अमिताभ कांत। आज समस्त विश्व के समक्ष जो सबसे ज्वलंत चुनौतियां हैं, उनमें से एक वैश्विक तापवृद्धि यानी ग्लोबल वार्मिंग है। इस पर अंकुश लगाना आवश्यक ही नहीं अपरिहार्य है। इसी लक्ष्य की पूर्ति के लिए वैश्विक बिरादरी ने तय किया है कि अगली सदी की दस्तक तक पृथ्वी के तापमान को डेढ़ डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं बढ़ने देना है। इस प्रतिबद्धता को पूरा करने की दिशा में बीते दिनों ग्लासगो में संपन्न काप-26 सम्मेलन एक अहम पड़ाव रहा। इसमें जो स्वीकार्य सहमति बनी, उनमें भारत की अहम भूमिका रही। भारत द्वारा सुझाए गए समाधानों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई सराहना इसका प्रमाण है। इस मौके पर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आइएमएफ के निदेशक गैरी राइस भी भारत के प्रशंसकों में शुमार हो गए। राइस ने कहा कि नवीकरणीय ऊर्जा में भारत द्वारा किए जा रहे निवेश एकदम सही दिशा में हैं। विश्वविख्यात अर्थशास्त्री लार्ड निकोलस स्टर्न ने कहा कि भारत के अद्यतन जलवायु लक्ष्य वास्तविक नेतृत्व को दर्शाते हैं, जो महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के ट्रैक रिकार्ड पर आधारित हैं। ये लक्ष्य आर्थिक विकास और जलवायु परिवर्तन, दोनों के लिए प्रभावी हो सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि समृद्ध देशों को अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्तीय प्रबंधन में पर्याप्त संवर्धन के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान पर प्रतिक्रिया देनी चाहिए।

ग्लासगो के इसी मंच पर प्रधानमंत्री मोदी ने पंचामृत का महामंत्र दिया। इसमें देश की गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा क्षमता को वर्ष 2030 तक बढ़ाकर 500 गीगावाट तक करने का लक्ष्य है। वर्ष 2030 तक देश की 50 प्रतिशत बिजली आवश्यकताओं को नवीकरणीय ऊर्जा क्षमताओं से पूरा किया जाएगा। अब से 2030 के बीच कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी करते हुए अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता भी 2030 तक 45 प्रतिशत से कम हो जाएगी। अंतिम बिंदु के तहत भारत 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन के लक्ष्य की प्राप्ति कर लेगा। जब हम जलवायु संबंधी कार्रवाई की बात करते हैं तो इन लक्ष्यों का महत्व अद्वितीय हो जाता है। यूएन एमिशन गैप रिपोर्ट, 2020 में भारत की प्रगति का मूल्यांकन किया गया था। उसमें सात स्वतंत्र अध्ययनों में से छह के आधार पर यह निष्कर्ष निकला कि भारत मौजूदा नीतियों के साथ राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की ओर अग्रसर है, जबकि कई विकसित देश इसमें पिछड़ गए हैं।

