाहिए कि जलस्रोत प्रदूषित होने से बचें, पर सरकारों के साथ आम लोगों को भी जलस्रोतों को साफ रखने में बरती जा रही कोताही को दूर करने के लिए आगे आकर बीड़ा उठाना चाहिए। जनसहयोग के बिना जल स्रोतों को शुद्ध रखना कठिन होगा। यह एक ऐसा काम है, जिसमें सरकारों को जनता का सहयोग चाहिए ही।
प्रयागराज में इतने विशाल जनसमूह के एक जगह एकत्रित होने और वहां करोड़ों लोगों के पहुंचने के क्रम में कुछ दुर्घटनाएं भी हुईं। इनसे बचा जा सकता था। इन दुर्घटनाओं को रोकने के लिए जितना तत्पर सरकार को रहना था, उतना ही आम लोगों को भी।
लोगों को अनुशासित रहकर शासन द्वारा जो व्यवस्था की जा रही हो, उसका पालन करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। औसत भारतीयों में यह एक कमी है कि अनुशासन के मामले में वे कोताही बरतते हैं। इससे दुर्घटना की आशंका बढ़ती है। महाकुंभ में संगम तट पर और दिल्ली में रेलवे स्टेशन पर जो दुर्घटनाएं हुईं, उनमें व्यवस्था की कमी के साथ यह भी सामने आया कि लोगों ने अनुशासन का परिचय नहीं दिया।
इतने बड़े जन समूह को नियंत्रित करने के लिए जो मानक अपनाने चाहिए, उनकी समीक्षा की जानी चाहिए और आगे आने वाले इस तरह के विशाल आयोजनों में भीड़ नियंत्रण के ठोस उपाय किए जाने चाहिए।
इसलिए और भी अधिक, क्योंकि महाकुंभ ने जहां आस्था का एक नया शिखर स्पर्श किया, वहीं यह भी बताया कि भविष्य में ऐसे आयोजनों में लोग और बढ़चढ़कर हिस्सा लेंगे। धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजनों में भागीदारी करने की जो चाहत भारतीय जनमानस दिखा रहा है, वह और बढ़ेगी।
महाकुंभ के आयोजन को सफल करने में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में जहां उत्तर प्रदेश शासन पूरी प्रतिबद्धता से लगा रहा, वहीं प्रयागवासियों का भी धन्यवाद देना चाहिए, क्योंकि उनके आतिथ्य से ही यह महापर्व संपन्न हो पाया।
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