बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाने को हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगा जवाब
उत्तराखंड में बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाने को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से तीन सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है।
नैनीताल, [जेएनएन]: उत्तराखंड में बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाने को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से तीन सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है।
इस मामले में मुख्य न्यायमूर्ति केएम जोजफ और आलोक सिंह की संयुक्त खंडपीठ ने केंद्र सरकार के साथ ही सचिव निदेशक (प्रारम्भिक), जिलाधिकारी चंपावत से भी तीन हफ्ते में जबाब दाखिल करने को कहा है। साथ ही इस मामले में अगली सुनवाई तीन सप्ताह बाद होगी।
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उत्तराखंड में बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 के प्रावधानों के उचित क्रियान्वयन के लिए नैनीताल निवासी चंपा उपाध्याय ने जनहित याचिका दायर की थी।
इसमें कहा गया था कि ह्यूमन राइट लॉ नेटवर्क की ओर से चंपावत व पिथौरागढ़ जिले में जनवरी 2016 में किए गए सर्वे में स्पष्ट है कि इन जनपदों में बाल विवाह पर रोक नहीं लग पाई है।
इसमे कहा गया है की केंद्रित कानून बाल विवाह प्रतिषेधअधिनियम 2006 के लागू हो जाने के बावजूद भी उत्तराखंड सरकार इस कुप्रथा को रोकने में नाकाम रही है। लड़कियो की शिक्षा आधे में ही रोक कर उनके विवाह 18 वर्ष से कम उम्र में किए जा रहे हैं।
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स्वास्थ्य सर्वे 2012-13 के अनुसार उत्तराखंड की 39 फीसद विवाहित लडंकिया 15 से 19 वर्ष की उम्र में बच्चों को जन्म दे देती हैं। इसमे अकेले पिथोरागढ़ जिले में ये आंकड़ा 43.1 फीसद और चंपावत जनपद में 39.3 फीसद तक है।
याचिका में कहा गया कि बाल विवाह से न केवल लड़कियों को शिक्षा के मूल अधिकार से बंचित रखा जाता है, बल्कि कम उम्र में बच्चे पैदा करने से उसके स्वस्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
याचिकर्ता का कहना है की बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 के प्रावधानों का क्रियान्वयन प्रभावी तरीके से नहीं होने से न तो बालिकाओ के स्कूल छोड़ने पर कोई ध्यान दिया जा रहा है और न ही उत्तराखंड में प्रत्येक जिले में बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी की नियुक्ति की गई।
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