[मुकुल श्रीवास्तव]। पिछले दिनों लद्दाख लिटरेचर फेस्टिवल का हिस्सा बनते हुए इसे नजदीक से जानने का मौका मिला। यह लिटरेचर फेस्टिवल लद्दाख के संभागीय आयुक्त सौगत बिस्वास के दिमाग की उपज थी जिससे देश के अन्य भागों के निवासी लद्दाख को जम्मू कश्मीर के चश्मे से देखने की बजाय लद्दाख के स्वतंत्र नजरिये से देखें। जब लद्दाख पहुंचा तो वह जम्मू कश्मीर राज्य का एक हिस्सा भर था, लेकिन मेरे लौटने से पहले वह देश का एक केंद्र शासित प्रदेश बन गया।

सच कहा जाए तो इस लिटरेचर फेस्टिवल के बहाने ही लद्दाख की समर्थ साहित्यिक सांस्कृतिक परंपरा की विरासत को समझ पाया। बात चाहे पर्यटन की हो या जम्मू कश्मीर की समस्याओं या साहित्य की, मेरे जैसे बहुत से लोगों के लिए जम्मू कश्मीर का मतलब सिर्फ कश्मीर घाटी और श्रीनगर के आस-पास के इलाके ही रहे हैं।

लेह लद्दाख लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र 1,73,266 वर्ग किमी के कुल क्षेत्रफल के साथ भारत में सबसे बड़ा लोकसभा क्षेत्र है। लेह की चौड़ी सड़कों और संकरी गलियों में एक हफ्ते तक घूमने के दौरान कोई भी स्थानीय निवासी ऐसा नहीं मिला जो सरकार के इस फैसले से नाराज हो। कश्मीर घाटी में रहने वाले लोगों के मुकाबले लेह लद्दाख के लोगों का जीवन ज्यादा मुश्किल भरा है, पर वे लोग अपनी मांगों को मनवाने के लिए न तो हिंसक हुए और न ही उग्रवाद का सहारा लिया। लद्दाख वासियों के लिए केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) की मांग एक पुराने नारे की शक्ल में रही है। कश्मीरी संस्कृति से लद्दाख के लोगों का कोई सीधा रिश्ता नहीं रहा, जम्मू कश्मीर राज्य की 60 फीसद जमीन लद्दाख में है, पर प्रशासन कश्मीर केंद्रित ही रहा।

दसवीं से उन्नीसवीं सदी तक लद्दाख एक स्वतंत्र राज्य था, जहां लगभग 32 राजाओं का इतिहास रहा है, लेकिन 1834 में डोगरा सेनापति जोरावर सिंह ने लद्दाख पर कब्जा कर लिया और यह जम्मू- कश्मीर के अधीन चला गया। लेकिन लद्दाख अपनी स्वतंत्र पहचान को लेकर हमेशा मुखर रहा। केंद्र शासित प्रदेश की मांग दशकों पुरानी है। वर्ष 1989 में इस मांग को कुछ सफलता मिली, जब यहां बौद्धों के धार्मिक संगठन लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन (एलबीए) के नेतृत्व में एक बड़ा आंदोलन हुआ।

वर्ष 1993 में केंद्र और प्रदेश सरकार लद्दाख को स्वायत्त हिल काउंसिल का दर्जा देने को तैयार हो गईं। इस काउंसिल के पास ग्राम पंचायतों के साथ मिलकर आर्थिक विकास, सेहत, शिक्षा, जमीन के उपयोग, कर और स्थानीय शासन से जुड़े फैसले लेने का अधिकार है, जबकि कानून व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, संचार और उच्च शिक्षा से जुड़े फैसले जम्मू-कश्मीर सरकार के लिए ही सुरक्षित रखे गए। किसी भी राज्य के मानव संसाधन की गुणवत्ता का आकलन वहां शैक्षिक संस्थानों की उपलब्धता से लगाया जा सकता है। लेह लद्दाख में आज तक एक विश्वविद्यालय नहीं बना था। इसी वर्ष फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लद्दाख क्षेत्र में पहले विश्वविद्यालय ‘यूनिवर्सिटी ऑफ लद्दाख’ की आधारशिला रखी जिससे लेह, करगिल, नुब्रा, जंस्कर, द्रास और खलतसी के डिग्री कॉलेज संबद्ध हैं।

जम्मू क्षेत्र में आइआइटी, एक आइआइएमसी के अलावा कुल चार विश्वविद्यालय हैं, वहीं कश्मीर घाटी में तीन विश्वविद्यालय और एक राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान है। लद्दाख में दो जिले हैं- लेह और कारगिल। यह इलाका सामरिक दृष्टि से भी बहुत संवेदनशील है, क्योंकि इसी इलाके में एक तरफ चीन है तो दूसरी तरफ पाकिस्तान। इसके बावजूद पिछले कुछ वर्षों में यहां पर्यटकों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है। लेकिन यहां साल के छह महीने जीवन आसान नहीं है। लगभग छह महीनों के लिए लद्दाख दुनिया से एक तरह से कट जाता है और कुछ जगहों पर लोग माइनस 32 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी रहते हैं।

अधिकांश लोगों के रोजगार का एकमात्र साधन पर्यटन ही है, पर अपनी भौगौलिक विषमताओं के कारण पर्यटकों का बड़ा हिस्सा जम्मू कश्मीर तक ही सीमित रह जाता है। तथ्य यह भी है कि लद्दाख के ठंडे पर्यावरण में भारत के किसी भी जगह से ज्यादा धूप मिलती है। लद्दाख में आसमान साफ रहता है, जिससे वहां सौर ऊर्जा के लिए अनुकूल वातावरण है। वहां मानसून के दौरान बहुत कम बारिश होती है। सौर ऊर्जा को बिजली में बदलने की क्षमता यहां देश के किसी भी अन्य क्षेत्र से ज्यादा है।

लद्दाख में इस समय नेशनल हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन (एनएचपीसी) की दो पनबिजली परियोजनाएं चल रही हैं। इनमें चुटक परियोजना 44 मेगावॉट क्षमता की है जबकि निमो बाजगो परियोजना में 45 मेगावॉट क्षमता की इंस्टाल्ड कैपेसिटी है। वहीं जम्मू-कश्मीर स्टेट पावर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (जेकेएसपीडीसी) की नौ

पनबिजली परियोजनाएं चल रही हैं। इनसे 15 मेगावॉट बिजली बनाने की क्षमता है। सौर और पन बिजली के क्षेत्र में जो संभावनाएं हैं उनका दोहन लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश बन जाने से अधिक होगा और इससे रोजगार सृजित होगा और वहां के निवासियों का जीवन स्तर बेहतर होगा।

एकमात्र पर्यटन व्यवसाय होने के बावजूद पर्यटन में चल रहे नवाचार से लद्दाख का इलाका अछूता रहा है। होम स्टे की संख्या अभी बहुत कम है और होटल महंगे हैं। लद्दाख के वन्य जीवन के बारे में भी लोगों को बहुत कम पता है। हेमिस राष्ट्रीय उद्यान यहां का सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित राष्ट्रीय उद्यान है। यह भारत में हिमालय के उत्तर में बना इकलौता राष्ट्रीय उद्यान है। यह देश में सबसे बड़ा अधिसूचित संरक्षित क्षेत्र और नंदा देवी बायोस्फियर रिजर्व व आसपास के संरक्षित क्षेत्र है।

लद्दाख के बारे में देश के अन्य क्षेत्रों के लोग बहुत कम जानते हैं। हालांकि यह इलाका कई मामलों में बेहद समृद्ध है जिसमें व्यापक सुधार के जरिये इसे और समृद्ध किया जा सकता है। पर्यटन में नवीकरण के जरिये यहां पर्यटकों की संख्या बढ़ाई जा सकती है।

[प्रोफेसर, लखनऊविश्वविद्यालय]