जागरण संपादकीय: बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ अभियान, समस्याओं का आधा-अधूरा समाधान
बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या करोड़ों में है और कुछ के अनुसार लाखों में। बांग्लादेशी घुसपैठियों की तरह कोई यह भी नहीं बता सकता कि देश में अवैध रूप से आए रोहिंग्या कितने हैं। जो बताया जा सकता है वह यह कि वे पूर्वी हिस्से से देश में घुसे और जम्मू एवं हैदराबाद तक जाकर बस गए। यह सहज ही समझा जा सकता है कि किसी ने उनकी मदद की होगी।
राजीव सचान। इन दिनों दिल्ली में बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें निकाल बाहर करने का अभियान चल रहा है। इस अभियान के तहत अभी तक दस बांग्लादेशी घुसपैठियों को भी वापस नहीं भेजा जा सका है। कहना कठिन है कि दिल्ली पुलिस का अभियान कब तक जारी रहेगा और कितने बांग्लादेशी घुसपैठियों को निकाला जा सकेगा, लेकिन यह ध्यान रहे कि पहले भी दिल्ली में इस तरह का अभियान चल चुका है। वह किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका था।
दिल्ली के बाद महाराष्ट्र में भी बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान का अभियान चल निकला है। वहां भी अतीत में इस तरह का अभियान चला था और उसका नतीजा भी ढाक के तीन पात वाला रहा था। यही कहानी असम की भी है, जहां इन दिनों बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें वापस भेजने की कवायद की जा रही है। हो सकता है कि आने वाले दिनों में कुछ और राज्य ऐसा करें, लेकिन यह तय है कि कुछ राज्य ऐसा नहीं भी करने वाले, जैसे कि बंगाल। इसी तरह झारखंड में भी यह काम नहीं होने वाला। विधानसभा चुनावों के समय झारखंड सरकार ने भाजपा के इन आरोपों को खंडन किया था कि बंगाल के रास्ते भारत में घुस आए बांग्लादेशी राज्य में बस गए हैं। उसने यह सवाल भी पूछा था कि अगर ऐसा हो रहा है तो केंद्र सरकार ऐसा होने कैसे दे रही है? केंद्र सरकार इस सवाल का कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सकी थी।
इससे इनकार नहीं कि बांग्लादेश से घुसपैठ हो रही है, लेकिन आखिर केंद्र सरकार इस घुसपैठ को रोक क्यों नहीं पा रही है? कारण जो भी हो, किसी एक या दो-तीन राज्यों में बांग्लादेशी घुसपैठियों की पकड़-धकड़ करने से विशेष लाभ नहीं मिलने वाला, क्योंकि घुसपैठिये पड़ोसी राज्यों में आसानी से जा सकते हैं। क्या यह सहज स्वाभाविक नहीं कि दिल्ली पुलिस के अभियान को देखते हुए बांग्लादेशी घुसपैठिये उत्तर प्रदेश और हरियाणा खिसक जाएं? ऐसा होने का अंदेशा इसलिए भी है, क्योंकि बांग्लादेशी घुसपैठियों को निकालने के किसी अभियान की तुलना में उनकी घुसपैठ कराने वाला तंत्र कहीं अधिक कारगर है।
यह तंत्र बांग्लादेशी नागरिकों को केवल भारत में घुसने में ही मदद नहीं करता, बल्कि उनके लिए सुरक्षित ठिकाने भी उपलब्ध कराता है। इतना ही नहीं, यह तंत्र उन्हें असली-नकली आधार कार्ड और अन्य पहचान पत्रों से लैस भी करता है। बांग्लादेशी नागरिक अवैध रूप से भारत की सीमा में जैसे ही प्रवेश करते हैं, उन्हें आधार कार्ड उपलब्ध करा दिया जाता है। यह तंत्र केवल बांग्लादेश से लगती सीमा पर ही सक्रिय नहीं है। गत दिवस दिल्ली पुलिस ने एक ऐसे गिरोह को पकड़ा, जो राजधानी में बांग्लादेशी घुसपैठियों के आधार कार्ड के साथ मतदाता पहचान पत्र तैयार कर रहा था।
एक समय अवैध रूप से भारत आने वाले बांग्लादेशी बंगाल, असम, त्रिपुरा आदि सीमावर्ती राज्यों में ही अपना ठिकाना बनाना पसंद करते थे, लेकिन अब वे दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, हैदराबाद से लेकर देश के हर हिस्से में मिल जाते हैं। किसी के लिए कहना कठिन है कि उनकी संख्या कितनी है? अलग-अलग आंकड़ों में उनकी संख्या भिन्न-भिन्न बताई जाती रही है। सही आंकड़ा इसलिए नहीं, क्योंकि केंद्र या राज्य सरकारों के पास ऐसा तंत्र ही नहीं, जो यह रेखांकित कर सके कि कितने बांग्लादेशी अवैध रूप से आए और वे कब से कहां रह रहे हैं।
कुछ लोग दावा करते हैं कि बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या करोड़ों में है और कुछ के अनुसार लाखों में। बांग्लादेशी घुसपैठियों की तरह कोई यह भी नहीं बता सकता कि देश में अवैध रूप से आए रोहिंग्या कितने हैं। जो बताया जा सकता है, वह यह कि वे पूर्वी हिस्से से देश में घुसे और जम्मू एवं हैदराबाद तक जाकर बस गए। यह सहज ही समझा जा सकता है कि किसी ने उनकी मदद की होगी। प्रबल आशंका यही है कि बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं की घुसपैठ कराने और उन्हें असली-नकली पहचान पत्रों से लैस करके भारतीय नागरिकों का चोला पहनाने वाले अब भी सक्रिय होंगे। बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान कर केवल इसलिए नहीं निकाला जाना चाहिए कि शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश भारतीय हितों के खिलाफ काम कर रहा है। यह काम इसलिए भी होना चाहिए कि वे संसाधनों पर बोझ बनने के साथ ही देश की सुरक्षा के लिए खतरा भी बन रहे हैं। बांग्लादेशी हों या रोहिंग्या, वे अपनी स्पष्ट पहचान के साथ शरणार्थी के रूप में तो भारत में रह सकते हैं, लेकिन घुसपैठियों के रूप में नहीं।
एक ऐसे समय जब दुनिया भर में और विशेष रूप से पश्चिमी देशों में अवैध रूप से आए लोगों के खिलाफ आवाज उठ रही है और अमेरिका में तो डोनाल्ड ट्रंप यह आवाज उठाकर चुनाव भी जीत गए, तब इसका कोई औचित्य नहीं कि भारत घुसपैठियों के प्रति ढुलमुल बना रहे या फिर उनकी पहचान का अभियान आधे-अधूरे मन से चलाया जाए। जब किसी समस्या के समाधान के लिए कामचलाऊ कदम उठाए जाते हैं तो वे केवल नाकाम ही नहीं होते, बल्कि समस्या बने तत्वों का दुस्साहस भी इससे बढ़ता है। इसलिए बढ़ता है, क्योंकि उन्हें संदेश जाता है कि समस्या का समाधान करने वाले गंभीर नहीं। यह समझा जाए तो बेहतर कि बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ देशव्यापी अभियान सघन तरीके से चलना चाहिए।
(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)
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