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    आर्थिक रूप से कमजोर बच्‍चों को सशक्त बना रहे यह एसोसिएट प्रोफेसर

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Wed, 01 Feb 2017 05:00 AM (IST)

    रुड़की निवासी एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सतेंद्र मित्तल आर्थिक रूप से कमजोर छात्र-छात्राओं को सशक्त बनाने में तन-मन-धन से जुटे हुए हैं। ...और पढ़ें

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    आर्थिक रूप से कमजोर बच्‍चों को सशक्त बना रहे यह एसोसिएट प्रोफेसर

    रुड़की, [जेएनएन]: व्यस्ततम दिनचर्या के बावजूद वह अपने सामाजिक दायित्वों को भूले नहीं हैं। एक ओर वह देश के लिए भावी इंजीनियर तैयार कर रहे हैं, वहीं आर्थिक रूप से कमजोर छात्र-छात्राओं को सशक्त बनाने में भी तन-मन-धन से जुटे हुए हैं। हम बात कर रहे हैं शिक्षानगरी के लोगों के लिए प्रेरणा बने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की के सिविल अभियांत्रिकी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सतेंद्र मित्तल की।

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    मूल रूप से रुड़की के चौक बाजार और वर्तमान में खंजरपुर निवासी डॉ. मित्तल का जीवन हर किसी के लिए अनुकरणीय है। बाल्यकाल में पारिवारिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी। मेधावी होने के कारण उन्हें कक्षा छह से ही स्कॉलरशिप मिलनी शुरू हो गई। स्कॉलरशिप से ही उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी की।

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    वैसे तो अधिकांश लोग कामयाबी हासिल करने के बाद अपने जीवन के कठिन समय को भूल जाते हैं, लेकिन उन्होंने आज भी उन पलों को अपने जहन में जिंदा रखा है। खुद के जीवन को प्रेरणा मानकर डॉ. मित्तल ने दूसरे जरुरतमंद बच्चों का भविष्य संवारने में सहयोग करने का न केवल संकल्प लिया, बल्कि आज तक उसे बखूबी निभा भी रहे हैं।

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    डॉ. मित्तल ने वर्ष 1980 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, जबकि पीजी और पीएचडी आइआइटी रुड़की से की। इसके बाद उनकी नियुक्ति राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआइएच) रुड़की में सीनियर साइंटिफिक असिस्टेंट पद पर हुई। दो साल तक यहां पर कार्य करने के बाद आइआइटी रुड़की के वैकल्पिक जल ऊर्जा केंद्र में लंबे समय तक कार्य किया। वर्ष 2000 में सिविल अभियांत्रिकी विभाग में उनकी नियुक्ति हुई। इसके बाद तो डॉ. मित्तल ने अपनी गाढ़ी कमाई का कुछ हिस्सा समाज के लिए खर्च करने की ठान ली।

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    डॉ. मित्तल के अनुसार भागदौड़ भरी इस जिंदगी में अक्सर कई लोग यह शिकायत करते हैं कि उनके पास समय का अभाव है, जबकि उनका मानना है कि एक दिन में 24 घंटे बहुत होते हैं। इनमें से केवल एक घंटा हर व्यक्ति समाज के बारे में चिंतन करे और उसके विकास में भागीदार बने तो फिर सरकार पर भी निर्भरता कम हो सकेगी।

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    संस्थाओं से मिलकर चला रहे सिलाई केंद्र

    कुछ सामाजिक संस्थाओं के साथ मिलकर वह मलकपुर, खंजरपुर, डाडा जलालपुर आदि स्थानों पर सिलाई केंद्र संचालित कर रहे हैं, जहां पर हर साल दर्जनों लड़कियां मात्र 25-50 रुपये फीस पर प्रशिक्षण लेती हैं। वहीं, भारत विकास परिषद, रोटरी क्लब आदि कई सामाजिक संस्थाओं में भी वह सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

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    यह कर रहे काम

    -हर साल दो असहाय व मेधावी बच्चों को गोद लेकर उठाते हैं पढ़ाई का खर्च -पिता स्व. रमेश चंद मित्तल एवं माता स्व. लक्ष्मी मित्तल के नाम से दे रहे एक दर्जन से अधिक स्कॉलरशिप।

    -मेधावी छात्रों व विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वाली लड़कियों को दी जाती है यह स्कॉलरशिप।

    -समाज में योगदान देने वाले 70 वर्ष या उससे अधिक की आयु वाले एक दंपति को करते हैं सम्मानित।

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