डॉ. ब्रजेश कुमार तिवारी। नरेन्द्र मोदी लगातार तीसरी बार देश की कमान संभालने जा रहे हैं। उनके नेतृत्व में नई सरकार के कंधों पर वित्त वर्ष 2023-24 में दर्ज की गई 8.2 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि को आगे बढ़ाने के साथ ही भारत को पांच ट्रिलियन (लाख करोड़) डालर की अर्थव्यवस्था और 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने की अहम जिम्मेदारी होगी।

मोदी सरकार के 10 साल के कार्यकाल में भारत वैश्विक स्तर पर 11वीं से पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना। नई सरकार की नजर भारत को दुनिया की शीर्ष तीन अर्थव्यवस्थाओं में ले जाने पर होगी। आर्थिक मोर्चे पर तात्कालिक चुनौती महंगाई और बेरोजगारी है। तीव्र आर्थिक विकास के बावजूद ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। भारत में 94 प्रतिशत कर्मचारी असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं और देश का 35 प्रतिशत उत्पादन इसी में होता है। कई वर्षों से असंगठित क्षेत्र का दायरा सिकुड़ रहा है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआइ का आगमन सेवा क्षेत्र के रोजगारों के लिए एक बड़ी चुनौती है। भारत की जीडीपी में 50 प्रतिशत से अधिक का योगदान इसी क्षेत्र का है। बेरोजगारी एवं महंगाई केवल राजनीतिक विषय नहीं हैं। अगर बेरोजगारी रहेगी और आय नहीं बढ़ेगी तो लोगों की क्रय शक्ति प्रभावित होगी। उपभोग और निवेश का स्तर भी इससे जुड़ा हुआ है। इसलिए सबसे पहले बेरोजगारी की समस्या दूर करने पर ध्यान देना होगा। आज देश के 85 प्रतिशत स्टार्टअप फेल हो रहे हैं। इसके लिए स्टार्टअप इंडिया योजना को और अधिक महत्व देना होगा।

अग्निवीर योजना पर पुनर्विचार की जरूरत के साथ ही सरकारी भर्तियों में तेजी लानी होगी। असंगठित क्षेत्र को हाशिए पर धकेलने वाली नीतियों में भी बड़े पैमाने पर बदलाव की जरूरत है। आज भारत में प्रति व्यक्ति आय 2,601 डालर है और 197 देशों में प्रति व्यक्ति आय के मामलों में भारत 142वें पायदान पर है। मुद्रास्फीति भी देश में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनी हुई है। पिछले कुछ समय से रसोई का बजट अनियंत्रित और असंतुलित हुआ है।

आम लोगों पर महंगाई की मार के दूरगामी असर होते हैं। याद रहे कि महंगा भोजन आबादी के स्वास्थ्य के लिए खतरा होता है। इसे देखते हुए आज हमें जीडीपी से ज्यादा मानव विकास पर फोकस करना चाहिए, जिसमें शिक्षा एवं स्वास्थ्य सबसे ऊपर हैं। आज देश के सामने बड़ी चुनौतियों में अच्छी शिक्षा, कौशल विकास और बेहतर स्वास्थ्य सेवा प्रमुख हैं। स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता बहुत अच्छी नहीं है। दूसरी ओर, उच्च शिक्षा के केवल कुछ संस्थान ही उन्नत अनुसंधान में शामिल हैं।

भारत में शुरू से शिक्षा पर तुलनात्मक रूप से सार्वजनिक व्यय कम रहा है। वहीं प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत का शोध एवं विकास (आरएंडडी) व्यय-जीडीपी अनुपात में मात्र 0.7 प्रतिशत है। यह 1.8 प्रतिशत के विश्व औसत से भी बहुत कम है। यदि सरकार के विभिन्न प्रयासों के बावजूद आज भी अगर देश के 80 करोड़ लोग को मुफ्त अनाज देना पड़ रहा है तो निश्चित ही यह जनसंख्या अकुशल है। स्किल इंडिया योजना कई कारणों से अपेक्षित सफलता नहीं पा सकी, जिसका मुख्य कारण प्रशिक्षण से संबंधित बुनियादी ढांचे की कमी और निजी क्षेत्र की सीमित भागीदारी है। याद रहे एक कुशल और शिक्षित श्रम बल ही देश को उच्च विकास दर की ओर ले जाता है।

कौशल एवं शिक्षा ऐसा क्षेत्र है, जहां निवेश के कई प्रभाव होते हैं। जब कार्यबल अधिक कुशल बनेगा, तब आर्थिक विकास की गति को बल मिलेगा, सामाजिक बुराइयां कम होंगी और महिलाएं भी सुरक्षित होंगी। परिणामस्वरूप देश का तेजी से विकास होगा। भारत चालू खाते के घाटे से भी लगातार जूझता रहा है, जिसका अर्थ है कि देश का आयात इसके निर्यात से अधिक है। पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद भारत की वैश्विक निर्यात में बमुश्किल 1.6 प्रतिशत हिस्सेदारी है।

‘मेक इन इंडिया’ अभियान का एक प्राथमिक उद्देश्य 2022 तक भारतीय जीडीपी में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत तक बढ़ाना था। हालांकि पिछले नौ वर्षों में यह स्तर 14 से 16 प्रतिशत के बीच अटका है। अर्थव्यवस्था के बढ़ते आकार के बीच भारत के लिए आर्थिक असमानता को पाटने की भी बड़ी चुनौती है। देश में केवल अरबपतियों की संख्या बढ़ने से काम नहीं बनेगा। वैश्विक अर्थव्यवस्था में भले भारत की स्थिति पांचवीं हो गई हो, मगर विकास का हिस्सा बहुतों तक अभी पहुंच नहीं रहा है।

खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने, आय बढ़ाने और रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कृषि आधारित उद्योगीकरण द्वारा संचालित होना चाहिए। सरकार के निवेश प्रोत्साहन पर निजी क्षेत्र की प्रतिक्रिया अपर्याप्त रही है, फिर भी इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं सामाजिक कल्याण से जुड़ी योजनाओं पर सरकारी खर्च जारी रहना चाहिए। नई सरकार को बांड बाजार, बीमा बाजार और पेंशन बाजार का विकास भी करना चाहिए, जो अवसंरचना के लिए दीर्घकालिक वित्त और वृद्ध जनों के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं।

जीएसटी को भी सुसंगत बनाने की जरूरत है। सरकार अगर चाहे तो कर राजस्व बढ़ाने के लिए कारपोरेट कर, संपत्ति कर जैसे कर बढ़ा सकती है। साथ ही पर्यावरण संरक्षण नीतियों का सख्ती से कार्यान्वयन भी जरूरी है। अर्थव्यवस्था पर बढ़ते कर्ज का कारगर समाधान भी निकालना होगा। निजी निवेश में सुधार अर्थव्यवस्था में तरक्की का सबसे अहम कारक होगा और अगली सरकार को इस पर खास जोर देना चाहिए। हाल में आरबीआइ ने केंद्र सरकार को 2.11 लाख करोड़ रुपये के लाभांश (डिविडेंट) भुगतान करने का एलान किया है। सरकार को इस धन को शिक्षा एवं रोजगार निर्माण में लगाना चाहिए और किसी भी रेवड़ी वाली योजना से दूर रहना चाहिए।

(लेखक जेएनयू के अटल स्कूल आफ मैनेजमेंट में प्रोफेसर हैं)