उत्तराखंड में सिर्फ टीमें भेजने तक समिति खेल संघ
उत्तराखंड में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है, लेकिन खेल संघ सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर टीमों या खिलाड़ियों की प्रतिभागिता कराने तक ही सीमित हैं।
देहरादून, [जेएनएन]: यूं तो सूबे में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है, लेकिन प्रतिभाओं को मंच प्रदान करने की जिम्मेदारी उठा रहे खेल संघ सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर टीमों या खिलाड़ियों की प्रतिभागिता कराने तक ही सीमित हैं। न तो संघों के पास कोई कार्ययोजना रहती है और न ही खिलाड़ियों को प्रोत्साहन दिया जाता है। स्थिति यह है कि राष्ट्रीय स्तर का कैलेंडर आने के बाद खेल संघ प्रतियोगिताओं के नाम पर सिर्फ खिलाड़ियों का चयन करने तक सीमित हैं।
प्रदेश में 40 से अधिक खेल संघ हैं। पिछले डेढ़ दशक में राज्य ने एथलेटिक्स, फुटबॉल, निशानेबाजी, बॉक्सिंग, बेसबॉल, वॉलीबॉल, कराटे, जूडो, बास्केटबॉल, हॉकी, टेबल टेनिस आदि कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी दिए हैं, लेकिन इन खिलाड़ियों ने अपने दम पर भविष्य की राह बनाई। कई खेल संघ तो ऐसे हैं जो प्रतियोगिता की जगह मात्र चयन-ट्रायल का आयोजन कर टीमों या खिलाड़ियों का चयन कर लेते हैं।
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टीमों का प्रदर्शन कैसा रहा इससे किसी को कोई मतलब नहीं। बास्केटबॉल, वॉलीबॉल को छोड़ दिया जाए तो कोई भी खेल संघ वार्षिक खेल कैलेंडर बनाने में रुचि नहीं दिखा रहा। यह जरूर है कि किसी भी राष्ट्रीय प्रतियोगिता से पहले चयन-ट्रायल आयोजित कर खिलाड़ियों का चयन कर लिया जाता है।
प्रतिभाओं के सम्मान में कोताही
सूबे का मान बढ़ा रहे खिलाड़ियों को खेल विभाग अपने स्तर पर जरूर प्रोत्साहित कर रहा है। लेकिन, खेल संघ इसमें कोई रुचि नहीं दिखा रहे। राज्य गठन के बाद शायद ही किसी खेल संघ ने खिलाड़ियों को सम्मानित किया हो।
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सम्मान मिले तो दूसरे भी होते हैं प्रेरित
अंतरराष्ट्रीय फुटबॉलर मनीष मैठाणी ने बताया कि एक खिलाड़ी को सम्मान मिले तो उससे दूसरे भी प्रेरित होते हैं। राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमक बिखरेने के बावजूद आज तक प्रदेश में खेल संघ ने सम्मानित करने का नहीं सोचा। खेल तभी बढ़ेंगे जब प्रतियोगिताएं बढ़ेंगी।
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प्रदेश में टैलेंट की कमी नहीं
अंतरराष्ट्रीय धावक प्रीतम बिंद ने बताया कि खेलों को आगे बढ़ाने का जिम्मा खेल संघों का है। प्रदेश में टैलेंट की कमी नहीं है। उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए संघों को भी गंभीरता से प्रयास करना चाहिए।
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