स्वामी अवधेशानंद गिरि। वर्ष 2014 में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के साथ देश में सकारात्मक परिवर्तन और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का जो कार्य प्रारंभ हुआ, उसे जारी रहते हुए 11 वर्ष हो गए। ये 11 वर्ष भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण की न केवल नींव बने, बल्कि भारत की संस्कृति को जीवंतता भी प्राप्त हुई।

इस सबका केंद्र बिंदु है भारतीय संस्कृति और विरासत को सहेजने एवं संवारने के प्रति प्रधानमंत्री का समर्पण। उनके कार्यकाल में हमारी महान धार्मिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत का पुनरुद्धार कर उसे पुरानी गरिमा वापस दिलाने का भगीरथ प्रयास हुआ है। ‘विरासत भी, विकास भी’ जैसे दृष्टिकोण के माध्यम से सांस्कृतिक पुनर्जागरण की ध्वजा फहरा रही है।

मैं अक्सर चिंतन करता था कि अहिल्याबाई होलकर की तरह क्या कोई हमारी महान सांस्कृतिक चेतना को फिर से प्रतिष्ठित करने में सहायक होगा? रामलला का अपने घर विराजमान होना, काशी विश्वनाथ मंदिर एवं महाकाल लोक कारिडोर का निर्माण, सोमनाथ मंदिर परिसर का जीर्णोद्धार, करतारपुर साहिब कारिडोर तैयार होना, चार धाम परियोजना का विकास, बुद्ध एवं जैन सर्किट के निर्माण के जरिए मोदी सरकार ने न केवल देश की सांस्कृतिक विरासत को एकसूत्र में पिरोया, बल्कि उसे अपनी सांस्कृतिक पहचान के साथ गर्व से खड़ा होना भी सिखाया।

वर्षों बाद श्रद्धा और विश्वास के साथ जम्मू-कश्मीर में खीर भवानी मेले का आयोजन हुआ। दशम गुरु गोबिंद सिंह के सुपुत्रों के बलिदान को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा भी बहुप्रतीक्षित और ऐतिहासिक रही। हमारी विदेश नीति में भी देश के सांस्कृतिक महत्व को स्थापित किया गया। प्रधानमंत्री विदेशी अतिथियों को श्रीमद्भगवद्गीता जी, तुलसी जी का पौधा या भारतीय संस्कृति से जुड़ी चीजें भेंट करते हैं। जी-20 शिखर सम्मेलन और उसके पहले इस समूह की देश भर में आयोजित बैठकों में हमने दुनिया को अपनी संस्कृति से परिचित कराया।

वर्षों से देश से सैकड़ों प्राचीन की मूर्तियां और कलाकृतियां चोरी करके विदेश भेजी जाती रही हैं। हम ऐसे समाचार पढ़ते थे, लेकिन कभी मूर्तियों की वापसी की खबरें देखने-पढ़ने को नहीं मिलती थीं। 2014 के बाद यह भी बदलाव हुआ। अब चोरी और लूट के जरिए विदेश पहुंचीं कलाकृतियों और मूर्तियों के लौटने की खबरें आने लगी हैं। 2014 के बाद से अब तक विदेश से लगभग 642 प्राचीन मूर्तियां और धरोहर वापस आई हैं।

योग और आयुर्वेद को भी बीते 11 वर्षों में वैश्विक स्वीकृति मिली। कोरोना काल में वर्तमान पीढ़ी ने आयुर्वेद के महत्व को और अच्छे से समझा। इस बार 21 जून को हम 10वां अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मना रहे हैं। यह विशेष गर्व की अनुभूति वाला क्षण है, क्योंकि योग दिवस को अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्रधानमंत्री की पहल से ही मिली। देश में गोवंश की महत्ता फिर से स्थापित हुई है। डिजिटल इंडिया अभियान के साथ सांस्कृतिक डाक्यूमेंटेशन का भी अभूतपूर्व विस्तार किया गया है।

‘राष्ट्रीय सांस्कृतिक डिजिटल डाटाबेस’ के माध्यम से दो लाख से अधिक सांस्कृतिक संस्थाओं और विरासत स्थलों का डिजिटल रिकार्ड तैयार किया गया है। एक भारत-श्रेष्ठ भारत, काशी- तमिल संगमम, सौराष्ट्र-तमिल संगमम और विरासत का उत्सव जैसे अभियानों से सांस्कृतिक एकता मजबूत करने का प्रयास किया गया है। संग्रहालयों और सांस्कृतिक स्थलों के आधुनिकीकरण का भी प्रयास हुआ है। आजादी का अमृत महोत्सव संग्रहालय तैयार किया गया है। लगभग 500 से अधिक स्मारकों का संरक्षण किया गया है।

प्रधानमंत्री ने विदेश में बसे भारतीय प्रवासियों को सांस्कृतिक राजदूत बनने की प्रेरणा दी और आह्वान किया कि वे भारत की विविधतापूर्ण संस्कृति को विश्व पटल पर ले जाएं। विविधताओं के इन उत्सवों से राष्ट्रीयता का जो अमृत निकल रहा, वह भारत को अनंतकाल तक ऊर्जावान रखेगा। सनातन संस्कृति और उसकी आत्मा क्या है? अखंड भारत का विचार क्या है? भारत अनेकता में एकता का देश कैसे है और पूरा देश एक सूत्र में कैसे पिरोया हुआ है? इस सबका दर्शन हमें पूर्ण महाकुंभ में मिला।

प्रयागराज में मुझे दिव्य ऊर्जा का जो आभास हुआ, उससे यह विश्वास हो गया कि इस देश की आध्यात्मिक चेतना को कोई डिगा नहीं सकता। यह ऐसा आयोजन था, जो यदि न हुआ होता तो दुनिया नहीं मानती कि ऐसा आयोजन हो भी सकता है। आपरेशन सिंदूर की भी चर्चा आवश्यक है। हमारी पराक्रमी सेनाओं ने आतंकवाद को जैसा करारा जवाब दिया, उसने दुनिया में भारत की नई पहचान को प्रतिष्ठित किया। न्याय की अखंड प्रतिज्ञा के विचार तले आपरेशन सिंदूर के महानायकों को नमन। बीते 11 वर्षों में हमने प्रधानमंत्री संग्रहालय, राष्ट्रीय युद्ध स्मारक, जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय, भारत मंडपम और नया संसद भवन बनते देखा।

संसद में सेंगोल स्थापित होते और जलियांवाला बाग का पुनरुद्धार होते भी देखा। हमने डिफेंस कारिडोर बनते देखा तो चिनाब पर सबसे ऊंचा रेल पुल भी। हम ‘मेक इन इंडिया’ के साथ ‘मेड इन इंडिया’ के साक्षी भी बने। हम ‘नमामि गंगे’ की धार बने तो नारी शक्ति वंदन और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के कारक भी। हम स्वच्छ भारत की संस्कृति के पालनकर्ता भी बने तो प्रमुख आर्थिक शक्ति भी अर्थात विरासत भी, विकास भी।

(लेखक जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर हैं)