भारतीय कूटनीति की परीक्षा का समय, इजरायल-हमास मुद्दे पर विभाजित होती दुनिया के बीच संभलना जरूरी
इजरायली वायु सेना हमास के हमले के तुरंत बाद सक्रिय हो गई। उसने गाजा पर बमबारी शुरू कर दी। अब इजरायली सुरक्षा बल गाजा में प्रवेश भी कर चुके हैं। इजरायली बमबारी में अब तक तमाम लोग मारे गए हैं। इसमें एक बड़ी संख्या बच्चों की है। इजरायल ने हमास के सफाए का संकल्प लिया है। उसने संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव को भी खारिज कर दिया है।
विवेक काटजू। हमास-इजरायल टकराव के बीच मुश्किलें झेल रहे गाजा के लोगों तक राहत एवं मदद पहुंचाने से जुड़े एक प्रस्ताव पर बीते दिनों संयुक्त राष्ट्र महासभा में मतदान हुआ। जार्डन की पहल पर आए इस प्रस्ताव के पक्ष में 120 देशों ने मतदान किया। अमेरिका सहित 15 देशों ने इसका विरोध किया। जबकि 44 देश इस पर मतदान से अनुपस्थित रहे, जिनमें भारत भी शामिल है। प्रस्ताव के पक्ष में पड़े वोट यही दर्शाते हैं कि गाजा के पक्ष में समर्थन केवल अरब जगत और मुस्लिम देशों तक ही नहीं सिमटा हुआ है।
अधिकांश देश अब चाहते हैं कि गाजा के आम नागरिकों को हमास के उस आतंकी हमले का खामियाजा न भुगतना पड़े, जो उसने इजरायल पर सात अक्टूबर को किया था। हमास के उस हमले में 1400 लोग मारे गए। उनमें 1,100 से अधिक महिला, बच्चे और बुजुर्ग थे। इतना ही नहीं, हमास के आतंकी अपने साथ 229 लोगों को बंधक बनाकर भी ले गए। हमले पर प्रतिक्रिया में इजरायल के प्रधानमंत्री ने उचित ही कहा कि यह हिटलर के समय हुए यहूदी नरसंहार के बाद यहूदियों पर हुआ सबसे बड़ा हमला है। उस नरसंहार में करीब 60 लाख यहूदी मारे गए थे।
इजरायली वायु सेना हमास के हमले के तुरंत बाद सक्रिय हो गई। उसने गाजा पर बमबारी शुरू कर दी। अब इजरायली सुरक्षा बल गाजा में प्रवेश भी कर चुके हैं। इजरायली बमबारी में अब तक तमाम लोग मारे गए हैं। इसमें एक बड़ी संख्या बच्चों की है। इजरायल ने हमास के सफाए का संकल्प लिया है। उसने संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव को भी खारिज कर दिया है। असल में यह सरकार का ही नहीं, बल्कि अधिकांश इजरायलियों का एकनिष्ठ लक्ष्य है। इसके चलते प्रधानमंत्री नेतन्याहू के नेतृत्व में आपातकालीन साझा सरकार भी गठित हो गई है।
नेतन्याहू ने जनता को चेताया है कि हमास के साथ युद्ध अब कठिन दौर में पहुंच गया है, जो लंबा भी खिंच सकता है। इस अभियान के चलते इस्लामिक जगत में उकसावे वाली संभावित प्रतिक्रियाओं के बावजूद इजरायल हमास को समाप्त करने के प्रति संकल्पबद्ध है। इस मुहिम में उसे अमेरिका का पूरा समर्थन प्राप्त है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने इजरायल पहुंचकर एकजुटता भी दिखाई। हालांकि वह यह भी कह रहे हैं कि नेतन्याहू सरकार वे सभी कदम उठाए जिससे गाजा के आम नागरिकों की मुश्किलें न बढ़ें।
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियां चेतावनी दे रही हैं कि गाजा के लोग एक भीषण मानवीय आपदा से जूझ रहे हैं। बिजली नहीं है। दवाएं भी सीमित मात्रा में बची हैं। उत्तरी गाजा में करीब 11 लाख लोग रह रहे हैं और लगातार पलायन जारी है। ईरान जैसे देश और इजरायल के प्रति नफरत रखने वालों के अलावा हर किसी ने हमास के आतंकी हमले की निंदा की। हमास और उसके जैसे सोच वालों की फलस्तीन को लेकर इजरायली नीतियों के प्रति जो शिकायतें हैं, उनमें कुछ जायज भी हो सकती हैं, लेकिन हमास की आतंकी करतूत किसी लिहाज से माफी लायक नहीं।
हालांकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान अब हमास के हमले से अधिक इजरायली प्रतिक्रिया पर केंद्रित हो गया है। वैश्विक मुद्दों पर सामान्य रूप से एकसमान दृष्टिकोण रखने वाले देशों के समूहों में ही इस पर विभाजन की स्थिति है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य और यूरोपीय संघ के अहम हिस्से फ्रांस ने अमेरिकी रुख का विरोध करते हुए प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया। स्पेन और पुर्तगाल जैसे यूरोपीय संघ के सदस्यों ने भी प्रस्ताव का समर्थन किया।
यह विभाजन केवल यूरोपीय संघ ही नहीं, बल्कि उत्तर एवं दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीकी संघ, आसियान और यहां तक कि भारत के पड़ोस तक दिख रहा है। प्रस्ताव पर मतदान से भारत अनुपस्थित रहा, तो नेपाल और श्रीलंका सहित दक्षिण एशियाई देशों ने उसके पक्ष में मतदान किया। इजरायल की इस लड़ाई ने दुनिया को अप्रत्याशित रूप से बांट दिया है। यह स्पष्ट है कि अमेरिका इजरायल का पूर्ण समर्थन करता रहेगा। इस दौरान अमेरिका अरब और इस्लामिक जगत के समक्ष यह भी दर्शाएगा कि वह इस प्रयास में है कि गाजा के लोगों को मुसीबतें न झेलनी पड़ें।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में मतदान के बाद भारत ने आतंकी हमले की निंदा करते हुए कहा कि अब यह मामला संवाद और कूटनीति से तय होना चाहिए। भारत ने गाजा के निवासियों की हरसंभव मानवीय मदद का भी समर्थन किया। भारत ने फलस्तीन राष्ट्र को लेकर भी अपना पुराना रवैया दोहराया। इजरायल के साथ जुड़े व्यापक हितों के बावजूद भारत ने यह रुख दर्शाया है। आतंकवाद जैसे मुद्दे पर स्वाभाविक साझेदार होने के अलावा इजरायल के साथ भारत के आर्थिक एवं व्यापारिक रिश्ते भी बढ़े हैं। कृषि से लेकर रक्षा जैसे विविधीकृत क्षेत्रों में भारत को इजरायली तकनीक से बहुत लाभ मिला है। इसके साथ ही अरब जगत विशेषकर सऊदी अरब और खाड़ी देशों में भारत के महत्वपूर्ण हित जुड़े हैं। लाखों की संख्या में भारतीय इन देशों में काम करते हैं और भारतीय ऊर्जा क्षेत्र की आपूर्ति के दृष्टिकोण से ये देश बहुत अहम हैं।
भारत ने इजरायल को मान्यता तो 1950 में ही प्रदान कर दी थी, लेकिन कूटनीतिक रिश्ते 1992 में शुरू किए। तब किसी भी अरब देश ने भारत का विरोध नहीं किया। भारत इस क्षेत्र में आंतरिक संघर्ष से बचते हुए द्विपक्षीय साझेदारियों के दम पर अपने हितों को संतुलित रखता आया है। यह इन देशों के लिए भी लाभदायक नीति रही, जिन्हें भारत का उभार अपने हितों के अनुकूल लगा, जिसने इस समूचे क्षेत्र को स्थायित्व प्रदान किया।
भारत को किसी भी खेमेबाजी में शामिल होने से बचने वाली अपनी जांची-परखी नीति अपनाए रखनी होगी। खासतौर से तब जब वह आइ2यू2 यानी अमेरिका, इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात और भारत की भागीदारी वाले समूह का सदस्य है। इस समूह का घोषित लक्ष्य आर्थिक समृद्धि है, जिसके केंद्र में तकनीकी सहयोग को बढ़ाना है। इस समय आवश्यक है कि भारत इन पहलुओं पर जोर दे। यह अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कुछ अरब नेताओं के सीधे संपर्क में हैं। मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फतेह अल-सीसी भी इनमें शामिल हैं। असल में इस समय भारतीय कूटनीति को अपना कौशल दिखाना होगा, क्योंकि दुनिया इजरायल-हमास मुद्दे पर अप्रत्याशित रूप से विभाजित हो रही है।
(लेखक विदेश मंत्रालय में सचिव रहे हैं)
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