सितंबर 2021 तक जलवायु कार्रवाई ट्रैकर का आकलन था कि भारत एकमात्र ऐसा जी-20 राष्ट्र रहा, जिसके लक्ष्य ग्लोबल वार्मिंग लक्ष्य के अनुरूप थे। यह ध्यान देने योग्य है कि अमेरिका, यूरोपीय संघ, रूस, कनाडा और जापान 1751 से 2017 के बीच कुल 60 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। विकसित देशों में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन भी अधिक है। वहीं अल्प-विकसित और निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों में बड़ी आबादी के बावजूद ऐतिहासिक रूप से कहीं कम प्रति व्यक्ति उत्सर्जन देखा गया है। इससे स्पष्ट है कि वैश्विक कार्बन स्पेस में विकासशील देशों का योगदान बेहद मामूली है। पूर्व औद्योगिक काल से अब तक का भारत का कार्बन स्पेस उपयोग केवल 51.94 गीगाटन कार्बन डाई आक्साइड के समतुल्य है। भारत ने कुल कार्बन स्पेस का केवल 1.3 प्रतिशत (2-सी वार्मिंग परिदृश्य) और कुल कार्बन स्पेस का 1.8 प्रतिशत (1.5-सी वार्मिंग परिदृश्य) उपयोग किया है। यदि वैश्विक समुदाय प्रति व्यक्ति उत्सर्जन के आधार पर राष्ट्रों में कार्बन स्पेस को समान रूप से विभाजित करने के सिद्धांत को स्वीकार करता है तो भारत का हिस्सा कुल स्पेस का 17.5 प्रतिशत या 700 गीगाटन (2-सी वार्मिंग परिदृश्य) और 490 गीगाटन (1.5-सी वार्मिंग परिदृश्य) होगा। कार्बन स्पेस उपयोग पर पारदर्शिता बढ़ाने के लिए भारत ने कार्बन स्पेस के उपयोग को ट्रैक और मानिटर करने के लिए क्लाइमेट इक्विटी मानिटर जैसी पहल की है। इसके साथ ही भारत ने विकासशील देशों की ओर से नेतृत्व प्रदान करने के लिए अपने ट्रैक रिकार्ड और वैश्विक स्थिति का उपयोग करने की जिम्मेदारी भी स्वीकार की है।

भारत घरेलू स्तर पर जिन स्वच्छ तकनीकों का निरंतर प्रवर्तन कर रहा है, उनका काप-26 के आलोक में संदर्भ समीचीन होगा। भारत इलेक्टिक वाहन सब्सिडी, एथनाल मिश्रण, सौर पीवी और बैटरी निर्माण में अरबों डालर का निवेश कर रहा है। जहां तमाम देश ब्लू और ग्रीन दोनों किस्म की हाइड्रोजन का समर्थन करने की दोहरी अवधारणा का अनुसरण कर रहे हैं। वहीं भारत एक विशिष्ट ग्रीन और शून्य कार्बन ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की स्थापना कर रहा है। भारतीय रेलवे ने पहले ही 2030 का नेट जीरो लक्ष्य निर्धारित कर लिया है। वहीं भारत ने स्वच्छ तकनीकों की समन्वित वृद्धि के लिए सार्थक भागीदारी की है। हाल में अमेरिका भी भारत और फ्रांस के नेतृत्व वाले अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन में शामिल होने वाला 101वां देश बन गया। ऐसे ही कई अन्य मंचों पर भारत नवाचार से नई साझेदारियों के लिए आधार तैयार कर रहा है।

देखा गया है कि अधिकांश देशों द्वारा निर्धारित दीर्घकालिक लक्ष्य ऐसी प्रौद्योगिकियों पर निर्भर हैं, जो अभी तक पूर्ण रूप से विकसित नहीं हुई हैं। ऐसे में ग्रीन हाइड्रोजन, ग्रीन मेटल्स, कार्बन कैप्चर, सालिड-स्टेट बैटरी, इलेक्टिक-फ्यूल, हीट पंप और नेक्स्ट जेनरेशन सोलर पीवी जैसी तकनीकें जलवायु लक्ष्यों की प्राप्ति में महत्वपूर्ण होंगी। इसलिए भारत को अत्याधुनिक स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को मुख्यधारा में लाने के लिए निवेश करना चाहिए। इसके लिए एक नई तरह की औद्योगिक क्रांति करनी होगी, जिसकी प्रकृति अतीत में विकसित देशों में हुई औद्योगिक क्रांति से उलट हो।

वस्तुत: काप-26 में प्रधानमंत्री मोदी ने जो वास्तविक जमीनी पहल की है वह न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए परिवर्तनकारी हैं। स्पष्ट है कि भारत का नेतृत्व न केवल विकासशील देशों के जलवायु संघर्ष के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि ग्लोबल वार्मिंग पर विराम लगाने के समग्र एवं महत्वाकांक्षी लक्ष्य के लिए भी उसकी अपनी एक विशिष्ट महत्ता है।

(लेखक नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं)