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    हिमालय की पीड़ा को दूर करने में जुटे हैं यह शिक्षक

    By BhanuEdited By:
    Updated: Thu, 09 Feb 2017 07:00 AM (IST)

    कुमाऊं विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के प्रो. पीसी तिवारी ने हिमालयी क्षेत्र की पीड़ा को महसूस किया और इसे दूर करने के प्रयास में जुट गए।

    हिमालय की पीड़ा को दूर करने में जुटे हैं यह शिक्षक

    नैनीताल, [किशोर जोशी]: हिमालय के साथ ही इसकी नदियों के संरक्षण में किए जा रहे प्रयासों में कुमाऊं विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के प्रो. पीसी तिवारी महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने हिमालयी क्षेत्र की पीड़ा को महसूस किया और इसे दूर करने के प्रयास में जुट गए।

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    जलवायु परिवर्तन की वैश्विक समस्या से हिमालय भी अछूता नहीं है। हिमालय क्षेत्र में बढ़ता तामपान व इससे निकलने वाली सहायक नदियों का जलस्तर घटना वैश्विक स्तर पर विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा रहा है। देश-दुनिया में हिमालय के साथ ही इसकी नदियों व गाड-गदेरों के संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों में उत्तराखंड के कुछ विशेषज्ञों का महत्वपूर्ण योगदान है। इनमें कुमाऊं विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के प्रो. पीसी तिवारी प्रमुख हैं।

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    अल्मोड़ा के शैल गांव निवासी प्रो. तिवारी ने अल्मोड़ा के एसएसजे परिसर से प्रथम श्रेणी में स्नातक-स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। पीएचडी में स्वर्ण पदक प्राप्त कर 1988 में कुमाऊं विश्वविद्यालय में प्राध्यापक नियुक्त हुए।

    हिमालय क्षेत्र के निवासी होने के नाते यहां की पीड़ा को गहराई से समझने वाले प्रो. तिवारी ने एक बार इस दर्द का इलाज करने की ठान ली तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। हिमालय की पानी व जलवायु परिवर्तन की समस्या को विश्व पटल पर उठाने के साथ ही विशेषज्ञ दलों के साथ जुड़ गए।

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    उन्होंने रामगाड, कोसी, सरयू, दाबका नदियों के कैचमेंट एरिया के साथ ही हिमालय के हिंदुकुश क्षेत्र में हो रहे जलवायु परिवर्तन पर शोध किया। इन शोध परियोजनाओं के आधार पर वह नदियों के संरक्षण व वैश्विक तापमान परिवर्तन से हिमालय क्षेत्र को बचाने के लिए कई सुझाव सरकार को दे चुके हैं।

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    डेढ़ सौ से अधिक अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में भाग ले चुके प्रो. तिवारी आस्ट्रेलियन इंटरनेशनल एड, जापान की मिनिस्ट्री ऑफ एजुकेशन, जर्मनी की फेडरल मिनिस्ट्री ऑफ एजुकेशन, एशिया पैसफिक नेटवर्क जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों की शोध परियोजना में काम कर चुके हैं।

    उनके अब तक सवा सौ से अधिक शोध पत्र व पांच शोध पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं। फिलहाल वह देश के तमाम नामी संस्थानों में बतौर विशेषज्ञ सेवाएं दे रहे हैं।

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    प्रो. तिवारी कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन की समस्या से हिमालय भी अछूता नहीं है। इस पर तुरंत काम करने की जरूरत है। जल संरक्षण के पारंपरिक तौर-तरीकों के साथ ही वैज्ञानिक तरीकों को भी अपनाया जाना चाहिए। सही मायने में तभी हम भविष्य के लिए पानी बचा पाएंगे।

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